header-logo

AUTHENTIC, READABLE, TRUSTED, HOLISTIC INFORMATION IN AYURVEDA AND YOGA

AUTHENTIC, READABLE, TRUSTED, HOLISTIC INFORMATION IN AYURVEDA AND YOGA

विश्राम के लिए योग आसन : Asana for Yog Vishram : Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

शवासन (योगनिद्रा)

Vishram Yog

पीठ के बल सीधे भूमि पर लेट जायें। दोनों पैरों में लगभग एक फुट का अन्तर हो तथा दोनों हाथों को भी जंघाओं से थोड़ी दूरी पर रखते हुए हाथों को ऊपर की ओर खोलकर रखें। आँखें बन्द, गर्दन सीधी पूरा शरीर तनाव-रहित अवस्था में हो। धीरे-धीरे चार-पाँच श्वास लम्बे भरें और छोड़े। अब मन द्वारा शरीर के प्रत्येक भाग को देखते हुए संकल्प द्वारा एक-एक अवयव को शिथिल तथा तनाव-रहित अवस्था में अनुभव करता है। जीवन के समस्त कार्यों और महान् उद्देश्यों की सफलता के पीछे संकल्प की ही शक्ति मुख्य हुआ करती है। अब हमें इस समय शरीर को पूर्ण विश्राम देना है। इसके लिए भी हमें शरीर के विश्राम अथवा शिथिलीकरण का संकल्प करना होगा।

सर्वप्रथम बन्द आँखों से ही मन की संकल्प-शक्ति द्वारा पैरों के अंगूठों एवं अंगुलियों को देखते हुए उनको भी नितान्त ढीला और तनाव-रहित अनुभव करें। पंजों के बाद पैर की एड़ियों को देखते हुए उनको भी शिथिल अवस्था में अनुभव करें। अब पिण्डलियों को देखें और यह विचार करें कि मेरी पिण्डलियाँ पूर्ण स्वस्थ, तनाव-रहित एवं पूर्ण विश्राम की अवस्था में हैं और फिर अनुभव करें कि शिथिलीकरण के विचार मात्र से शरीर को पूर्ण विश्रान्ति मिल रही है। जैसे अति दुःख के चिन्तन से रुदन, अति सुख के चिन्तन से हर्ष एवं वीरता के विचार मात्र से ही शरीर का खून खौलने लगता है, वैसे ही शरीर के शिथिलीकरण के विचार-मात्र से एक पूर्ण विश्रान्ति का अनुभव होता है। पिण्डलियों के बाद अब घुटनों को देखते हुए उनको स्वस्थ, तनाव-रहित एवं पूर्ण विश्राम की अवस्था में अनुभव करें। मन ही मन जंघाओं को देखें और उनको भी पूर्ण विश्राम की दशा में अनुभव करें। जंघाओं के बाद शनैः-शनैः शरीर के ऊपरी भाग कमर, पेडू, पेट एवं पीठ को सहजतापूर्वक देखते हुए पूर्ण स्वस्थ और तनाव-रहित अवस्था में अनुभव करें। अब शान्त भाव से मन को हृदय पर केन्द्रित करते हुए हृदय की धड़कन को सुनने का प्रयत्न करें। हृदय के दिव्यनाद का श्रवण करते हुए विचार करें कि मेरा हृदय पूर्ण स्वस्थ, तनाव-रहित एवं पूर्ण विश्राम की अवस्था में है, कोई रोग या विकार मेरे हृदय में नहीं है। अब हृदय एवं फेफड़ों को शिथिल करते हुए अपने कन्धों को देखें और उनको तनाव-रहित, नितान्त शिथिल अवस्था में अनुभव करें। फिर क्रमश भुजाओं कोहनियों, कलाइयों-सहित दोनों हाथों की अंगुलियों एवं अंगूठों को भी देखें और पूरे हाथ को तनाव-रहित, ढीला एवं पूर्ण विश्राम की अवस्था में अनुभव करें।

अब अपने चेहरे को देखें और विचार करें कि मेरे मुख पर चिन्ता, तनाव एवं निराशा का कोई भी अशुभ भाव नहीं है। मेरे मुख पर प्रसन्नता, आनन्द, आशा एवं शान्ति का दिव्यभाव है। आँखें, नाक, कान, मुख आदि-सहित पूरे चेहरे पर असीम आनन्द का भाव है। अब तक हमने मन के शुभभाव और दिव्य संकल्प के द्वारा शरीर को पूर्ण विश्रान्ति प्रदान की है। अब मन को विश्रान्ति प्रदान करनी है, मन को भी शिथिल करना है। हमें मन में उठते हुए संकल्पों के भी पार जाना है। इसके लिए हमें आत्मा का आश्रय लेना होगा। विचार करें- मैं नित्य शुद्ध-बुद्ध, निर्मल, पावन, शान्तिमय, आनन्दमय, ज्योतिर्मय अमृतपुत्र आत्मा हूँ। मैं सदा ही पूर्ण एवं शाश्वत हूँ। मुझमें किसी चीज का अभाव नहीं है, अपितु मैं सदा ही भाव एवं श्रद्धा से परिपूर्ण हूँ। मैं सच्चिदानन्द भगवान् का अंश हूँ। मैं भगवान् का अमृतपुत्र हूँ। मैं प्रकृति, शरीर, इन्द्रियों एवं मन के बन्धन से रहित हूँ। मेरा वास्तविक आश्रय तो मेरा प्रभु है। बाहर की समृद्धि के घटने एवं बढ़ने से मैं दरिद्र, दीन, अनाथ अथवा सनाथ अथवा राजा नहीं हो जाता। मैं तो सदा एकरस हूँ। जो परिवर्तन हो रहे हैं, वे जगत् के धर्म हैं, मुझ आत्मा के धर्म नहीं। इस प्रकार आत्मा की दिव्यता का चिन्तन करते हुए अपने नकारात्मक विचारों को हटायें; क्योंकि नकारात्मक विचार से ही व्यक्ति दुःखी, अशान्त एवं परेशान होता है। नकारात्मक चिन्तन से व्यक्ति को मानसिक अवसाद (डिप्रेशन) होता है और व्यक्ति सदा ही मानो दुःख के सागर में डूबा-सा रहता है। सकारात्मक चिन्तन से व्यक्ति प्रतिकूल अवस्थाओं में भी सम, प्रसन्न और आनन्दित रह सकता है। इसलिए व्यक्ति को केवल शवासन या योगनिद्रा के समय ही नहीं, दिन में भी सदा ही सकारात्मक चिन्तन करना चाहिए। इस प्रकार हमने आत्मा की दिव्यता का सकारात्मक विचार करते हुए मन को विश्रान्ति दी और अब परमात्मा के दिव्य स्वरूप का ध्यान करते हुए आत्मा को भी पूर्ण विश्राम प्रदान करेंगे।

विचार करें कि आपका आत्मा शरीर से बाहर निकल आया है और शरीर के ऊपर आकाश में स्थिर होकर आप आत्मभाव से शरीर को ऐसा ही अनुभव कर रहे हैं, जैसा कि कोई शव भूमि पर लेटा हुआ हो। इसलिए इस स्थिति को शवासन कहते हैं। अब आप अपनी चेतना-शक्ति आत्मा को अनन्त आकाश में व्याप्त सच्चिदानन्द स्वरूप भगवान् के प्रति समर्पित कर दें। विचार करें कि आपके आत्मा को चारों ओर से भगवान् का दिव्य आनन्द प्राप्त हो रहा है। भगवान् की सृष्टि का जो दिव्य सुख है, उसका अनुभव करें। भगवान् के प्रति समर्पित होकर जो भी शुभ संकल्प किया जाता है, वह पूर्ण होता है। आप विचार करें, भगवान् की सृष्टि की दिव्यताओं का और फिर इस अद्भुत प्रकृति की रूप-रचना का ध्यान करते हुए भगवान् की दिव्यता का संकल्प करें। विचार करें कि आप किसी सुन्दर मनोहारी फूलों की घाटी में हैं, जहाँ तरह-तरह के पुष्पों की सुन्दर कलियों के मनभावन सुगन्ध से पूरा वातावरण सुरभित हो रहा है। चारों ओर एक दिव्यता है।

 

भगवान् की एक-एक लीला देखते ही बनती है। कोई अन्त नहीं, भगवान् की महिमा का। इन्हीं पुष्पवाटिकाओं के साथ विविध वृक्षों पर सुन्दर फल लगे हैं, हर फल को विधाता परमेश्वर ने अलग-अलग रसों से भरा है। चारों ओर से मन्द-मन्द मनभावन समीर बहता हुआ आनन्द प्रदान कर रहा है। हर कली, हर फूल और फल से भगवान् के साक्षात् दर्शन हो रहे हैं। आकाश की ओर आँखें उठाकर देखें तो ऐसा लगे कि चाँद और तारे तथा सूरज मानो भगवान् के विशाल ब्रह्माण्ड-रूपी मन्दिर में दीपक की भाँति जलकर सबको प्रकाशित कर रहे हैं। नदियाँ बहती हुई मानो भगवान् के पाद-प्रक्षालन कर रही हैं। कितना महान्, असीम, अपरिमित, अनन्त है वह  ब्रह्म हे प्रभो! हे जगत्-जननी माँ! मुझ पुत्र को भी अपनी शरण में ले लो । अपना दिव्य आनन्द माँ मुझे प्रदान करो। प्रभो! मुझे सदा तुम्हारी दिव्यता, शान्ति एवं ज्योति प्राप्त होती रहे। मैं सदा तेरी ही अनन्त महिमा का चिन्तन करता हुआ तुझमें ही रमण करूँ, तेरे ही अनन्त आनन्द में निमग्न रहूँ। हे प्रभो! मुझे जगत् के विकारी भावों से सदा के लिए हटाकर अपनी आनन्दमय गोद में ले लो।

इस प्रकार, भगवान् की दिव्यता का अनुपम आनन्द लेकर पुन अपने आपको इस शरीर में अनुभव करें। विचार करें कि आप योगमयी निद्रा से पुन इस शरीर में आ गये हैं। श्वास-प्रश्वास चल रहा है। श्वास के साथ जीवनीय प्राण की महान् शक्ति आपके भीतर प्रवेश कर रही है। अपने आपको स्वस्थ, प्रसन्न एवं आनन्दित अनुभव करें और जिस तरह से शरीर को संकल्प के द्वारा शिथिल किया था, उसी तरह से दिव्य संकल्प के साथ पूरे शरीर में नई शक्ति, आरोग्य तथा दिव्य चेतना और आनन्द का अनुभव करें। पैर के अंगूठे के सिर पर्यन्त प्रत्येक अंग को देखें और जिस-जिस अंग को देखते जायें, उस-उस अंग को पूर्ण स्वस्थ अनुभव करें। जैसे किसी को घुटनों अथवा कमर में दर्द है तो वह विचार करें कि मेरा दर्द बिल्कुल दूर हो गया है। योग के अभ्यास तथा भगवान् की कृपा से मेरे घुटने एवं कमर में कोई पीड़ा नहीं है; क्योंकि योग के अभ्यास से इन रोगों के मूल कारण का ही अन्त हो गया है। दर्द बाहर निकल रहा है। इसी प्रकार पेट और हृदय का भी कोई रोग हो तो उसके ठीक होने का विचार करें। यदि कोई हृदय की नलिकाओं में अवरोध है, कोलेस्ट्रॉल आदि बढ़ा हुआ है तो अपने-अपने रोगों के ठीक होने का विचार करें। यह संकल्प करें कि मेरे शरीर से सभी विजातीय तत्त्व, रोग एवं विकार निकल रहे हैं, मैं पूर्ण स्वस्थ हो रहा हूँ। इस तरह विचार करते हुए अपने आपको शारीरिक तथा मानसिक रूप से पूर्ण स्वस्थ अनुभव करें।

अन्त में दोनों हाथों को भी पूर्ण स्वस्थ तथा शक्तिशाली अनुभव करते हुए दोनों हाथों को आपस में रगड़ें और गर्म-गर्म हथेलियों को आँखों पर रखकर धीरे-धीरे आँखें खोल लें। यह शवासन और योगनिद्रा की संक्षिप्त विधि है। यदि किसी को नींद न आती हो तो सोने से पहले शवासन करें और शवासन में पूरे शरीर को पूर्ण-निर्दिष्ट विधि से ढीला एवं तनाव-रहित छोड़कर भगवान् की दिव्यता तथा अपने मन को श्वास-प्रश्वास पर केन्द्रित करके प्रत्येक श्वास-प्रश्वास के साथ ‘ओम्’ का अर्थपूर्वक ध्यान करना चाहिए।

‘ओम्’ का अर्थ है- सच्चिदानन्द स्वरूप परमात्मा, ओंकार प्रभु सदा ही सत्य स्वरूप, चैतन्य तथा आनन्दमय है। मैं भी ओंकार प्रभु की उपासना से आनन्दित हो रहा हूँ। ऐसा विचार करते हुए ‘ओम्’ का अर्थपूर्वक जप करना चाहिए। श्वास-प्रश्वास की गति सहज होनी चाहिए। इसी प्रक्रिया में 100 से 1 तक उल्टी गिनती हुए प्रत्येक संख्या के साथ ‘ओम्’ का जप करते हुए भी यह प्रक्रिया कर सकते हैं। जैसे ओम् 100, ओम् 99, ओम् 98 आदि। इस प्रकार जप करने से थोड़ी ही देर में गाढ़ निद्रा आ जायेगी तथा बुरे स्वप्न से भी छुटकारा मिलेगा। दैनिक योगाभ्यास के दौरान कठिन आसन के बाद विश्राम हेतु इस आसन को करते रहना चाहिए। योगासनों के अभ्यास के अन्त में इसे 5 से 10 मिनट करना चाहिए।

लाभ-

A मानसिक तनाव (डिप्रेशन), उच्च रक्तचाप, हृदयरोग तथा अनिद्रा के लिए यह आसन सर्वोत्तम है। इन रोगियों को यह आसन नियमित करना चाहिए।

A इस आसन के करने से स्नायु-दुर्बलता, थकान तथा नकारात्मक चिन्तन दूर होता है।

A शरीर, मन, मस्तिष्क एवं आत्मा को पूर्ण विश्राम, शक्ति, उत्साह एवं आनन्द मिलता है।

A ध्यान की स्थिति का विकास होता है।

A आसन करते हुए बीच-बीच में शवासन करने से थोड़े ही समय में शरीर की थकान दूर हो जाता है।