header-logo

AUTHENTIC, READABLE, TRUSTED, HOLISTIC INFORMATION IN AYURVEDA AND YOGA

AUTHENTIC, READABLE, TRUSTED, HOLISTIC INFORMATION IN AYURVEDA AND YOGA

कमर दर्द, रीढ़ की हड्डी और साइटिका के लिए योगासन (Asana for Backache, Spine and Sciatica)- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

विशेष आसन

यहां जिन आसनों का वर्णन करेंंगे वे मुख्यतः कमर दर्द, सर्वाइकल स्पाण्डलाइटिस, स्लिप डिस्क, सिटाटिका आदि मेरुदण्ड संबंधित सभी रोगों को दूर करने के लिए विशेष उपयोगी है।

चक्रासन

विधि-

A पीठ के बल लेटकर घुटनों को मोड़े। एड़ियाँ नितम्बों के समीप लगी हुई हों।

A दोनों हाथों को उल्टा करके कन्धों के पीछे थोड़े अन्तर पर रखें, इससे सन्तुलन बना रहता है।

A श्वास अन्दर भरकर कटिप्रदेश एवं छाती को ऊपर उठायें।

A धीरे-धीरे हाथ एवं पैरों को समीप लाने का प्रयत्न करें, जिससे शरीर की चक्र जैसी आकृति बन जाये।

A आसन से वापस आते समय शरीर को ढीला करते हुए कमर भूमि पर टिका दें। इस प्रकार 3 से 4 आवृत्ति करें।

 

Chakrasan picture

 

लाभ-

A रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाकर वृद्धावस्था नहीं आने देता। जठर एवं आँतों को सक्रिय करता है।

A शरीर में स्फूर्ति, शक्ति एवं तेज की वृद्धि करता है।

A कटिपीड़ा, श्वासरोग,सिर-दर्द, नेत्रविकारों एवं सर्वाइकल स्पॉण्डलाइटिस में यह विशेष हितकारी है।

A हाथ-पैरों की मांसपेशियों को सबल बनाता है।

A महिलाओं के गर्भाशय के विकारों को दूर करता है।

मर्कटासन-1

विधि- सीधे लेटकर दोनों हाथों को कन्धों के समानान्तर फैलायें, हथेलियाँ आकाश की ओर खुली रहें; फिर दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर नितम्ब के पास लायें। अब घुटनों को दायीं ओर झुकाते हुए दोनों घुटनों और एड़ियों को परस्पर मिलाकर भूमि पर टिकायें, गर्दन को बायीं ओर मोड़कर रखें; इस तरह से बायीं ओर मोड़कर रखें; इसी तरह से बायीं ओर से भी इस आसन को करें, यह ‘मर्कटासन-1’ कहलाता है।

मर्कटासन-2

विधि- पीठ के बल लेटकर दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर नितम्बों के पास रखें, पैरों में लगभग डेढ़ फुट का अन्तर रखें (दोनों हाथ कन्धों की सीध में फैले हुए हथेलियां ऊपर की ओर हों)। अब दायें घुटने को दायीं ओर झुकाकर भूमि पर टिका दें, बायें घुटने को इतना झुकायें कि वह दायें पैर के पंजे से स्पर्श करे, गर्दन को बायीं ओर अर्थात् विपरीत दिशा में मोड़कर रखें। इसी प्रकार से दूसरे पैर से भी करें। इसे ‘मर्कटासन-2’ कहते हैं।

मर्कटासन-3

विधि- सीधे लेटकर दोनों हाथों को कन्धों के समानान्तर फैलायें, हथेलियाँ आकाश की ओर खुली हों दायें पैर को 90 डिग्री (900) उठाकर धीरे-धीरे बायें हाथ के पास ले जायें, गर्दन को दायीं ओर मोड़कर रखें, कुछ समय इसी स्थिति में रहने के बाद पैर को 90 डिग्री (900) पर सीधे उठाकर धीरे-धीरे भूमि पर टिका दें। इसी तरह बायें पैर से इस क्रिया को करें।

अन्त में दोनों पैरों को एक साथ 90 डिग्री (900) पर उठाकर बायें ओर हाथ के पास रखें, गर्दन को विपरीत दिशा में मोड़ते हुए दायीं ओर देखें, कुछ समय पश्चात् पैरों को यथापूर्व सीधा करें। इसी तरह दोनों पैरों को उठाकर दायीं ओर हाथ के पास रखें। गर्दन को बायीं ओर मोड़ते हुए बायीं ओर देखें, यह एक आवृत्ति हुई। यह सम्पूर्ण क्रिया ‘मर्कटासन-3’ कहलाती है। इस प्रकार 3 से 4 आवृत्ति करें।

सावधानी-

  1. जिनको कमर में अधिक दर्द हो, वे दोनों पैरों से एक साथ न करें। उनको एक-एक पैर से ही 2-3 आवृत्ति करनी चाहिए।

लाभ-

A पेट-दर्द, दस्त, कब्ज एवं गैस को दूर करके पेट को हल्का बनाता है। नितम्ब तथा जोड़ों के दर्द में विशेष लाभदायक है।

A कमर-दर्द, सर्वाइकल स्पॉण्डिलाइटिस, स्लिप डिस्क एवं साइटिका में विशेष लाभप्रद आसन है।

कटि-उत्तानासन

विधि-

A शवासन में लेटकर दोनों पैरों को मोड़कर रखें। दोनों हाथ दोनों ओर पार्श्व में फैलाकर रखें।

A श्वास अन्दर भरते हुए पीठ को ऊपर की ओर खींचे। नितम्ब तथा कन्धे भूमि पर टिके हुए हों। फिर श्वास छोड़ते हुए पीठ को नीचे भूमिपर दबाकर पूरा सीधा कर दें। इस प्रकार यह अभ्यास 8 से 10 बार तक करें।

लाभ- स्लिप डिस्क, सियाटिका एवं कमर-दर्द में विशेष उपयोगी है।

Uttanasana

मकरासन

विधि- उदर के बल लेटकर हाथों की कोहनियों को मिलाकर स्टैण्ड बनाते हुए हथेलियों को ठोड़ी के नीचे लगाकर, छाती को ऊपर उठायें। घुटनों से लेकर पंजों तक पैरों को सीधा तानकर रखें, अब श्वास भरते हुए पैरों को क्रमश पहले एक-एक तथा बाद में दोनों पैरों को एक साथ मोड़ें, मोड़ते समय पैरों की एड़ियाँ नितम्बों का स्पर्श करें, श्वास बाहर छोड़ते हुए पैरों को सीधा करना ‘मकरासन’ कहलाता है। इस प्रकार 10-12 आवृत्ति करें।

लाभ-

A स्लिप डिस्क (रीढ़ की गोटियों का इधर-उधर खिसक जाना), सर्वाइकल स्पॉण्डिलाइटिस (गर्दन व उसके पीछे वाले हिस्से में दर्द का होना) एवं सियाटिका (कुल्हों का दर्द) के लिए बहुत लाभकारी अभ्यास है।

A अस्थमा (दमा और फेफड़े-सम्बन्धी किसी भी विकार) तथा घुटनों के दर्द के लिए विशेष कारगर है तथा पैरों को सुडौल बनाता हैं।

भुजंगासन 1

विधि- उदर के बल लेटकर हाथों की हथेलियां भूमि पर रखते हुए हाथों को छाती के दोनों ओर रखकर कोहनियां ऊपर उठी हुई तथा भुजाएं छाती से सटी हुई होनी चाहिए। पैरों को सीधा रखकर पंजों को एक साथ मिलाकर पीछे की ओर खींचकर रखें। श्वास अन्दर भरकर छाती एवं सिर को धीरे-धीरे ऊपर उठायें। नाभि के नीचे वाला भाग भूमि पर टिका रहे, सिर व गर्दन को अधिकाधिक पीछे की ओर मोड़ें; इस स्थिति में लगभग 30 सैकेण्ड तक रुकें, तत्पश्चात् धीरे-धीरे प्रारम्भिक अवस्था में आ जायें। इस पूरी प्रक्रिया को ‘भुजङ्गासन (प्रथम)’ कहते हैं। इस क्रिया को 3 से 5 बार दोहरायें।

शलभासन-1

विधि- उदर के बल लेटकर दोनों हाथों को जंघाओं के नीचे रखें, ठुड्डी जमीन पर लगी रहेगी। श्वास अन्दर भरकर दायें पैर को बिना घुटना मोड़े ऊपर उठाकर 10 से 30 सैकेण्ड तक इस स्थिति में रहें। सामान्य स्थिति में आकर पुन बायें पैर से अभ्यास करें। इस प्रकार 5 से 7 आवृत्ति करें।

अब दोनों पैरों को एक साथ मिलाकर बिना घुटने मोड़े हथेलियों का रुख अपनी सुविधानुसार ऊपर या नीचे की ओर रखें, (सभी अंगुलियाँ मिली रहेंगी) अब ऊपर की ओर उठें, इसमें नाभि से नीचे तक का भाग ऊपर उठ जाएगा। यह क्रियाभ्यास ‘शलभासन-1’ कहलाता है।

लाभ- मेरुदण्ड के नीचे वाले भाग में होने वाले सभी रोगों को दूर करता है। कमर-दर्द एवं सियाटिका दर्द में विशेष लाभप्रद है। फेफडे मजबूत बनते हैं, कब्ज टूटती है। यौन-रोगों में लाभकारी है।

Sciatica

शलभासन-2

विधि- उदर के बल लेटकर दायें हाथ को कान तथा सिर से स्पर्श करते हुए सीधा रखें तथा बायें हाथ को पीछे कमर के ऊपर रखकर श्वास अन्दर भरते हुए आगे से सिर एवं दायें हाथ को तथा पीछे से बायें पैर को भूमि से ऊपर उठाकर, थोड़ी देर इस अवस्था में रुककर शनैः-शनैः वापस आयें, इसी प्रकार बायीं ओर से इस आसन को करें। यह आसन ‘शलभासन-2’ कहलाता है।

शलभासन-3

विधि- उदर के बल लेटकर दोनों हाथों को पीठ के पीछे ले जाकर सीधा रखते हुए, एक दूसरे हाथ की कलाइयों को पकड़ें, श्वास भरकर सिर व छाती को अधिकाधिक ऊपर उठायें (पीछे से हाथों को खींचकर रखें), दृष्टि आकाश की ओर जमी रहेगी। इस प्रक्रिया को ‘शलभासन-3’ कहते हैं।

लाभ- पूर्ववत्।

उष्ट्रासन

विधि-

A वज्रासन की स्थिति में बैठे।

A अब एड़ियों को खड़ा करके उन पर दोनों हाथों को रखें। हाथों को इस प्रकार रखें कि अंगुलियाँ अन्दर की ओर तथा अंगुष्ठ बाहर को हों।

A श्वास अन्दर भरकर सिर एवं ग्रीवा को पीछे मोड़ते हुए कमर को ऊपर उठायें। श्वास छोड़ते हुए एड़ियों पर बैठ जायें। इस प्रकार तीन-चार आवृत्ति करें।

लाभ-

A यह आसन श्वसन-तत्र के लिए बहुत लाभकारी है। फेफड़ों के प्रकोष्ठ को सक्रिय करता है, जिससे दमा के रोगियों को लाभ होता है।

A सर्वाइकल स्पॉण्डलाइटिस एवं सियाटिका आदि समस्त मेरुदण्ड के रोगों को दूर करता है।

A थायरॉइड के लिए लाभकारी है।

और पढ़े- थायरॉइड रोग का घरेलू इलाज

अर्धचन्द्रासन

विधि-

A उष्ट्रासन की स्थिति में घुटनों के बल हो जायें। दोनों हाथों को छाती पर रखें।

A श्वास अन्दर भरकर ग्रीवा एवं सिर को पीछे की ओर झुकाते हुए कमर को ऊपर की ओर तानें।

A जब सिर को पीछे झुकाते हुए एड़ियों पर टिका देते हैं, तब यह पूर्ण चन्द्रासन होता है।

लाभ-

A इसके सभी लाभ उष्ट्रासन के समान हैं। जो उष्ट्रासन नहीं कर सकते, वे इस आसन से लाभान्वित हो सकते हैं।

त्रिकोणासन

विधि-

A दोनों पैरों के बीच में लगभग डेढ़ फुट का अन्तर रखते हुए सीधे खड़े हो जाएं। दोनों हाथ कन्धों के समानान्तर पार्श्वभाग में खुले हुए हों।

A श्वास अन्दर भरते हुए बायें हाथ को सामने से लेते हुए बायें पंजे के पास भूमि पर टिका दें अथवा हाथ को एड़ी के पास लगायें तथा दायें हाथ को ऊपर की तरफ उठाकर गर्दन को दायीं ओर घुमाते हुए दायें हाथ को देखें। फिर श्वास छोड़ते हुए पूर्व स्थिति में आकर इसी अभ्यास को दूसरी ओर से भी करें।

लाभ-

A कटिप्रदेश लचीला बनता है। पार्श्वभाग की चर्बी को कम करता है। पृष्ठांश की मांसपेशियों पर बल पड़ने से उनकी संरचना सुधरती है। छाती का विकास होता है।

पादहस्तासन

विधि- सीधे खड़े होकर श्वास अन्दर भरते हुए हाथों को ऊपर उठाते हुए सामने झुक जायें। सिर घुटनों में लगा दें। हाथ पीछे पिण्डलियों के पास रहेंगे।

लाभ- कमर एवं पेट को स्वस्थ बनाता है। कद-वृद्धि के लिए अति लाभप्रद है।

Back pain

और पढ़े- घुटनों में दर्द होने पर घरेलू इलाज