वानस्पतिक नाम : Bixa orellana Linn. (बिक्सा ओरलेना)
Syn-Bixa americana Poir.
कुल : Bixaceae (बिक्सेसी)
अंग्रेज़ी में नाम : Annatto (अन्नाटो)
संस्कृत-सिन्दुरी, रक्तबीजा, रक्तपुष्पा, सुकोमला; हिन्दी-सिन्दुरिया, लटकन, सदा सुहागन; असमिया-जरट (jarat); उड़िया-गुलबस (Gulbas); कोंकणी-केसरी (Kesri); कन्नड़-कप्पूमानकाला (Kappumankala), रंगमाले (Rangmale); गुजराती-सिंधूरी (Sindhuri), लटकन दाना (Latkan dana); तमिल-कूंरुगू–मनजल (Kurungu-manjal), जाफर (Jafer), सपिरा (Sappira); तेलुगु-जापहर (Jaaphara), जाफर (Jaffer), जफरचेट्टु (Jaffarchettu); बंगाली-वटकन (Watkana), लटकन (Latkan); मराठी-केसरी (Kesari), शेन्द्राr (Shendri); मलयालम-कूप्पामन्नल (Kuppamannal) ।
अंग्रेजी-लिपिस्टिक ट्री (Lipistic tree), अन्नाटो प्लान्ट (Annatto plant)।
परिचय
भारत के समस्त उष्ण, उष्णकटिबंधीय भागों में मुख्यत दक्षिण बंगाल आसाम तथा मैसूर में इसकी खेती की जाती है। इसके फलों के बाह्य भाग पर सिन्दुर जैसा रजावरण होता है, इसलिए इसे सिन्दुरिया कहते हैं। इसके बीज से प्राप्त लाल रंग का प्रयोग खाद्य पदार्थों को रंगने में किया जाता है। यह 2-6 मी तक ऊँचा, सुंदर, शाखा-प्रशाखायुक्त, बृहत् क्षुप अथवा छोटा सदाहरित वृक्ष होता है। इसके पुष्प श्वेत अथवा गुलाबी वर्ण के तथा सुंगधित होते हैं। इसके फल रक्ताभ-भूरे वर्ण के तथा रक्त वर्ण के गूदे से आवरित, होते हैं।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
सिन्दुरिया कटु, तिक्त, कषाय, शीत, लघु तथा कफवातशामक होता है।
यह विष, तृष्णा, शिरोरोग, रक्तदोष, छर्दि, पित्तविकार, वातरक्त तथा भूतबाधानाशक होता है।
इसकी फल मज्जा प्रवाहिकारोधी, रक्तस्तम्भक, मूत्रल, विरेचक, ज्वरघ्न तथा पाचक होती है।
इसके बीज स्तम्भक तथा ज्वरघ्न होते हैं।
इसके पत्र ज्वरघ्न तथा अर्बुदरोधी होते हैं।
इसकी मूल नियतकालिक अवस्थारोधी होती है।
इसकी मूलत्वक् ज्वररोधी तथा नियतकालिक अवस्थारोधी होती है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
- कण्ठदाह-सिन्दुरिया पत्र का क्वाथ बनाकर गरारा (Gargle) करने से कण्ठ दाह का शमन होता है।
- प्रवाहिका-15-30 मिली सिन्दुरिया पत्र फाण्ट का सेवन करने से प्रवाहिका में लाभ होता है।
- सिन्दुरिया मूल त्वक् तथा बीजों का क्वाथ बनाकर 15-30 मिली मात्रा में सेवन करने से अतिसार तथा प्रवाहिका में लाभ होता है।
- यकृत्विकार-सिन्दुरिया शाखाओं का क्वाथ बनाकर 15-30 मिली मात्रा में पीने से यकृत्-विकारों में लाभ होता है।
- कामला-सिन्दुरिया पत्र का क्वाथ बनाकर 15-30 मिली मात्रा में पीने से कामला में लाभ होता है।
- त्वक्-विकार-सिन्दुरिया मूल-त्वक् तथा बीजों को पीसकर लेप करने से कुष्ठ तथा पामा में लाभ होता है।
- दग्ध-सिन्दुरिया फल मज्जा को पीसकर दग्ध स्थान पर लगाने से लाभ होता है।
- कुष्ठ-सिन्दुरिया बीज तैल को कुष्ठ प्रभावित स्थान पर लगाने से कुष्ठ में लाभ होता है।
- व्रण-सिन्दुरिया पत्र को पीसकर व्रण पर लगाने से व्रण का शीघ्र रोपण होता है।
- ज्वर-सिन्दुरिया मूल त्वक् का क्वाथ बनाकर 15-30 मिली मात्रा में पीने से ज्वर में लाभ होता है।
- सिन्दुरिया के बीजों का क्वाथ बनाकर 15-30 मिली मात्रा में पीने से ज्वर का शमन होता है।
प्रयोज्याङ्ग : पत्र, मूल, मूलत्वक् तथा बीज।
मात्रा : क्वाथ 10-30 मिली, चूर्ण-1-3 ग्राम या चिकित्सक के परामर्शानुसार।