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ब्राह्मी :(मण्डूकपर्णी)

वानस्पतिक नाम : Centella asiatica (Linn)

Urban (सेन्टेला एशियाटिका)

Syn-Hydrocotyle asiatica

Linn.

कुल : Apiaceae  (एपिएसी)

अंग्रेज़ी नाम : Indian pennywort

(इण्डियन पेनीवर्ट)

संस्कृत-मण्डूकपर्णी, माण्डूकी, ब्राह्मी, सरस्वती, मडूकी, दिव्या, सुप्रिया, ब्रह्ममाण्डूकी, दर्दुच्छदा; हिन्दी-ब्राह्ममाण्डूकी मण्डूकपर्णी; उर्दू-ब्राह्मी (Barhmi); उड़िया-लंबक (Lambak); असमिया-मानीमुनी (Manimuni); कन्नड़-उरेज (Urage), वोंडेलाजे (Vondelage); गुजराती-खड़ब्राह्मी (Khadbrahmi), मोटी ब्राह्मी (Moti brahmi);  तेलुगु-मण्डूक ब्राह्मी (Manduk brahmi), सरस्वातकू (Saraswataku); तमिल-बल्लौ (Ballo), वल्लरै (Vallerei); बंगाली-थानकुनी (Thankuni); नेपाली-घोडापे (Ghodaapre), गोलपात (Golpat); मराठी-कारिवणा (Karivana), ब्राह्मी (Brahmi); मलयालम-कोण्डागल (Kondagal), मुयालचेवी (Muyalchevi)।

अंग्रेजी-मॉर्श पेनीवर्ट (Marsh pennywort), शीप रौट (Sheep rot); अरबी-झार्नीबा (Jharniba); फारसी-सार्देतुर्कास्तन (Sardeturkastan)।

परिचय

इसकी प्रसरणशील लता अल्प सुगन्धित, दुर्बल तथा कोमल होती है। मण्डूक के समान पत्र वाली तथा मण्डूकवत् इतस्तत फैलने के कारण इसे मण्डूकपर्णी कहा गया है। यह बूटी सम्पूर्ण भारतवर्ष में जलाशयों के किनारे उत्पन्न होती है परन्तु हरिद्वार से लेकर लगभग 600 मी की ऊँचाई तक यह विशेष रूप से दर्शन देती हुई आभास कराती है कि यह विशेष रूप से ब्रह्म प्रभावित क्षेत्र है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिव्य बूटी के सेवन से ब्रह्म की साधना में मदद मिलती है। इसी से साधक जन प्राय इस बूटी का सेवन करते रहते हैं। वैदिक काल में माण्डूकी द्रव्य का वर्णन मिलता है। संहिताग्रन्थ में मेध्य रसायन के रूप में मण्डूकपर्णी का विवेचन किया गया है। निघण्टु ग्रन्थों में मण्डूकपर्णी और ब्राह्मी को एक-दूसरे का पर्याय बतलाकर संदिग्धता उत्पन्न कर दी गई, किन्तु आजकल मण्डूकपर्णी से Centella asiatica और ब्राह्मी से Baccopa monnieri का ग्रहण करते हैं। चरक-संहिता के अपस्मार चिकित्सा में वर्णित ब्राह्मीघृत, ब्राह्मी-रसायन व शाकवर्ग में

मण्डूकपर्णी का उल्लेख प्राप्त होता है। चरक-संहिता में निर्दिष्ट किया गया है कि उदररोग से पीड़ित रोगी एवं विष पीड़ित रोगी के लिए इसका शाक पथ्य है। इसके अतिरिक्त वयस्थापन महाकषाय तथा तिक्तस्कन्ध में भी मण्डूकपर्णी का उल्लेख प्राप्त होता है। सुश्रुत-संहिता में शाक-वर्ग तथा ब्राह्मीघृत एवं ब्राह्मी-रसायन आदि योगों में इसका उल्लेख प्राप्त होता है।

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

  1. मण्डूकपर्णी स्मृतिवर्धक, बुद्धिवर्धक, मेध्य तथा कुष्ठ, पांडु एवं मस्तिष्क के विकारों में लाभकारी है। यह हृदय के लिए बलकारक, स्तन्यजनन, स्तन्य-शोधक, व्रणरोपक, व्रणशोधक, वयस्थापक एवं रसायन है।
  2. मण्डूकपर्णी का अर्क पाण्डु रोग, विषदोष, शोथ तथा ज्वर-शामक होता है।
  3. इसका शाक कटु, तिक्त, शीत, वातकारक तथा कफपित्तशामक होता है।
  4. यह श्वास-नलिका शोथ, प्रतिश्याय, श्वेतप्रदर, वृक्करोग, मूत्रमार्गगतशोथ, जलशोफ, रतिज विकार, तीव्र शिरशूल, पामा तथा त्वक् विकार-शामक होती है।
  5. यह तिक्त, मस्तिष्क बलवर्धक, बलकारक, कुष्ठरोधी, ज्वरघ्न, शोथरोधी, व्रणरोपक, मूत्रल, वाजीकारक तथा मधुमेहरोधी होती है।

औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि

  1. केश-विकार-1 चम्मच मण्डूकपर्णी पञ्चाङ्ग चूर्ण को सुबह-शाम नियमित रूप से कुछ हफ्ते सेवन करने से केश विकारों में लाभ हाता है। यह प्रयोग निर्बलता निवारण में भी लाभप्रद है।
  2. नेत्रव्रण-2-3 बूँद मण्डूकपर्णी पत्र स्वरस को नेत्र में डालने से नेत्र व्रण में लाभ होता है।
  3. पीनस-मण्डूकपर्णी, मरिच तथा कुलथी से निर्मित क्वाथ का सेवन करने से पीनस में अतिशय लाभ होता है, इस अवधि में सदा सुखोष्ण जल का सेवन करना चाहिए।
  4. स्वर-प्रसादनार्थ-100 ग्राम मण्डूकपर्णी, 100 ग्राम मुनक्का तथा 50 ग्राम शंखपुष्पी को चौगुने पानी में मिलाकर अर्क निकालें। इसके प्रयोग से शरीर स्वस्थ और आवाज साफ हो जाती है।
  5. मूत्रकृच्छ्र-मण्डूकपर्णी के 2 चम्मच रस में, एक चम्मच मिश्री मिलाकर सेवन करने से मूत्रकृच्छ्र में लाभ होता है।
  6. आमवात-आर्द्र शाक को पीसकर लेप करने से आमवात तथा श्लीपद में लाभ होता है।
  7. अस्थिभग्न-मण्डूकपर्णी पत्र स्वरस से सिद्ध तैल का प्रयोग अस्थिभग्न की चिकित्सा में किया जाता है।
  8. त्वक विकार-मण्डूकपर्णी स्वरस पत्र का लेप करने से पीड़िका, कण्डू, क्षत तथा व्रण का शमन होता है।
  9. मसूरिका-मण्डूकपर्णी स्वरस में मधु मिलाकर प्रयोग करने से मसूरिका व मानसिक लोगों में लाभ होता है।
  10. स्मरणशक्ति-1 भाग शुष्क मण्डूकपर्णी, 1 भाग बादाम गिरी तथा चौथाई भाग काली मिर्च को पानी से घोटकर 3-3 ग्राम की वटी बनाएं। एक-एक वटी का प्रात सायं दुग्ध के साथ सेवन करने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
  11. 3 ग्राम मण्डूकपर्णी, 3 ग्राम शंखपुष्पी, 6 ग्राम बादाम गिरी तथा 3 ग्राम छोटी इलायची के बीज को 50 मिली जल में घोट, छानकर मिश्री मिलाकर पिलाएं। स्मरणशक्ति के साथ-साथ यह योग खांसी, पित्तज्वर और जीर्ण उन्माद के लिए बहुत लाभदायक है।
  12. मण्डूकपर्णी का ताजा रस लेकर, उसमें समभाग घी मिलाकर घी सिद्ध कर लें, इस घी को 5 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से स्मरणशक्ति बढ़ती है। इसके पञ्चाङ्ग चूर्ण को दूध में मिलाकर सेवन करने से स्मरणशक्ति तेज होती है।
  13. उन्माद रोग-6 मिली मण्डूकपर्णी स्वरस में, 1 ग्राम कूठ चूर्ण तथा 6 ग्राम मधु मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से उन्माद में लाभ होता है।
  14. 3 ग्राम मण्डूकपर्णी, 2 नग काली मिर्च, 3 ग्राम बादाम गिरी तथा 25 ग्राम मिश्री को जल में घोट-छानकर सुबह-शाम पिलाएं, यह पित्तज जीर्ण व उन्माद में भी लाभकारी है।
  15. 3 ग्राम मण्डूकपर्णी तथा कुछ काली मिर्च को जल में घोट-छानकर दिन में 3-4 बार पिलाने से पुरातन मस्तिष्क शूल का शमन होता है तथा स्मरण-शक्ति की वृद्धि होती है।
  16. 1 ली मण्डूकपर्णी रस और 2.5 ग्राम मिश्री को मिलाकर मंदाग्नि पर पकाएं चाशनी बनाकर नीचे उतारकर तुरन्त छान लें। 15 से 25 मिली तक जल के साथ दिन में 3 बार पीने से मस्तिष्क दौर्बल्य, रक्त का दबाव कम होना और जीर्ण उन्माद आदि में लाभ होता है।
  17. मण्डूकपर्णी पत्र-स्वरस, बालवच, कूठ तथा शंखपुष्पी के कल्क के साथ गाय के पुराने घी का यथाविधि पान करें। यह घृत उन्माद, अपस्मार तथा अन्य पाप कर्मों से उत्पन्न होने वाले रोगों में लाभप्रद है।
  18. उन्माद-मण्डूकपर्णी स्वरस को समभाग धत्तूर पत्र-स्वरस में अथवा तृणराजवल्ली स्वरस में मिलाकर सेवन करने से उन्माद तथा अपस्मार रोग में लाभ प्राप्त होता है।
  19. अपस्मार-मण्डूकपर्णी स्वरस में दुग्ध मिलाकर सेवन करने से अपस्मार में लाभ होता है।
  20. निद्रानाश-3 ग्राम मण्डूकपर्णी चूर्ण को गाय के आधा ली कच्चे दूध में घोंट छानकर एक सप्ताह तक सेवन करने से पुराने निद्रानाश रोग में अवश्य लाभ हो जाता है।
  21. ताजी मण्डूकपर्णी के 5-10 मिली रस को 100-150 मिली धारोष्ण दूध में मिलाकर पीने से लाभ होता है। ताजी बूटी के अभाव में लगभग 5 ग्राम चूर्ण प्रयोग करें।
  22. दाह-5 ग्राम मण्डूकपर्णी के साथ धनिया मिलाकर रात भर भिगो दें। प्रात पीस, छानकर मिश्री मिलाकर पिलाएं।
  23. रक्तचाप-एक चम्मच मण्डूकपर्णी पत्र-स्वरस में आधा चम्मच शहद मिलाकर पीने से उच्च रक्तचाप सामान्य हो जाता है।
  24. जीर्ण ज्वर-5-10 मिली मण्डूकपर्णी स्वरस में 1-2 ग्राम मुलेठी चूर्ण को मिलाकर प्रयोग करने से जीर्ण ज्वर के कारण उत्पन्न वाक् दुष्टि में लाभ होता है।

रसायन वाजीकरण ः

  1. मेध्य रसायन-नियमित रूप से 5-10 मिली मण्डूकपर्णी स्वरस का 200 मिली गोदुग्ध के साथ सेवन करने से बल, अग्नि, वर्ण, स्वर, आयु एवं मेधा की वृद्धि होती है।
  2. 1 मास तक प्रतिदिन घृत में तले हुए 2-5 ग्राम मण्डूकपर्णी के पत्तों को खाने से तथा भोजन में अन्नरहित दूध एवं फल का सेवन करने से रसायन गुणों की वृद्धि होती है।

अहित प्रभाव  :मण्डूकपर्णी के अतियोग से कभी-कभी शीतजन्य वातवृद्धि के कारण मद, शिरशूल, भम और अवसाद उत्पन्न होते हैं। त्वचा में लालिमा और खुजली होती है। ऐसी अवस्था में मात्रा कम कर दें या प्रयोग बंद कर दें।

निवारण  :इसके अहितकर प्रभाव के निवारण के लिए विरेचन तथा अन्य वातशामक औषधियां, विशेषत सूखी धनिया उपयुक्त होती हैं।

प्रयोज्याङ्ग  :पञ्चाङ्ग तथा पत्र।

मात्रा  :स्वरस 10-20 मिली, चूर्ण 2-5 ग्राम।