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जब शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों पर अत्यधिक वसा का जमा हो जाती है, और उससे शरीर को नुकसान पहुंचने लगता है, तो इस अवस्था को मोटापा कहते हैं। लोग मोटापा कम करने के लिए अनेक उपाय करते हैं, लेकिन क्या आप यह जानते हैं, कि योग (yoga for diabetes) द्वारा भी आप मधुमेह, और मोटापा पर नियंत्रण पा सकते हैं।
आज यहां आपको मधुमेह, और मोटापा पर नियंत्रण पाने के लिए मुख्य आसनों की जानकारी दी जा रही है, जिनके प्रयोग से आप खुद को स्वस्थ बना सकेंगे।
आज मोटापा एक सामान्य रोग बन चुका है। मोटापे के कारण अनेक लोग परेशान रहते हैं। मोटापे के कारण अनेक तरह की बीमारियां, जैसे- मधुमेह (डायबिटिज) होने की संभावना बढ़ (yoga for diabetes control) जाती है। इसलिए लोग अपने अधिक वजन को कम करने, या मोटापा घटाने के लिए जिम जाते हैं, आहार पर नियंत्रण करते हैं। मोटापा को कम करने के लिए योग भी करते हैं, यहां जिन आसनों का वर्णन किया जा रहा है, वे सभी आसन पेट के लिए विशेष रूप से उपयोगी हैं।
यह सूची आपको मधुमेह-मोटापा पर नियंत्रण पाने में बहुत मदद पहुंचा सकती हैः-
सबसे पहले पीठ के बल सीधा लेट जायें। पैर को मिला लें। हाथों को दोनों ओर बगल में सटाकर, हथेलियां जमीन की ओर करके रखें। सांस अन्दर भरकर पैरों को धीरे-धीरे 30 डिग्री, फिर 60 डिग्री, और अन्त में 90 डिग्री तक उठायें। पैरों को उठाते समय हाथों से सहायता ले सकते हैं।
90 डिग्री पर यदि सीधा ना हो, तो 120 डिग्री पर पैर ले जाकर, हाथों को उठाकर कमर (yoga asanas for reducing waist side bulges) के पीछे लगायें। कोहनियां भूमि पर टिकी हुई हों।
पैरों को मिलाकर सीधा रखें। पंजे ऊपर की ओर तने हुए, एवं आंखें बन्द हों। इस दौरान पैर के अंगूठों पर नजर रखें। दो मिनट से शुरू करके धीरे-धीरे यह आसन आधे घण्टे तक किया जा सकता है।
वापस आते समय पैरों को सीधा रखते हुए, पीछे की ओर थोड़ा झुकायें। दोनों हाथों को कमर से हटाकर भूमि पर सीधा कर दें। अब हथेलियों से भूमि को दबाते हुए जिस क्रम से उठे थे, उसी क्रम से धीरे-धीरे पहले पीठ, और फिर पैरों को भूमि पर सीधा करें।
जितने समय तक सर्वांगासन किया जाए, लगभग उतने ही समय तक शवासन में विश्राम करें।
इस आसन का प्रतियोगी या पूरक आसन मत्स्यासन है। इसलिए शवासन में विश्राम से पूर्व मत्स्यासन करें। इससे अधिक लाभ होता है।
पीठ के बल लेट जायें। हथेलियां भूमि की ओर, और पैर सीधे, तथा पंजे मिले हुए हों। अब सांस अन्दर भरकर पैरों को 1 फुट तक (करीब 30 डिग्री तक) धीरे-धीरे ऊपर उठायें। कुछ समय तक इसी स्थिति में बने रहें।
इसके बाद वापस आते समय धीरे-धीरे पैरों को नीचे भूमि पर टिकायें, झटके के साथ नहीं। कुछ विश्राम कर फिर यही क्रिया करें। इसे 3 से 6 बार करना चाहिए।
जिनको कमर में अधिक दर्द रहता हो, वे एक-एक पैर से क्रमशः इसका अभ्यास करें।
पीठ के बल लेट जायें, अब सांस अन्दर भरते हुए धीरे-धीरे पैरों को उठायें। पहले 30 डिग्री, फिर 60 डिग्री, फिर 90 डिग्री तक उठाने के बाद, पैरों को सिर के पीछे की ओर, और पीठ को भी ऊपर उठाते हुए सांस बाहर निकालते हुए ले जाएं।
पैरों को सिर के पीछे भूमि पर टिका दें। सांस की गति सामान्य रहेगी। शुरुआत में हाथों को सुविधा के अनुसार कमर के पीछे लगा सकते हैं। इस स्थिति में हाथ भूमि पर ही रखें। इस स्थिति में 30 सेकण्ड रहें।
वापस आते समय जिस क्रम से ऊपर आये थे, उसी क्रम से भूमि को हथेलियों से दबाते हुए पैरों को घुटनों से सीधा रखते हुए भूमि पर टिकाएं।
दोनों हाथों को जांघों के ऊपर रखकर सीधे लेटें। अब सांस अन्दर भरते हुए पहले सिर, एवं कन्धों को ऊपर, फिर पैरों को भी ऊपर उठायें। हाथ, पैर, एवं सिर समानान्तर नाव की तरह उठे हुए हों।
इस स्थिति में कुछ समय रुककर धीरे-धीरे हाथ-पैर, एवं सिर को भूमि पर सांस बाहर निकालते हुए ले आयें। इस प्रकार 3 से 6 बार कर सकते हैं। इस आसन का प्रतियोगी आसन धनुरासन है, यानि नौकासन के बाद धनुरासन करना चाहिए।
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सीधे लेटें, और दायें पैर के घुटने को छाती के पास लायें। दोनों हाथों की अंगुलियां आपस में फंसाकर घुटनों पर रखें। सांस बाहर निकालते हुए घुटने को दबाकर छाती से लगायें, एवं सिर को उठाते हुए घुटने से नाक का स्पर्श करें।
कुछ देर करीब 10 से 30 सैकेण्ड तक सांस को स्वाभाविक स्थिति में रखकर, या बाहर रोककर, फिर पैर को सीधा कर दें। इसी प्रकार दूसरे पैर से भी इसी क्रिया को करना, ‘पवनमुक्तासन-1’ कहलाता है।
पहले की तरह ही आगे बढ़ाते हुए, अब दूसरी स्थिति में दोनों पैरों को एक साथ, परस्पर समकोण मिलाएं (पंजे तने हुए हों), या 90 डिग्री (900) तक उठायें। फिर घुटने मोड़कर घुटनों को छाती के पास रखें।
दोनों हाथों से, दोनों घुटनों को पकड़कर छाती को दबायें, और सिर उठाकर नासिका को घुटनों से लगायें। सांस को बाहर रोककर रखें, अथवा स्वाभाविक रूप से सांस लें। यह ‘पवनमुक्तासन-2’ कहलाता है। इस क्रियाविधि को एक बार में 3 से 5 बार कर सकते हैं।
यदि कमर में अधिक दर्द हो, तो सिर उठाकर घुटने से नासिका ना लगायें। केवल पैरों को दबाकर छाती से स्पर्श करें। ऐसा करने से स्लिप डिस्क, सियाटिका एवं कमर-दर्द में पर्याप्त लाभ मिलता है।
सीधे लेटकर दोनों घुटनों को मोड़कर पैरों को नितम्ब के समीप रखें।
हाथों से पैर की एड़ी के ऊपरी हिस्से को पकड़ें।
सांस अन्दर भरकर कमर, एवं नितम्बों को उठायें। कन्धे, सिर, एवं एड़ियां भूमि पर टिके रहें। इस स्थिति में 15 से 20 सेकण्ड तक रुकें।
वापस आते समय सांसों को छोड़ते हुए धीरे-धीरे कमर को भूमि पर टिकायें। इस प्रकार 3 से 4 बार करें।
पद्मासन में बैठकर दायें हाथ की हथेली को पहले नाभि पर रखें, और बायें हाथ की हथेली दायें हाथ पर रखें। इसके बाद, सांस बाहर निकालते हुए, आगे झुककर ठोढ़ी भूमि पर टिकायें। सामने देखते रहें।
सांस अन्दर भरते हुए वापस आयें। इस तरह 4-5 बार करें।
पद्मासन में बैठकर, दोनों हाथों को पीठ के पीछे ले जाकर दायें हाथ से बायें हाथ की कलाई को पकड़ें। सांस बाहर छोड़ते हुए, भूमि पर ठोड़ी स्पर्श करें। नजर सामने रहे। ठोढ़ी यदि भूमि पर नहीं लगती है, तो जितना हो सके सामने झुकें।
इसमें योगमुद्रासन 1 की तरह ही लाभ होता है।
पद्मासन की स्थिति में बैठकर, हाथों से सहारा लेते हुए, पीछे कोहनियां टिकाकर लेट जायें।
हथेलियों को कन्धे से पीछे टेककर, उनसे सहारा लेते हुए ग्रीवा को जितना पीछे मोड़ सकते हैं, मोड़ें। पीठ और छाती ऊपर उठी हुई, तथा घुटने भूमि पर टिके हुए हों।
हाथों से पैर के अंगूठे पकड़कर कोहनियों को भूमि पर टिकायें। सांस अन्दर भरकर रखें।
आसन छोड़ते समय, जिस स्थिति में शुरू किया था, उसी स्थिति में वापस आयें, या कन्धे, एवं सिर को भूमि पर टिकाते हुए, पैरों को सीधा करके शवासन में लेट जायें।
यह सर्वांगासन का प्रतियोगी आसन है, इसलिए इसे सर्वांगासन के बाद करना चाहिए।
वज्रासन में बैठकर दोनों हाथों को सांस भरते हुए ऊपर उठायें। आगे झुकते हुए सांस बाहर छोड़ते हुए, एवं हाथों को आगे फैलाएं, और हथेलियां नीचे की ओर रखते हुए कोहनियों तक हाथों को भूमि पर टिका दें।
सिर भी भूमि पर टिका हुआ हो। कुछ समय इस स्थिति में रहकर पुनः वज्रासन में आ जायें। इसको ‘शशकासन’ कहते हैं।
नीचे झुकते हुए यह ध्यान दें, कि नितम्ब एड़ियों से ही लगे रहें, अर्थात् नितम्बों को ना उठायें।
वज्रासन में बैठकर दोनों हाथों की मुट्ठी बन्द करते हुए (मुट्ठी बन्द करते समय अंगूठे को अंगुलियों से दबायें), दोनों मुट्ठियों को नाभि के दोनों ओर लगाकर, सांस बाहर छोड़ते हुए, सामने की ओर झुकते हुए देखें।
थोड़ी देर इसी स्थिति में रहने के बाद वापस वज्रासन में आ जायें। इस प्रकार तीन से पांच बार करें। यह क्रिया मण्डूकासन (प्रथम) कहलाती है।
वज्रासन में बैठकर नाभि पर बायें हाथ की हथेली पर, दायें हाथ की हथेली को रखते हुए, पेट को अन्दर दबायें।
सांस को बाहर निकालते हुए पहले की तरह (मण्डूकासन-1) धीरे-धीरे नीचे झुककर, नजर सामने रखें। यह मण्डूकासन-2 कहलाता है।
इससे भी मंडूकासन 1 की तरह ही लाभ मिलता है।
दण्डासन में बैठकर दोनों हाथों के अंगुष्ठों, एवं तर्जनी की सहायता से पैरों के अंगूठों को पकड़ें।
सांस बाहर निकालकर, सामने झुकते हुए सिर को घुटनों के बीच लगाने की कोशिश करें। पेट को उड्डीयान बन्ध की स्थिति में रख सकते हैं।
घुटने-पैर सीधे भूमि पर लगे हुए, तथा कोहनियां भी भूमि पर टिकी हुई हों। इस स्थिति में शक्ति के अनुसार,आधे से तीन मिनट तक रहें। इसके बाद सांस छोड़ते हुए वापस सामान्य स्थिति में आ जायें।
इस आसन के बाद इसके प्रतियोगी आसन भुजङ्गासन, एवं शलभासन करने चाहिए।
दण्डासन में बैठकर दायां, और बायां पैर मोड़ लें, और बायीं जांघ के पास घुटने से सटाकर (घुटने के ऊपर से दूसरी ओर भी रख सकते हैं) रखें। इसमें बायां पैर सीधा रहेगा। बायें हाथ को दायें पैर, एवं पेट के बीच से लाकर दायें पैर के पंजे के पास टिका दें।
दायें हाथ को कमर के पीछे, भूमि पर सीधा रखकर, गर्दन को घुमाकर दायीं ओर कन्धे के ऊपर से मोड़कर पीछे देखें। इसी प्रकार दूसरी ओर से भी अभ्यास करना ‘वक्रासन’ कहलाता है। इसे 4 से 6 बार कर सकते हैं।
दण्डासन में बैठकर बायें पैर को मोड़कर, एड़ी को नितम्ब के पास लगायें।
दायें पैर को बायें पैर के घुटने के पास, बाहर की ओर भूमि पर रखें।
बायें हाथ को दायें घुटने के पास, बाहर की ओर सीधा रखते हुए, दायें पैर के पंजे को पकड़ें।
दायें हाथ को पीठ के पीछे से घुमाकर पीछे की ओर देखें। इसी प्रकार दूसरी ओर से इस आसन को करें।
दण्डासन में बैठकर, बायें पैर को मोड़कर, एड़ी को दायें नितम्ब के पास रखें, अथवा एड़ी पर बैठ भी सकते हैं। दायें पैर को मोड़कर बायें पैर के ऊपर इस प्रकार रखें, कि दोनों घुटने एक दूसरे से स्पर्श करते हुए हों।
अब जो पैर ऊपर है, उसी हाथ को ऊपर से, एवं नीचे वाले पैर की ओर के हाथ को पीछे कमर की ओर से ले जाकर, आपस में अंगुलियां फंसाकर खींचें।
कोहनियां, गर्दन, और सिर सीधे रहेंगे। एक ओर से करने के बाद पुनः दूसरी ओर से भी कर लें। इस सम्पूर्ण क्रिया को ‘गोमुखासन’ कहते हैं।
अगर आप मधुमेह (डायबिटीज) और मोटापा से परेशान (yoga for diabetes patients) हैं, तो योग द्वारा पर इन पर नियंत्रण पा सकते हैं।
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