वानस्पतिक नाम : Mukia maderaspatana (Linn.) M. Roem. (मुकिआ मॅडेरास्पॅटाना) Syn-Melothria maderaspatana (Linn) Cogn. Cucumis maderaspatanus Linn.
कुल : Cucurbitaceae
(कुकुरबिटेसी)
अंग्रेज़ी में नाम : Mukia (मुकिआ), Madras pea pumpkin (मद्रास पी पंपकिन)
संस्कृत-त्रिकोशकी, कृतरन्ध्र; हिन्दी-अगमकी, बिलारी; कोंकणी-चिराटी (Chirati); कन्नड़-चित्राती (Chitrati), मनीडोंडे (Manidonde); गुजराती-टिन्दोरी (Tindori); तमिल-मुसु-मुसुक्कई (Musu-musukkai); तेलुगु-पोट्टीबुदामू (Pottibudamu), नूगोदोसा (Nugodosa); बंगाली-बीलारी (Bilari); मराठी-चिराटी (Chiraati), घुग्री (Ghugri); मलयालम-मुक्कलपिरम (Mukkalpiram)।
परिचय
समस्त भारत में लगभग 1800 मी0 की ऊचाईं तक यह लतारूपी वनस्पति प्राप्त होती है। इसकी बेल छोटी, खुरदुरी तथा रोमों से युक्त होती है। यह वर्षाकाल में उत्पन्न होकर इधर-उधर फैलती है। इसकी मूल श्वेतवर्ण की, महीन कण्टकों से युक्त तथा सुतली जैसी मोटी होती है। इसकी डण्डी एवं शाखाएं भी सुतली जैसी मोटी तथा खड़ी श्वेतधारियों से युक्त होती हैं। और इन पर छोटे और बड़े रोएं होते हैं। नवीन शाखाओं पर रोएं अधिक होते हैं। इसके फल चने या मटर जैसे एक ही स्थान में 1-4 की संख्या में लगे हुए होते हैं। कच्ची अवस्था में हरे वर्ण के तथा लम्बे श्वेत रोमों से युक्त होते हैं और जैसे-जैसे पकते जाते हैं, इनके रोम कम होते जाते हैं। पूर्णत पक जाने पर चमकते हुए लाल रंग के तथा श्वेत वर्ण की लम्बी धारियों से युक्त होते हैं। प्रत्येक फल में चपटे, पीले या श्वेत रंग के 5-8 बीज होते हैं।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
अगमकी मधुर, तिक्त तथा पित्तशामक होती है।
यह पित्त तथा दाह, व्रण शामक होती है।
इसकी मूल कफहर, कास, श्वास, दन्तशूल, गुल्म तथा शूल शामक होती है।
यह वेदनाहर, वातानुलोमक तथा आध्मानरोधी होती है।
इसके बीज स्वेदजनक होते हैं।
इसके प्ररोह तथा पत्र मृदु विरेचक होते हैं।
इसके फल मूत्रबहुलता, अर्श, मूत्रकृच्छ्रता तथा राजयक्ष्मा में हितकर होते हैं।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
प्रयोज्याङ्ग : पञ्चाङ्ग, मूल, नवीन प्रतान, पत्र, फल, बीज एवं बीज तैल।
मात्रा : मूल (शीत कषाय) 10-20 मिली। पञ्चाङ्ग 1-2 ग्राम। क्वाथ 15-20 मिली। चिकित्सक के परामर्शानुसार।
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