Categories: जड़ी बूटी

Teekhur (Tikhur) : तीखुर के हैं बहुत अनोखे फायदे- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

वानस्पतिक नाम : Curcuma angustifolia Roxb. (कुरकुमा अंगुस्टीफोलिया)

कुल : Zingiberaceae (जिन्जिबेरेसी)

अंग्रेज़ी नाम : Indian arrowroot (इण्डियन ऐरोरूट)

संस्कृत-तवक्षीर, पयक्षीर, यवज, तालक्षीर; हिन्दी-तीखुर, तवाखीर, अरारोट; उड़िया-पलुवा (Paluva); कन्नड़-कोवीहिट्टू (Koovehittu); गुजराती-तेवखरा (Tavakhara); तमिल-अरारूट्किलेन्गु (Ararutkilangu), कुआकिलंकू (Kuakilanku); तेलुगु-अरारूट्-गाड्डालू (Ararut-gaddalu); बंगाली-टीक्कुर (Tikkur); नेपाली-बारखी सारो (Baarkhe sarro); मराठी-तेवाखिरा (Tavakhira); मलयालम-कूवा (Koova), कुवा (Kuva)।

अंग्रेजी-बोम्बे ऐरोरूट (Bombay arrowroot), ईस्ट इण्डियन एरोरूट (East Indian arrowroot), कुरकुमा र्स्टाच (Curcuma starch), नैरो लीव्ड् टरमरिक (Narrow leaved turmeric); अरबी-तवक्षीर (Tavaksheer); फारसी-तवशीर (Tavashira)।

परिचय

यह भारत में हिमालय के बाहरी क्षेत्रों उत्तराखण्ड, बिहार, पश्चिमी बंगाल, महाराष्ट्र तथा दक्षिण भारत में प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय हिमालय में हिमाचल प्रदेश से नेपाल तक 1000-1300 मी की ऊँचाई तक प्राप्त होता है। प्राचीन काल में वंशलोचन के अभाव में तीखुर का प्रयोग किया जाता था। कई स्थानों पर अरारोट के स्थान पर भी तीखुर का प्रयोग किया जा रहा है, परन्तु तीखुर तथा अरारोट दोनो भिन्न-भिन्न पौधें है।

यह काण्डरहित, कंदिल मूल युक्त हल्दी के जैसे दिखने वाला बहुवर्षायु शाक है। इसके पत्र 30-45 सेमी लम्बे (पर्णवृन्त सहित); तीक्ष्ण नोंकदार, हल्दी के पत्र जैसे तथा हरितवर्ण के होते हैं। इसके पुष्प पीतवर्ण के होते हैं। जो श्वेत-हरित अनुपत्र के बीज में लगे रहते हैं। इसके फल सम्पुट, अण्डाकार, तीन कपाटों द्वारा खुलते हैं तथा बीज अनेक और छोटे होते हैं। इसका प्रकन्द मूल छोटा, लम्बे गूदेदार रेशे से युक्त होता है। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल जुलाई से नवम्बर तक होता है।

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

तीखुर मधुर, शीत, लघु, स्निग्ध तथा पित्तशामक होता है।

यह सुगन्धित, बलकारक, वीर्यवर्धक, पुष्टिकारक तथा धातुवर्धक होता है।

तीखुर दाह, क्षय, रुधिर विकार, कास, श्वास, रक्तपित्त, अरुचि, ज्वर, तृष्णा, पाण्डु, कुष्ठ, मूत्राश्मरी, मूत्रकृच्छ्र, प्रमेह, व्रण तथा कामला-शामक होता है।

इसकी मूल मधुर, सुगन्धित, शीत, बलकारक, वाजीकर, शामक तथा पोषक होती है।

यह पैत्तिक-विकार, कुष्ठ, दाह, अग्निमांद्य, फूफ्फूसीयशोथ, श्वास, ज्वर, पिपासा, कामला, रक्ताल्पता, श्वेत कुष्ठ, वृक्काश्मरी, मूत्राशय अश्मरी, बिन्दुमूत्रकृच्छ्रता, मूत्राशयस्राव, व्रण तथा रक्त-विकारों में लाभकारी होता है।

औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि

  1. शिरोरोग-तीखुर आदि द्रव्यों से विधिपूर्वक निर्मित महामायूर घृत का सेवन करने से अर्दित, धातु-विकार, कास, श्वास, योनिरोग, शिरोरोग आदि का शमन होता है।
  2. कास-तीखुर आदि द्रव्यों से निर्मित कण्टकारी अवलेह का 2-3 ग्राम मात्रा में सेवन करने से गुल्म, हृदयरोग, अर्श, श्वास तथा कास में लाभ होता है।
  3. राजयक्ष्मा-तीखुर आदि द्रव्यों से निर्मित एलादि सर्पिगुड़ का प्रयोग मेधाशक्ति को बढ़ाने वाला, आंखों के लिए हितकर, आयु को बढ़ाने वाला, अग्निप्रदीपक तथा प्रमेह, गुल्म, क्षयरोग, पाण्डुरोग एवं भगन्दर का शमन करने वाला होता है।
  4. अतिसार-तवक्षीर आदि द्रव्यों से युक्त दाडिमाष्टक चूर्ण का मात्रानुसार सेवन करने से वातातिसार में लाभ होता है।
  5. शुष्क-प्रकन्द के चूर्ण को दुग्ध तथा शर्करा के साथ पथ्य के रूप में प्रवाहिका, आत्रिक ज्वर, आत्र व्रण तथा मूत्राशय व्रण की चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है।
  6. मूत्रकृच्छ्र-1-2 ग्राम प्रकन्द चूर्ण का सेवन करने से मूत्रकृच्छ्र में लाभ होता है।
  7. बार-बार कष्ट के साथ मूत्र-प्रवृत्ति होती हो तो तवक्षीर की बहुत पतली कांजी बनाकर उसमें थोड़ा दूध व शर्करा मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
  8. अग्नि-दग्ध-तीखुर, प्लक्ष की छाल, लालचन्दन, गेरू एवं गिलोय के चूर्ण को घी में मिलाकर लेप करने से लाभ होता है।
  9. विरेचनार्थ-अजमोदा, तवक्षीर, विदारीकन्द, शर्करा तथा निशोथ को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर, 1-3 ग्राम चूर्ण में मधु तथा घृत मिलाकर सेवन करने से सम्यक् प्रकार से विरेचन हो जाता है।
  10. प्रकन्द-स्वरस की मालिश करने से सर्वांगशोथ का शमन होता है।
  11. तवक्षीर को घृत में मिलाकर सेवन करने से पित्तज विकारों का शमन होता है।
  12. रसायनार्थ-1-2 ग्राम त्रिफला चूर्ण में समभाग तवक्षीर चूर्ण मिलाकर मधु अथवा घृत के साथ एक वर्ष तक प्रतिदिन सेवन करने से समस्त विकारों का शमन होता है तथा मेधा, आयु व स्मृति की वृद्धि

होती है।

प्रयोज्याङ्ग  :प्रकन्द।

मात्रा  :3-6 ग्राम चूर्ण या चिकित्सक के परामर्शानुसार।

और पढ़ेमूत्राश्मरी में कर्कोटकी के फायदे

आचार्य श्री बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण, आयुर्वेदिक विशेषज्ञ और पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्तंभ हैं। चार्य बालकृष्ण जी एक प्रसिद्ध विद्वान और एक महान गुरु है, जिनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान ने नए आयामों को छूआ है।

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आचार्य श्री बालकृष्ण

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