(सहस्रयोग, घृतप्रकरण, 23)

क्र.सं. घटक द्रव्य प्रयोज्यांग अनुपात
1 शतावरी (Asparagus racemosus) मूल 3.073 ली.
2 श्वदंष्ट्रा क्वाथ (गोक्षुर) (Tribulus terrestris Linn.) फल 3.073 ली.
3 क्वाथार्थ जल (Water) 12.292 ली. 3.072 ली.
4 घृत (गो घृत) (Ghee) 1.536 कि.ग्रा.
5 क्षीर (Milk) 3.072 ली.
6 विदारी (Pueraria tuberosa) Rt. Tuber Darkened 768 ग्रा.
7 चन्दन (श्वेतचन्दन) (Santalum album) HeartWood 768 ग्रा.
8 तुका (वंशलोचन) (Bambusa arundinacea) Silicious Concretion 768 ग्रा.
9 मृद्वीका (द्राक्षा) (Vitis viniferia Linn.) शुष्कफल 768 ग्रा.
10 मधुयष्टी (यष्टी)  (Glycyrrhiza glabra) मूल 768 ग्रा.
11 कशेरुक (Nymphae nouchali) कंद 768 ग्रा.
12 उर्वारुबीज बीज 768 ग्रा.
13 त्रुटि (एला सूक्ष्म)  (Elettaria cardamomum) बीज 768 ग्रा.
14 अद्रिज (शिलाजतु) (Shilajeet) 768 ग्रा.
15 कण (पिप्पली) (Piper longum Linn.) फल 768 ग्रा.
16 उत्पल (Nymphae nouchali) पुष्प 768 ग्रा.
17 पद्म (कमल) (Nymphae nouchali) फल 768 ग्रा.
18 पट्टूर पंचांग 768 ग्रा.
19 मुस्त (मुस्ता) (Cyperus rotundus) कन्द 768 ग्रा.
20 काकोली (Lilium polyphyllum D.Don.) मूल 768 ग्रा.
21 क्षीरकाकोली (Roscoea procera Wall.) मूल 768 ग्रा.
22 जीवक Microstylis wallichii Lindl.) मूल 768 ग्रा.
23 ऋषभक मूल 768 ग्रा.
24 मुद्गपर्णी पंचांग 768 ग्रा.
25 माषपर्णी पंचांग 768 ग्रा.
26 मेदा (Litsea glutinosa (Lour.) C.B. Robins) मूल 768 ग्रा.
27 महामेदा (Litsea glutinosa (Lour.) C.B. Robins) मूल 768 ग्रा.
28 छिन्नरुहा (गुडुचि)  (Tinospoera cordifolia (Willd) Miers ex Hook.f. & Thom) तना 768 ग्रा.
29 कर्कटक (कर्कटश्रृंङ्गी) Gall 768 ग्रा.
30 तुगाक्षीरी (वंशलोचन) (Baqmbusa arundinacea) Selicious Concretion 768 ग्रा.
31 पद्मक (Prunus cerasoides) तना 768 ग्रा.
32 पौण्डरीक (कमल) (Nymphae nouchali) पुष्प 768 ग्रा.
33 ऋद्धि Sub.Root 768 ग्रा.
34 वृद्धि मूल 768 ग्रा.
35 मृद्विका (द्राक्षा) (Vitis viniferia) शुष्क फल 768 ग्रा.
36 जीवन्ती (Leptadenia reticulata) मूल 768 ग्रा.
37 मधुक (यष्टी) (Glycyrrhiza glabra) मूल 768 ग्रा.
38 मधु (Honey) मूल 768 ग्रा.
39 सिता (शर्करा) 384 ग्रा.

 

मात्रा 12 ग्रा.

रोगाधिकार मूत्रकृच्छ्र, मूत्रदोष, मूत्रशर्करा।

गुण और उपयोगयह शतावरी घृत अत्यधिक पौष्टि और शीतवीर्य वाला होता है। यह वाजीकरण भी होता है। इस घृत के सेवन से रक्तपित्त रोग नष्ट होते हैं। इस घृत के सेवन से रक्तपित्त रोग में भी परम लाभ प्राप्त होता है।

यह घृत वातरक्त तथा क्षीणशुक्र रोगियों के लिए परम हितकारक होता है और अंगदाह, शिरोदाह, पित्तज्वर, योनिशूल, दाह, मूत्रकृच्छ्र विशेषत पैत्तिक योनिशूल शीघ्र ही दूर हो जाते हैं। यह शरीर के बल, वर्ण, कान्ति और वीर्य की वृद्धि करता है और शरीर को पुष्ट करता है।