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क्या आपको पता है कि संजीवनी वटी (divya sanjivani vati) क्या है, और संजीवनी वटी का उपयोग किस काम में किया जाता है? नहीं ना! संजीवनी वटी एक आयुर्वेदिक औषधि है। संजीवनी वटी का प्रयोग कर रोगों का इलाज किया जाता है।
आयुर्वेद में संजीवनी वटी के बारे में बहुत सारी अच्छी बातें लिखी हुई हैं। संजीवनी वटी के इस्तेमाल से आप एक-दो नहीं बल्किक कई रोगों का इलाज कर सकते हैं। आइए जानते हैं कि आप संजीवनी वटी का उपयोग कैसे कर सकते हैं।
संजीवनी वटी एक प्रमुख विषरोधी (Anti toxic) आयुर्वेदिक औषधि है। संजीवनी वटी सांप के काटने पर विष को खत्म करने के लिए प्रयोग में लाई जाती है। इसके अलावा संजीवनी वटी कीटाणु एवं बुखार को भी ठीक करती है।
यह अपच से पैदा हुए दोष को ख़त्म करती है। वत्सनाभ (बच्छनाग) की प्रधानता होने के कारण यह कुछ गरम, और पसीना तथा पेशाब को बढ़ाने का काम करती है। इन्हीं गुणों के कारण यह वटी बुखार की अवस्था में पसीने के रास्ते और पेशाब के रास्ते बुखार को बाहर निकाले में मदद करती है। यह पतंजलि की एक प्रमुख रोग प्रतिरक्षा औषधि है।
संजीवनी वटी (sanjeevni vati) का इस्तेमाल ऐसे किया जा सकता हैः-
अनेक लोग मूत्र रोग से परेशान रहते हैं। इसमें संजीवनी वटी का उपयोग करना चाहिए। मूत्र रोग जैसे पेशाब कम आने की समस्या में संजीवनटी वटी फायदेमंद होती है। यह पेशाब को साफ करने का काम भी करती है।
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पाचन कमजोर होने पर पेट में आम यानी अनपचा भोजन जमा हो जाता है, इससे बुखार भी हो जाता है। ऐसे में पेट में भारीपन के साथ-साथ थोड़ा–थोड़ा दस्त होने लगता है। इसके साथ ही बुखार बढ़ना, पसीना न आना, बेचैनी, सिर और पेट में दर्द भी आदि होने लगते हैं। इस अवस्था में संजीवनी वटी का प्रयोग बहुत लाभकारक होता है। इसके साथ–साथ यह पाचक रसों को उत्पन्न कर अपच को ठीक करती है।
संजीवनी वटी पसीना की कमी को दूर करती है। सांप के विष, कीटाणु एवं बुखार को नष्ट करती है। यह आमदोष को भी ठीक करती है, और आमदोष से होने वाले बुखार, हैजा, आदि रोगों को भी नष्ट करती है। यह पसीना एवं मूत्र द्वारा अन्दर के मलदोष भी बाहर कर देती है।
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यह वटी आमदोष को ख़त्म करते हुए उल्टी व दस्त को भी बन्द कर देती है।
आप सांप के काटने पर संजीवनी वटी का प्रयोग कर सकते हैं। यह सांप के विष को खत्म करने में मदद (divya sanjivani vati benefits) पहुंचाती है।
संजीवनी वटी का उपयोग इतनी मात्रा में करनी चाहिएः-
125 मिली ग्राम,
अनुपान- अदरक का रस, हल्का गर्म पानी
संजीवनी वटी के बारे में आयुर्वेदिक ग्रंथों में कहा गया है –
विडङ्गं नागरं कृष्णा पथ्यामलबिभीतकम्।।
वचा गुडूची भल्लातं सविषं चात्र योजयेत्।
एतानि समभागानि गोमूत्रेणैव पेषयेद्।।
गुञ्जाभा गुटिका कार्या दद्यादार्द्रकजै रसै।
एकामजीर्णगुल्मेषु द्वे विषूच्यां प्रदापयेत्।।
तिस्रश्च सर्पदष्टे तु चतस्र सान्निपातिके।
वटी सञ्जीवनी नाम्ना सञ्जीवयति मानवम्।। शारंगधर संहिता (म.ख. 7/18-21)
संजीवनी वटी (sanjeevni vati) में निम्न द्रव्य (Ingredients) हैंः-
क्र.सं. | घटक द्रव्य | उपयोगी हिस्सा | अनुपात |
1. | विडंग (Embelia ribes Burm.) | फल | 1 भाग |
2. | नागर (शुण्ठी) (Zingiber officinale Rosc.) | कन्द | 1 भाग |
3. | कृष्णा (पिप्पली) (Pipper longum Linn.) | फल | 1 भाग |
4. | पथ्या (हरीतकी) (Terminalia chebula Retz.) | फली | 1 भाग |
5. | आमला (Emblica officinalis Gaertn.) | फला | 1 भाग |
6. | बिभीतक (Terminalia bellirica Roxb.) | फला | 1 भाग |
7. | वच (Acorus caloamus Linn.) | कन्द | 1 भाग |
8. | गुडुची (Tinospora cordifolia (willd) | तना | 1 भाग |
9. | भल्लातक शुद्ध (Semecarpus anacardium Linn.) | फल | 1 भाग |
10. | विष(वत्सनाभ)(Aconitum ferrox wallex Seringe.) | मूलकन्द | 1 भाग |
11. | गोमूत्र | Q.S मर्दनार्थ |
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