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Sanaay: सनाय के हैं अनेक अनसुने फायदे- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

वानस्पतिक नाम : Senna alexandrina Mill. (सेना अलेक्सन्ड्रिना) Syn-Cassia angustifolia  Vahl, Cassia senna Linn.

कुल : Caesalpiniaceae (सेजैलपिनिएसी)

अंग्रेज़ी में नाम : Indian senna (इण्डियन सेना)

संस्कृत-मार्कण्डिका, भूमिवल्ली, मार्कण्डी, स्वर्णपत्री, मृदुरेचनी; हिन्दी-देशी सनाय; उड़िया-सोनामुखी (Sonamukhi); कन्नड़-नीयावरा नेलावरिके (Niyavara nelavarike); गुजराती-मीठीआकवल (Mithiakval), सेनामुखी (Senamukhi); तेलुगु-नेलातेनगेडु (Nelatungedu); तमिल-नीला वाकाई (Nila vakai), गिलाविरै (Gilavirai); बंगाली-सोनपात (Sonpat), सोनामुखी (Sonamukhi); नेपाली-सनाय (Sanaya); मराठी-सोनामुखी (Sonamukhi), भुईतखड़ (Bhuitkhad);     मलयालम-नीलवाक (Nilavaka)।

अंग्रेजी-ऐलेक्जेन्ड्रियन सेना (Alexandrian senna), बाँबे सेना (Bombay senna), मेडिसिनल सेना (Medicinal senna), तिन्नेवल्ली सेना (Tinnevelly senna); अरबी-सनाए हिंदी (Senaehindi); फारसी-सानेहिन्दी (Sanaehindi)।

परिचय

समस्त भारत में मुख्यत गुजरात के कच्छ एवं तमिलनाडू में इसकी खेती की जाती है। इसके पत्तों का प्रयोग विरेचनार्थ किया जाता है तथा यह पंचसकार चूर्ण का एक अंग है।

यह 75-150 सेमी ऊँचा, सीधा, बहुवर्षायु क्षुप होता है। इसके पुष्प पीत वर्ण के तथा कुछ सुगन्धित होते हैं। इसकी फली चिपटी, 3.5-7.0 मिमी लम्बी, 20 मिमी चौड़ी, अपक्व अवस्था में हरी तथा पकने पर गहरे भूरे वर्ण की होती है। प्रत्येक फली में 5-7 गहरे भूरे वर्ण के बीज होते हैं।

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

सनाय कटु, मधुर, तिक्त, कषाय, उष्ण, लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण तथा वातकफशामक है।

यह ऊर्ध्व तथा अधकाय का शोधन करने वाली होती है व कुष्ठ, विष, दुर्गन्ध, उदर रोग, गुल्म, कृमिरोग, कास, विबन्ध, प्लीहोदर तथा अग्निमांद्य नाशक है।

इसकी मूल सारक, गुरु, मधुर, अग्निदीपक, वातशामक, रक्तपित्त, तृष्णा, मोह, शुक्रक्षय, कृमि, कुष्ठ तथा प्लीहाविकार शामक है।

इससे प्राप्त सेन्नोसाइड्स (Sennosides), तीव्र आंत्र क्षोभक संलक्षण (Severe irritable syndrome) से ग्रस्त रोगियों के तीव्र कब्ज को दूर करता है।

औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि

  1. श्वास-10 मिली आँवला स्वरस के साथ 1-2 ग्राम सनाय पत्र चूर्ण का सेवन करने से श्वास में लाभ होता है।
  2. उदर रोग-1-2 ग्राम सनाय पत्र चूर्ण का नियमित सेवन करने से मल का सम्यक् निर्हरण होकर उदर रोगों में लाभ होता है।
  3. विबन्ध-1-2 ग्राम सनाय चूर्ण को 5-10 मिली इमली स्वरस में मिलाकर सेवन करने से विबन्ध में लाभ होता है।
  4. अग्निमांद्य-1-2 ग्राम सनाय चूर्ण में समभाग शर्करा मिलाकर, बिजौरा नींबू स्वरस के साथ सेवन करने से अग्निदीप्त होती है तथा भूख बढ़ती है।
  5. वातजगुल्म-1-2 ग्राम सनाय पत्र चूर्ण में समभाग वच चूर्ण मिलाकर सेवन करने से वातजगुल्म में लाभ होता है।
  6. जलोदर-1-2 ग्राम सनाय पत्र चूर्ण को 10 मिली आमलकी स्वरस के साथ सेवन करने से जलोदर में लाभ होता है।
  7. उदरशोथ-1-2 ग्राम सनाय पत्र चूर्ण को अजा मूत्र के साथ सेवन करने से उदरशोथ का शमन होता है।
  8. पाण्डु-कामला-सनाय पत्र क्वाथ (10-20 मिली) या चूर्ण (1-2 ग्राम) का सेवन करने से पाण्डु, कामला तथा प्लीहा वृद्धि का शमन होता है।
  9. कुष्ठ-कुष्ठ आदि त्वचा रोगों में विरेचनार्थ पत्रों का प्रयोग किया जाता है।
  10. आंत्रिक-ज्वर-10-20 मिली सनाय पत्र क्वाथ या 1-2 ग्राम सनाय पत्र चूर्ण का सेवन करने से आंत्रिक ज्वर में लाभ होता है।
  11. विरेचनार्थ योग-5 ग्राम सनाय के पत्र, 2 ग्राम सोंठ चूर्ण तथा 1 ग्राम लौंग चूर्ण को पानी में डालकर उबालकर, छानकर 10-20 मिली मात्रा में पिलाने से विरेचन द्वारा दोषों का निर्हरण हो जाता है।
  12. दाह-1-2 ग्राम सनाय चूर्ण को अनार स्वरस के साथ सेवन करने से दाह का शमन होता है।
  13. पित्तज-विकार-1-2 ग्राम सनाय पत्र चूर्ण में समभाग शर्करा मिलाकर सेवन करने से पित्तज विकारों का शमन होता है।
  14. वातज-शूल-1-2 ग्राम सनाय चूर्ण में शक्कर तथा सोंठ मिलाकर सेवन करने से वातज-शूल का शमन होता है।

प्रयोज्याङ्ग  : पत्र।

मात्रा  : चूर्ण 1-2 ग्राम, क्वाथ 10-20 मिली या चिकित्सक के परामर्शानुसार।