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Rakhi Phool: नव जीवन दे सकती है राखीफूल- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

वानस्पतिक नाम : Passiflora foetida Linn.

(पैसीफ्लोरा पोंटिडा)

Syn-Passiflora hirsuta Lodd.     

कुल : Passifloraceae (पैसीफ्लोरेसी)3

अंग्रेज़ी नाम : Stinking passion flower

(स्टिन्किंग पैशन फ्लावर)

संस्कृत-वन्य कृष्ण कमल; हिन्दी-जंगली कृष्ण कमल, राखी फूल; गुजराती-जंगली कृष्ण कमल (Jungali Krishan kamal); कन्नड़-कुक्कीवल्ली (Kukkiballi); मराठी-वेल-घाणी (Vel-ghani);  मलयालम-पूछाबेजहम (Poochabazham), चादेयन (Chadayan); तमिल-सिरूपूनाइक्कली (Siruppunaikkali), मूपरिषावल्ली (Mupparisavalli); तैलुगु-तैललाजुमीकी (Tellajumiki); बंगाली-झुमका लोटा (Jhumka lota); मणिपुरी-लाम

राधीकनचोम (Lam radhikanachom); मराठी-वेल-घाणी (Vel-ghani)। अंग्रेजी-रनिंग पोप (Running pop), वाइल्ड वाटर लेमन (Wild water lemon)।

राखीफूल (Passiflora edulis Sins.) के नाम

हिन्दी-कृष्ण कमल, राखी फूल, झुमका लता; गुजराती-कृष्ण कमल(Krishna kamal); नेपाली-घड़ीफूल (Ghadiphul);

अंग्रेजी-परपल ग्रेनेडिला (Purple granadilla), पैशॅन फ्रूट (Passion fruit), परपल वाटर लेमन (Purple water lemon), पैशॅन फ्लावर (Passion flower)।

परिचय

समस्त भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी लता पाई जाती है। इसकी दो प्रजातियां होती हैं 1. जंगली कृष्ण कमल (Passiflora foetida Linn.) 2. कृष्ण कमल (Passiflora edulis Sims.)। इसके पुष्प अत्यन्त सुन्दर तथा देखने में राखी जैसे लगते हैं। इसलिए इन्हें राखीपुष्प कहा जाता है।

  1. जंगली कृष्ण कमल (Passiflora foetida Linn.) इसके पुष्प हरिताभ-श्वेत, गुलाबी, गहरे रक्त वर्ण के अथवा बैंगनी वर्ण के होते हैं। इसके फल संख्या में अनेक, गोलाकार, चिकने तथा हरित वर्ण के व अनेक बीजों से युक्त होते हैं।
  2. कृष्ण कमल (Passiflora edulis Sims.) इसके पुष्प श्वेत तथा बैंगनी वर्ण के होते हैं। इसके फल गोलाकार, अण्डाकार, गूदेदार, पक्वावस्था में पीत अथवा गहरे बैंगनी वर्ण के कठोर आवरण से युक्त व रसदार होते हैं। इसके बीज काले रंग के होते हैं।

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

जंगली राखीफूल

इसका फल वामक, कफनिसारक तथा अवसादक होता है।

इसकी मूल विरेचक, उद्वेष्टहर तथा शोथनाशक होती है।

इसके पत्र शोथनाशक तथा आर्तववर्धक होते हैं।

राखीफूल

राखीफूल वेदनाशामक, शोथरोधी, उद्वेष्टरोधी, कासशामक, वाजीकारक, केद्रीय-तंत्रिकातंत्र अवसादक, मूत्रल, अल्परक्तचापकारक, आक्षेपरोधी, स्तम्भक, हृद्बलकारक, रोगाणुनाशक तथा कृमिनिस्सारक होता है।

इसका फल पोषक, अम्ल, मधुर, अवसादक तथा उद्वेष्टहर होता है। इसके पत्र कषाय, मूत्रल, उत्तेजक तथा बलकारक होते हैं।

यह अनॉक्सीकारक क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है।

औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि

  1. पत्र को पीसकर मस्तक पर लगाने से शिरशूल, पामा, जीर्ण व्रण, क्षत व भ्रम का शमन होता है।
  2. अक्षिशोथ-पत्रों को पीसकर नेत्र के बाहर चारों तरफ लगाने से अक्षिशोथ का शमन होता है।
  3. दंतरोग-इसका प्रयोग शीताद दन्त रोग तथा अन्य विटामिन-C की कमी से उत्पन्न होने वाले विकारों की चिकित्सा में किया जाता है।
  4. श्वासकष्ट-पत्रों का क्वाथ बनाकर 10-15 मिली मात्रा में सेवन करने से श्वासकष्ट में लाभ होता है।
  5. उन्माद-पत्र तथा मूल क्वाथ का सेवन 10-15 मिली मात्रा में करने से वातज उन्माद में लाभ होता है।
  6. अनिद्रा-पत्रों का क्वाथ बनाकर 10-15 मिली मात्रा में पीने से नींद अच्छी आती है।
  7. योषापस्मार-मूल का प्रयोग योषापस्मार की चिकित्सा में किया जाता है।
  8. उच्चरक्तचाप-पञ्चाङ्ग क्वाथ से निर्मित मिष्टोदक का सेवन करने से उच्चरक्तचाप में लाभ होता है।
  9. पित्तज-विकार-पञ्चाङ्ग से निर्मित क्वाथ का सेवन करने से पित्तज विकारों में लाभ होता है।

प्रयोज्याङ्ग  :पत्र, मूल तथा पञ्चाङ्ग।

मात्रा  :क्वाथ 10-15 मिली या चिकित्सक के परामर्शानुसार।

विशेष  :

यह पौधा विषाक्त होता है, अत इसका प्रयोग मात्रापूर्वक तथा चिकित्सकीय परामर्शानुसार करना चाहिए।

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