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नकछिकनी नाम से थोड़ा तो अंदाजा हो ही रहा होगा कि इसके प्रयोग से क्या होता होगा! हां, बिल्कुल सही समझ रहे हैं, नकछिकनी को सुंघने मात्र से छिंक आने लगती है। आदिवासी अंचलों में पाये जाने वाले इस बुटी से बचकर रहना बेहतर होता है, लेकिन अपने इस परिचय के अलावा भी यह आयुर्वेद में औषधी के रूप में भी इस्तेमाल होती है।
नकछिकनी नम वाले भूमि में पाया जाता है। इसके पत्तों और फूलों को मसलकर सूंघने से छींके आती हैं। इसकी दो प्रजातियां होती हैं।
यह जमीन पर फैला हुआ, छत्ताकार, छोटा, शाखा-प्रशाखायुक्त, रोम वाला झाड़ी होता है। इसकी शाखाएं जमीन पर फैली हुई होती हैं।
नकछिकनी का वानास्पतिक नाम Centipeda minima (Linn.) A.Br. Aschers.(सेंटिपीडा मिनिमा) Syn-Centipeda orbicularis Lour.होता है। इसका कुल Asteraceae (ऐस्टरेसी) होता है और इसको अंग्रेजी में Sneeze wort (स्नीज वॉर्ट) कहते हैं। चलिये अब जानते हैं कि नकछिकनी और किन-किन नामों से जाना जाती है।
Sanskrit-छिक्कनी, क्षवक, तीक्ष्णा, छिक्किका, घाणदु;
Hindi-नकछिकनी, छिकनी, पच्चिटी;
Urdu-नकछिकनी (Nakachikani);
Gujrati-नाक छींकणी (Nak chikani), चिक्किनी (Chikkini);
Bengali-हांचुटी (Hanchuti), चिकिनी (Chikini);
Nepali-हाछयु झार (Hachayu jhar);
Marathi-शिंकणी (Shinkini), नरासिंक्नी (Narasinkani)।
English-स्प्रेडिंग स्नीज वीड (Spreading sneezeweed);
Arbi-अफकर (Afkar), उफ्फरकाकुडुश (Uffarkakudush);
Persian-गावेजहाँ (Gawejahan)।
नकछिकनी के फायदों के बारे में जानने के लिए सबसे पहले चोरक के औषधीय गुणों के बारे में जानना ज़रूरी होता है।
नकछिक्कनी प्रकृति से कड़वा, तीखा, कषाय, गर्म, तथा कफवात से आराम दिलाने वाली होती है।
यह अग्निदीपक या पाचन शक्ति बढ़ाने वाली, वामक या उल्टी, रुचिकर, पित्तकारक, घाव को ठीक करने में सहायक होती है।
नकछिकनी कुष्ठ, कृमि, सांस संबंधी रोग, खांसी, विषरोग, त्वचा रोग, श्वेत कुष्ठ, वातरक्त, प्रतिश्याय (Coryza), अरुचि, रक्त संबंधी बीमारी, ग्रहपीड़ा, अर्श या बवासीर तथा भूतबाधा-नाशक होती है।
यह प्रतिश्याय, दांत दर्द, सिरदर्द, अरुचि, अग्निमांद्य या अपच, प्लीहा (spleen) वृद्धि के उपचार में मदद करती है।
इसके पत्ते भूख बढ़ाने, कृमिनाशक, पूयरोधी या एंटीसेप्टिक, कफनिसारक, वातानुलोमक तथा वामक यानि उल्टी में इलाज में सहायक होते हैं।
यह नाक संबंधी बीमारी, जोड़ो के दर्द, कान दर्द, गले में दर्द, सूजन तथा हिक्का नाशक होती है।
इसके बीज सिरदर्द, प्रतिश्याय (Coryza) शामक तथा कृमिनिसारक होते हैं।
यह पौधा पूयरोधी या एंटीसेप्टिक गुणों से भरपूर होती है।
नकछिकनी के अनगिनत फायदों कैसे बीमारियों के इलाज में लाभकारी होते हैं, जानने के लिए आगे पढ़ना पड़ेगा-
नकछिकनी पञ्चाङ्ग का काढ़ा बनाकर नेत्रों को धोने करने से नेत्राभिष्यंद या कंजक्टिवाइटिस में लाभ होता है।
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काम के तनाव से अगर सिर में दर्द होने लगता है तो नकछिकनी फूल के रस का नाक से लेने से सिरदर्द तथा प्रतिश्याय से आराम मिलता है।
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यह तो पहले ही आपको पता होगा कि नकछिकनी नाक संबंधी रोगों के उपचार में उपयोग आने वाला बूटी है। नकछिकनी तथा कट्फल के चूर्ण को नाक से सूंघने से नासा रोगों से आराम मिलता है। यह चूर्ण लेते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ज्यादा सूंघ लेने से छींक ज्यादा होने का खतरा रहता है, इसलिए ज्यादा न सूंघे। इसके अलावा नकछिकनी के पत्ते एवं बीजों के चूर्ण को सूंघने से नाक यदि बंद जैसा महसूस हो रहा है तो, उससे आराम मिलता है।
दांत दर्द से परेशान रहते हैं? चिंता की जरूरत नहीं। नकछिकनी को पीसकर दांतों पर रगड़ने से दांत दर्द से आराम मिलता है। नकछिकनी के पत्तों को पीसकर गोली बनाकर दांतों के बीच दबाकर रखने से दंतवेदना आदि दांत संबंधी रोगों से राहत मिलने में आसानी होती है।
मौसम बदलने के साथ ही खांसी की समस्या लगभग सबको होता है। अशोक बीज, नकछिकनी, वायविडंग, रसाञ्जन, पद्मकाष्ठ और विड़ लवण इन द्रव्यों के योग से बनाये हुए घी अथवा उक्त द्रव्यों का चूर्ण बनाकर उसमें घी मिलाकर सेवन करें तथा अनुपान रूप में बकरी का दूध पीने से खांसी की परेशानी से आराम मिलता है।
अगर खान-पान में गड़बड़ी होने के कारण दस्त या पेचिश से हाल बेहाल है तो नकछिकनी का सेवन इस तरह से करने पर जल्दी आराम मिल सकता है-
-शुण्ठी, घृत, नकछिकनी और तेल को पकाकर चाटने से प्रवाहिका रोग या दस्त को रोकने में मदद मिलती है।
-पिप्पली, अजमोदा एवं क्षवक को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर (2-3 ग्राम) अम्ल द्रव (कांजी) या कोष्ण जल के साथ सेवन करने से विसूचिका या पेचिश के कष्ट से राहत मिलने में सहायता मिलती है।
अगर खाना हजम न होने की समस्या आम हो गई है तो 1-3 ग्राम नकछिकनी बीज चूर्ण में गुड़ मिलाकर सेवन करने से खाना हजम होता है और भूख न लगने की समस्या से राहत मिलती है।
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नकछिकनी मासिक धर्म के साथ कई और बीमारियों के इलाज में बहुत काम आती है। 1-3 ग्राम नकछिकनी पत्ते के चूर्ण में समान मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करने से प्लीहा या स्प्लीन वृद्धि आदि प्लीहा विकार तथा मासिक-विकारों से जल्दी आराम मिलने में मदद मिलती है।
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त्वचा संबंधी विभिन्न रोगों के इलाज में नकछिकनी का प्रयोग भिन्न-भिन्न प्रकार से किया जाता है। नकछिकनी पञ्चाङ्ग को तिल तेल में पकाकर, छानकर त्वचा में लगाने से त्वचा संबंधी समस्याओं के उपचार में आसानी होती है। इसके अलावा नकछिकनी पत्तों तथा बीजों को पीसकर प्रभावित स्थान पर लेप करने से योनि रोगों, संधिशूल या जोड़ो के दर्द, पक्षाघात या लकवा, श्वित्र या ल्यूकोडर्मा, पामा या स्केबीज, विचर्चिका या खुजली तथा दद्रु या दाद आदि से आराम मिलता है।
नकछिकनी पञ्चाङ्ग को पीसकर अगर शरीर के किसी अंग में चोट लगी है वहां पर लगाया जाय तो दर्द से जल्दी आराम मिलती है।
आयुर्वेद के अनुसार नकछिकनी का औषधीय गुण इसके इन भागों को प्रयोग करने पर सबसे ज्यादा मिलता है-
-पत्ता
-बीज और
-पञ्चाङ्ग।
यदि आप किसी ख़ास बीमारी के घरेलू इलाज के लिए नकछिकनी का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही इसका उपयोग करें। चिकित्सक के सलाह के अनुसार 1-3 ग्राम चूर्ण ले सकते हैं।
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