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Lasun Vel: अमृत के सामान है लसुन बेल- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

वानस्पतिक नाम : Adenocalymma alliaceum (Lam.) Miers

(एडेनोकैलिमा एलिसियम) Syn-Bignonia alliacea Lam., Mansoa alliacea (Lam.) A.H. Gentry      

कुल : Bignoniaceae (बिग्नोनिएसी)

अंग्रेज़ी नाम : Cross vine (क्रॉस वाईन)

संस्कृत-कुटीर वल्लरी; हिन्दी-लसुन बेल; गुजराती-लसन बेल (Lasan beil); बंगाली-लता पारुल (Lata parul)।

अंग्रेजी-क्वार्टर-वाइन (Quarter-vine), आमेजोनियन गार्लिक बुश (Amazonian garlic bush), गार्लिक वाईन (Garlic vine)।

परिचय

समस्त भारत में प्राय घरों के बाहर या बाग-बगीचों में  शृंगारिक पौधे के रूप में इसकी बेलें लगी हुई मिलती है। इसके पुष्प अत्यन्त सुन्दर तथा नीले वर्ण के होते हैं। पौधे के किसी भी भाग को तोड़कर मसलने से लसुन के जैसी गन्ध आती है, इसलिए इसे लसुन बेल कहते है।

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

लसुन बेल के पत्र कटु, तीक्ष्ण, पूयरोधी, मृदुविरेचक, मूत्रल, दीपन, क्षुधावर्धक तथा सूक्ष्मजीवाणुरोधी होते हैं।

इसके शुष्क पुष्पों में अल्परक्तवसाकारक प्रभाव दृष्टिगत होता है।

इसके तैल में भी कवकरोधी प्रभाव दृष्टिगत होता है।

औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि

  1. त्वक् विकार-लसुनबेल के पत्रों को पीसकर त्वचा में लगाने से दद्रु, पामा, कण्डू (खुजली) एवं अन्य त्वक् विकारों का शमन होता है।
  2. इसके पत्रों को तैल में पकाकर, छानकर त्वचा में लगाने से त्वक् विकारों का शमन होता है।
  3. पत्र को पीसकर गरमकर पुल्टिस बांधने से फोड़ा पककर फूट जाता है।
  4. लसुन बेल पञ्चाङ्ग में सोंठ मिलाकर तेल पाक करके अभ्यंग करने से वातज विकारों का शमन होता है।
  5. पत्र को गर्मकर बांधने से शोथ का शमन होता है।
  6. इसके पत्रों को धनिया के साथ समान मात्रा में मिलाकर चटनी बनाकर सेवन करने से यह कृमिनाशक तथा क्षुधावर्धक होता है।
  7. लसुनबेल को घर के आस-पास लगाने से विषाणुओं का प्रभाव कम हो जाता है।

प्रयोज्याङ्ग  :पत्र तथा पुष्प।

मात्रा  :चिकित्सक के परामर्शानुसार।