Categories: स्वस्थ भोजन

कूष्माण्ड

वानस्पतिक नाम : Benincasa hispida (Thunb.) Cogn. (बेनिनकेसा हिस्पिडा)Syn-Benincasa cerifera Savi

कुल : Cucurbitaceae (कुकुरबिटेसी)

अंग्रेज़ी नाम : White gourd melon (ह्वाइट गुऍर्ड मेलन)

संस्कृत-कूष्माण्ड, पुष्पफल, बृहत्फल, वल्लीफल, पीतपुष्पा; हिन्दी-पेठा, भतुआ, रकसा; उर्दू-पेठा (Petha); कन्नड़-बुदेकुम्बालाकायी (Budekumbalakayi); गुजराती-भुरु-कोहलु (Bhuru-kohlu), कोहोलु (Koholu); तमिल-पुशनीक्कई (Pushnikkai); तेलुगु-गुम्मडि (Gummadi), पेण्डलिगुम्मडीकाया (Pendligummadikaya); बंगाली-कुमड़ा (Kumra), छालकुमड़ा (Chalkumra); नेपाली-कुबिण्डो (Kubindo); पंजाबी-गोलकद्दु (Golkaddu), पेठा (Petha); मराठी-कोहला (Kohla); मलयालम-कुम्पलम (Kumpalam)।

अंग्रेजी-वैक्स गुऍर्ड (Wax gourd), व्हाइट पम्पकिन (White pumpkin), ऐश गअर्ड (Ash Gourd); अरबी-मजदाभ (Majdabh); फारसी-कदुरूमी (Kadurumi), मेजडाभ (Mejdabh)।

परिचय

आयुर्वेदीय संहिता ग्रन्थों के फलवर्ग में कूष्माण्ड का उल्लेख मिलता है। कूष्माण्ड के फलों से पेठा बनाया जाता है। समस्त भारत में इसकी खेती की जाती है।

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

कूष्माण्ड मधुर, शीत, लघु, गुरु, स्निग्ध, वातपित्तशामक; कफकारक, बृंहण, वृष्य, दीपन, धातुवर्धक, पुष्टिकारक, वस्तिशोधक, हृद्य, मूत्रल, बलकारक, केश्य, अभिष्यंदि तथा विष्टंभकारक होता है। यह मूत्राघात, अश्मरी, प्रमेह, मूत्रकृच्छ्र, तृष्णा, अरोचक, शुक्रविकार तथा रक्तविकार नाशक होता है।

बालकूष्माण्ड शीत, कफकारक तथा पित्तशामक होता है। कूष्माण्ड का शाक मधुर, गुरु, उष्ण, वातशामक, अग्निदीपक, रोचक, सारक, ज्वर, आमदोष, शोफ तथा दाह नाशक होता है। पक्व कूष्माण्ड मधुर, अम्ल, लघु, त्रिदोषशामक, मल-मूत्र को निकालने वाला तथा शुक्ररोग नाशक होता है। कूष्माण्ड तैल मधुर, शीत, गुरु, वातपित्त शामक, कफकारक, अभिष्यन्दि, विबंधहर, अग्निसादक एवं केश्य होता है।

लताओं में फलने वाले सभी फलों में कूष्माण्ड उत्तम माना जाता है।

औषधीय प्रयोग, मात्रा एवं विधि

  1. नेत्रदाह-कूष्माण्ड के बीजों को पीसकर नेत्र के चारों तरफ बाहर की ओर लगाने से नेत्रों की दाह (जलन) का शमन होता है।
  2. श्वासकास-1 ग्राम कूष्माण्ड मूल चूर्ण को गुनगुने जल के साथ पीने से दुसाध्य कास तथा श्वास में भी शीघ्र लाभ होता है।
  3. कूष्माण्ड आदि द्रव्यों से निर्मित 5-10 ग्राम कूष्माण्डावलेह का सेवन करने से रक्तपित्त, क्षय, ज्वर, शोष, तृष्णा, भम, छर्दि, श्वास, कास तथा उरक्षत में लाभ होता है। यह अवलेह वीर्यवर्धक,

धातुवर्धक तथा बलवर्धक होता है।

  1. 1-2 ग्राम कूष्माण्ड बीज चूर्ण का सेवन करने से शुष्क कास में लाभ होता है।
  2. क्षयरोग (टी.वी.)-कूष्माण्ड के 20-25 मिली ताजे स्वरस  में मिश्री मिलाकर पिलाने से क्षयरोग तथा उन्माद में लाभ होता है।
  3. फूफ्फुस सम्बन्धी रोगों में कूष्माण्ड बहुत उत्तम औषधि है।
  4. खांसी तथा दमा-500 मिग्रा कूष्माण्ड मूल चूर्ण को गर्म जल के साथ सेवन करने से खांसी तथा दमे में लाभ होता है।
  5. मूत्राघात-10-20 मिली कूष्माण्ड स्वरस में 65 मिग्रा यवक्षार एवं गुड़ मिलाकर सेवन करने से मूत्रविबन्ध, शर्करा एवं अश्मरी में लाभ होता है।
  6. 10-20 मिली कूष्माण्ड स्वरस में 65 मिग्रा हींग, 65 मिग्रा यवक्षार तथा शर्करा मिलाकर पीने से वस्तिशूल, मेढ्र गत शूल तथा मूत्रकृच्छ्र में लाभ होता है।
  7. कूष्माण्ड के पुष्प तथा फल स्वरस (10-20 मिली) में शर्करा मिलाकर प्रात पीने से मूत्राघात में लाभ होता है।
  8. मूत्र-विकार/ मूत्र की रुकावट-पेठे तथा ककड़ी के बीजों को पीसकर नाभी के नीचे लेप करने से मूत्रकृच्छ्र तथा मूत्राघात आदि मूत्र-विकारों में लाभ होता है।
  9. विसूचिका-कूष्माण्ड की 5-20 ग्राम फलमज्जा को पीसकर उसमें मिश्री मिलाकर खाने से विसूचिका में लाभ होता है।
  10. आंत्रकृमि-1 ग्राम कूष्माण्ड बीज चूर्ण का सेवन करने से आंतों के कीडे नष्ट हो जाते हैं।
  11. रक्तार्श-पेठे का शर्बत बनाकर उसमें मरिच चूर्ण मिलाकर पिलाने से रक्तार्श (खूनी बवासीर) में लाभ होता है।
  12. उपदंश-कूष्माण्ड बीज तैल का उपयोग उपदंश की चिकित्सा में किया जाता है।
  13. उन्माद-25 मिली कूष्माण्ड स्वरस में 6 ग्राम मधु तथा 1 ग्राम कूठ का चूर्ण मिलाकर पीने से सभी प्रकार के उन्माद में लाभ होता है।
  14. अपस्मार-20 मिली कूष्माण्ड फल स्वरस में 1 ग्राम मुलेठी चूर्ण मिलाकर तीन दिन तक पीने से अपस्मार रोग में लाभ होने लगता है।
  15. 13-14 ली कूष्माण्ड स्वरस में 200 ग्राम मुलेठी कल्क मिलाकर 750 ग्राम गाय के घी का विधिवत् पाककर सुरक्षित रख लें। 5 ग्राम घृत का प्रात सेवन करने से अपस्मार में लाभ होता है।
  16. ग्रहदोष-पुष्य नक्षत्र में कूष्माण्ड फल स्वरस से दारुहल्दी को घिस कर नेत्रों में अंजन करने से ग्रहादिजन्य विकारों का शमन होता है।
  17. मदात्यय-20 मिली कूष्माण्ड फल स्वरस में समभाग मिश्री तथा महुवा पुष्प; 500-500 मिग्रा, दालचीनी, तेजपात, मरिच एवं पिप्पली चूर्ण तथा 250-250 मिग्रा छोटी इलायची, नागकेशर एवं जीरा मिलाकर पीने से मदात्यय में लाभ होता है।
  18. 25 मिली कूष्माण्ड स्वरस में 6 ग्राम गुड़ मिलाकर पीने से दूषित कोद्रव के सेवन से उत्पन्न होने वाले मदात्यय में लाभ होता है।
  19. राजयक्ष्मा-5 ग्राम लाक्षा चूर्ण को 20 मिली कूष्माण्ड फल स्वरस में पीसकर सेवन करने से राजयक्ष्मा रोग में लाभ होता है।
  20. रक्तस्राव-10-15 मिली कूष्माण्ड फल स्वरस का सेवन करने से रक्तनिष्ठीवन तथा आन्तरिक रक्तस्राव में लाभ होता है।
  21. रक्त के शोधन हेतु-कूष्माण्ड (पेठा) का शर्बत बनाकर पीने से रक्त का शोधन होता है।
  22. रक्त वमन-15-25 मिली कूष्माण्ड फल स्वरस में मिश्री मिलाकर पीने से रक्त वमन तथा दाह का शमन होता है।
  23. दुर्बलता-पेठे का मुरब्बा बनाकर खिलाने से क्षय रोग के कारण उत्पन्न दुर्बलता या सामान्य दौर्बल्य का शमन होता है तथा शरीर पुष्ट

होता है।

  1. पारद विषाक्तता-पारे के सेवन से उत्पन्न होने वाले विकारों को शांत करने के लिए इसके स्वरस का शरीर पर मर्दन करना चाहिए तथा रस को पिलाना चाहिए।

प्रयोज्याङ्ग : फल, बीज, पत्र तथा बीज तैल।

मात्रा : चूर्ण 1-4 ग्राम। फल 10-20 ग्राम चिकित्सक के परामर्शानुसार।

आचार्य श्री बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण, आयुर्वेदिक विशेषज्ञ और पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्तंभ हैं। चार्य बालकृष्ण जी एक प्रसिद्ध विद्वान और एक महान गुरु है, जिनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान ने नए आयामों को छूआ है।

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