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आप पान खाते हैं अगर आप पान खाते हैं तो पान में लगाए जाने वाले कत्था के बारे में जरूर जानते होंगे। क्या आप जानते हैं कि आप जो पान खाते हैं उसमें लगाया जाने वाला लाल कत्था (Khadira Plant Uses) कैसे बनता है? नहीं ना! तो जान लीजिए कि खैर (खादिर) की शाखाओं तथा छाल को उबालकर ही कत्था निकाला जाता है। इतना ही नहीं खैर या खादिर का प्रयोग धार्मिक कार्यों में भी किया जाता है। इसके अलावा खादिर या खैर (Khair) का उपयोग औषधि रूप में किया जाता है।
आयुर्वेदिक ग्रंथों में यह बताया गया है कि खैर या खादिर कुष्ठ, एक्सिमा इत्यादि चर्म रोगों की अच्छी दवा है। खैर (खादिर) स्वाद में तीखा और कसैला होता है। इसकी तासीर ठंडी होती है। इसमें भूख जगाने और खाना आसानी से पचाने के गुण होते हैं। यह बल देने वाला, ग्रहणी (duodenal) तथा दांतों को मजबूत करने वाला है। यह पेट के दर्द से आराम दिलाता है। आइए जानते हैं कि आप रोगों को ठीक करने के लिए खैर (acacia catechu) का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं।
खादिर या खैर (Khair) की लकड़ी (khadira tree) का उपयोग ज्यादातर पूजा आदि कामों के लिए इस किया जाता है। यह यज्ञ–हवन आदि कामों की समिधा में प्रयोग की जाने वाली नवग्रह लकड़ियों में से एक है। इसके पेड़ बहुत ही मजबूत होते हैं। इसका तना हड्डियों की तरह कठोर होता है।
खैर (खादिर) का पेड़ 9 से 12 मी तक ऊँचा होता है। यह कांटेदार होता है और इसकी उम्र लम्बी होती है। इसकी गांठें बाहर से गहरे मटमैले भूरे रंग की तथा अन्दर से भूरे और लाल रंग की होती हैं। कुछ पुराने पेड़ों के तने के अन्दर की दरारों में रवा या चूर्ण (khadira powder) रूप में कभी काले तो कभी सफ़ेद पदार्थ पाए जाते हैं। इसे खैर (खादिर)- सार कहते हैं।
अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग स्थानों पर खैर (acacia catechu) के आयुर्वेदिक गुणों का वर्णन किया है। भावप्रकाश-निघण्टु में खैर, कदर तथा विट्-खदिर के नाम से इसकी तीन प्रजातियों का वर्णन मिलता है। राजनिघण्टु में तो इन तीन के अतिरिक्त, सोमवल्क व ताम्रंटक नाम से दो अन्य, अर्थात कुल पाँच प्रजातियों का उल्लेख मिलता है।
खादिर या खैर (Khair) मिमोसेसी (Mimosaceae) कुल का पौधा (khadira tree) है। इसका वानस्पतिक (वैज्ञानिक) नाम ऐकेशिया कैटेचू (Acacia catechu (Linn.f.) Willd.) है। वनस्पति विज्ञान में इसे मिमोसा कैटेचू लिन (Mimosa catechu Linn. f.) भी कहा जाता है। खैर (खादिर) को अंग्रेजी में Black Catechu (ब्लैक कैटेचू) कहते हैं। अंग्रेजी में इसके लिए कच ट्री (Cutch tree) या सिर्फ कैटेचु (Catechu) जैसे नाम भी प्रयोग किये जाते हैं। आइये, जानते हैं कि हिंदी समेत अन्य भाषाओं में खैर (खादिर) के नाम क्या क्या हैं:-
Khadir in –
आप खादिर (acacia catechu) का औषधीय प्रयोग इन तरीकों से कर सकते हैंः-
बालों में रुसी (Dandruff) से परेशान लोगों के लिए खैर (खादिर) बहुत ही फायदे की चीज है। खादिर या खैर (Khair), नीम और जामुन अथवा कुटज की छाल को सेंधा नमक के साथ गोमूत्र में पीस लें। इसका लेप करने से रूसी से छुटकारा मिलता है।
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खदिर सार को मुंह में रखकर चूसने से मुंह के छाले और सूजन कम होते हैं।
इसके अलावा, त्रिफला तथा खदिर के पेड़ की छाल (kaggali tree) का काढ़ा बनाकर गरारा (गले में अटकाकर घुमाना) करने से भी छाले और सूजन कम होते हैं।
खदिर सार अथवा खदिर चूर्ण को तेल से भिगो कर रखें। गले में खराश हो तो इसे मुंह में रखने से खराश दूर होती है।
दमा-खांसी के उपचार के लिए खैर (खादिर) की लकड़ी को जला लें। इसे जल में बुझाकर, जल को तुरंत ढक दें। इस जली लकड़ी के धुंए का सुगंध को सूंघें। इसके साथ ही सुगन्धित जल को पीने से खांसी में लाभ होता है।
500 मिग्रा खदिर-सार में बराबर मात्रा में हल्दी तथा मिश्री मिलाकर खाने से खांसी में लाभ होता है।
खदिर-सार के 1 ग्राम मात्रा में बराबर मात्रा में बेल गिरी का चूर्ण मिलाकर खिलाने से दस्त शांत हो जाती है।
खैर (kaggali tree) तथा त्रिफला से बने 50 मिली काढ़ा में 6 ग्राम घी तथा 3 ग्राम वायविडङ्ग चूर्ण मिला लें। इसे पीने से भगंदर में लाभ होता है।
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खादिर या खैर (Khair) के फूल के 500 मिग्रा चूर्ण में (khadira powder) 125 मिग्रा जीरक को मिला लें। इसे शक्कर मिले दूध में डालकर सेवन किया जाए तो डायबिटीज में लाभ होता है।
खदिर की छाल का काढ़ा बनाकर योनि को धोने से श्वेत तथा लाल दोनों तरह के ल्यूकोरिया (Leucorrhoea) में लाभ होता है।
हड्डियों के दर्द (आमवात) में खदिर की जड़ का चूर्ण सेवन करें। इसे 1 से 3 ग्राम की मात्रा में सेवन करना चाहिए। इससे गठिया में लाभ होता है।
हाथी पांव (Filaria) या फाइलेरिया के रोगियों के लिए खैर (खादिर) बहुत ही उपयोगी होती है। इस रोग के उपचार के लिए ररोजाना सुबह खदिर, विजयसार एवं शाल के सार भाग में गाय के मूत्र के साथ मधु मिलाकर पिएं। इससे हाथी पांव या फाइलेरिया खत्म हो जाता है।
खदिर एवं विजयसार को जल में डुबोकर छान लें। इसे गर्म करके ठंडा कर लें। इस जल को पीने से चेचक (शीतला) में लाभ होता है।
खदिर एवं श्लेष्मातक को मिलाकर जल से स्नान आदि करने से भी इस रोग में लाभ होता है।
खैर, प्रियंगु, लाल कचनार तथा सेमल के फूल के चूर्ण 2 से 4 ग्राम लेकर मधु के साथ इसका सेवन करने से रक्तपित्त में बहुत लाभ होता है।
जामुन, अर्जुन, लाल कचनार, शिरीष, लोध्र, विजयसार, सेमल तथा सहिजन के फूलों के चूर्ण 2 से 4 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से भी इस रोग में लाभ होता है। इससे नाक-कान आदि से खून बहना रुक जाता है।
खदिर सार तथा चिरायता का काढ़ा बनाकर, 10 से 30 मिली की मात्रा में पिलाने से प्लीहा वृद्धि तथा बुखार आदि पर नियंत्रण होता है।
चिरायता के 10-30 मिली काढ़ा में 500 मिग्रा खदिर सार (khadira plant) को मिलाकर पीने से बुखार उतर जाता है।
खैर (खादिर) की छाल को पीसकर सूजन वाली जगह पर लेप लगाने से सूजन कम हो जाती है और जल्द आराम होता है।
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खैर (खादिर) की जड़ तथा नीम के फल को बराबर मात्रा में मिलाकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट की 2 से 3 ग्राम मात्रा को को हल्के गर्म जल के साथ सेवन करने से विष का प्रभाव कम हो जाता है।
खैर (खादिर) पेड़ (khadira plant) के निम्नलिखित अंगों का प्रयोग औषधि के लिए किया जाता है:-
उपरोक्त अंगों के औषधि रूप में प्रयोग के विभिन्न तरीके ऊपर बताये गए हैं। उसके अनुसार चिकित्सक के परामर्श से औषधि बनाकर इसका सेवन किया जा सकता है।
खैर (खादिर) के बहुत ज्यादा सेवन करने से नपुंसकता की शिकायत हो सकती है। इसलिए बेहतर होता है कि उपचार के लिए इसका प्रयोग करने से पहले चिकित्सक की राय ले ली जाए।
खैर (khadira tree) गर्म प्रदेशों में मिलता है। यह समस्त भारत के गर्म क्षेत्रों में तथा बाग-बगीचों में मिलता है। यह उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र तथा उड़ीसा के मैदानी एवं पहाड़ी क्षेत्रों में 1200 मीटर की ऊँचाई तक पाया जाता है।
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