वानस्पतिक नाम : Cassia occidentalis (L.) Rose. (कैसिया आक्सीडेन्टेलिस)
Syn-Senna occidentalis (Linn.) Link
कुल : Caesalpiniaceae (सेजैलपिनिएसी)
अंग्रेज़ी नाम : The Negro Coffee (दी नीग्रो कॉफी)
संस्कृत-कासमर्द :, कासारि, अरिमर्द :, कर्कश; हिन्दी-कसोंदी, कसौंदी; उड़िया-कसुन्द्राr (Kasundri); उर्दू-कसोन्जी (Kasonji); कन्नड़-दोड्डतगचे (Doddatagache), अनेसोगत्ते (Anesogate), एलेवुरे (Alevure); गुजराती-कसुन्द्राs (Kasundro); तमिल-पेयाविरई (Peyavirai), नट्टान्दगरई (Nattandagarai); तेलुगु-कसिंदा (Kasinda), पेद्दाकसिन्दा (Peddakasinda); बंगाली-कालकाशुन्दा (Kalkashunda); नेपाली-ठुलो ताप्रे (Thulo tapre); मराठी-कासविंदा (Kasvinda), रंकासविंदा (Rankasvinda); मलयालम-पोन्नाविरम (Ponnaviram), करिन्ताकर (Karintakara), मट्टन्टाकरा (Mattantakara)।
अंग्रेजी-कॉफीवीड (Coffeeweed), कॉफी सेन्ना (Coffee senna), स्टिकिंग वीड (Stinking weed), वीड कॉफी (Weed coffee), स्टिप्टिक वीड (Styptic weed)।
परिचय
कसौंदी का झाड़ीनुमा पादप वर्षा-ऋतु में खाली भूमि तथा कूड़े करकट में अपने आप उग जाता है। इसका एक और भेद पाया जाता है, जिसे काली कसौंदी कहते हैं। इसकी शाखाएं कृष्णाभ बैंगनी आभा लिए होती है। मूलत्वक् काली होती है, जिससे जड़ जली हुई-सी मालूम होती है। इससे कस्तूरी जैसी गंध आती है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
कसौंदी वात-कफ शामक एवं पित्तसारक है। बाह्य प्रयोग में यह कुष्ठघ्न तथा विषघ्न है। आभ्यन्तर प्रयोग में यह दीपन, वातानुलोमन, पित्त-सारक एवं रेचक है। यह आक्षेप-शामक, वेदनास्थापक, कफघ्न, श्वासहर, मूत्रल तथा ज्वरघ्न है।
कसौंदी के बीज रक्तजविकार, हृदयविकार, आक्षेपकारक तथा कुक्कुरकास में लाभप्रद होते हैं।
कसौंदी के पत्र आमाशयिक सक्रियता वर्धक होते हैं।
कसौंदी के बीज, पत्र एवं मूल विरेचक तथा ज्वरहर होते हैं।
कसौंदी की मूल मूत्रल एवं कालिक ज्वररोधी होती है।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
- नेत्ररोग-कसौंदी के ताजे पत्र-स्वरस को सुबह-शाम 1-1 बूंद आंखों में डालने से तथा आंखों पर पत्तों को बांधने से नेत्रशूल, लालिमा तथा शोथ का शमन होता है।
- कर्णरोग-कसौंदी के पत्तों का रस या उसमें दूध में मिलाकर गुनगुना कर कान में 2-4 बूंद टपकाने से कर्ण वेदना का शमन होता है।
- गंडमाला-10 ग्राम कासमर्द पत्र में 2-4 नग काली मिर्च पीसकर लेप करने से गंडमाला के घावों का शोधन तथा रोपण होता है।
- स्वरभेद-कासमर्द, बड़ी कटेरी तथा भृंगराज के क्वाथ से पकाए हुए घृत (5 ग्राम) का सेवन करने से वातज स्वरभेद में लाभ होता है।
- कफज्वर एवं श्वास रोग-10-15 मिली कसौंदी पत्र-स्वरस में 2 चम्मच मधु मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से कफज ज्वर व श्वास में लाभ होता है।
- कसौंदी की 8 से 10 ताजी फलियों को भूनकर खाने से का शमन होता है।
- कसौंदी के बीजों का चूर्ण, छोटी पिप्पली तथा काला नमक को समभाग लेकर खरल करके 250 मिलीग्राम की गोलियाँ बनाकर, प्रात या रात्रि में 1-2 गोली मुंह में रखकर चूसने से कफज कास तथा श्वास कष्ट (कठिनता से सांस आना) में लाभ होता है।
- प्रतिश्याय, नासा रोग तथा विशेषरूप से नासारन्ध्र अवरोध की दशा में कसौंदी-पत्र-स्वरस की एक-दो बूदों को नाक में टपकाने से लाभ मिलता है।
- श्वास रोग के रोगी के लिए कसौंदी के पत्तों का शाक अत्यन्त लाभकारी है।
- कास-1-3 ग्राम कसौंदी बीज चूर्ण को उष्ण जल के साथ प्रतिदिन तीन बार सेवन करने से कास में लाभ होता है।
- हिक्का (हिचकी)-कसौंदी के 10 ग्राम पत्रों अथवा पञ्चाङ्ग को 400 मिली पानी में पकाकर, चतुर्थांश शेष क्वाथ बनाये, 10-30 मिली क्वाथ में शहद मिलाकर सेवन करने से हिक्का (हिचकी), कास तथा श्वास रोग में लाभ होता है।
- हिक्का और श्वास-कासमर्द के पत्रों का यूष बनाकर सेवन करने से हिक्का (हिचकी) तथा दमा में लाभ होता है।
- कास-कासमर्द पत्र, भृंगराज पत्र, वार्ताक तथा काली तुलसी के पत्रों को समान मात्रा में मिलाकर, कूटकर स्वरस निकाल लें। 5-10 मिली स्वरस में मधु मिलाकर पीने से कफज कास में लाभ होता है।
- कास-बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी, त्रिकटु, कासमर्द, हिङ्गु, इङ्गुदी, दालचीनी, मैनसिल, गुडुची, काकड़ासिंगी आदि कासहर द्रव्यों की वर्ती बनाकर धूमपान करने से कास में लाभ होता है।
- श्वास-5 मिली कसौंदी पत्र-स्वरस में मधु मिलाकर सेवन करने से श्वास में लाभ होता है।
- उदरकृमि-कसौंदी के 20 ग्राम पत्तों को 400 मिली जल में पकाकर, चतुर्थांश शेष क्वाथ बनाकर, 10-25 मिली मात्रा में पिलाने से सूत्रकृमि तथा अन्य उदरगत कृमि नष्ट हो जाते हैं।
- जलोदर-10 ग्राम कासमर्द की जड़ को नींबू के रस में पीसकर, उदर तथा बस्ति प्रदेश पर लेप करने से जलोदर में लाभ होता है। इसके साथ ही 2 ग्राम मूल चूर्ण को मट्ठे के साथ दिन में 1-2 बार सेवन करें।
- उदर रोग-5 ग्राम कासमर्दादि घृत का सेवन करने से शोष, ज्वर, प्लीहावृद्धि तथा कास का शमन होता है।
- प्रवाहिका-कासमर्द पञ्चाङ्ग का क्वाथ बनाकर 20-25 मिली मात्रा में पिलाने से प्रवाहिका तथा आमशय विकारों का शमन होता है।
- विबन्ध-10-20 मिली कसौंदी पञ्चाङ्ग क्वाथ का सेवन करने से वातानुलोमन होकर कब्ज का निवारण होता है।
- कसौंदी के पुष्पों से निर्मित गुलकन्द को 3-6 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से मलावरोध दूर होकर उदर विकारों का शमन होता है।
- रक्तार्श-10 कसौंदी के बीज तथा काली मिर्च के 1-2 दानों को मिलाकर, पानी में पीसकर प्रात सायं जल के साथ पिलाने से रक्तार्श (खूनी बवासीर) में लाभ होता है। इसको सुख विरेचन के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है।
- कामला-कासमर्द के 5 ग्राम पत्तों को 2-4 नग काली मिर्च के साथ पीस छानकर सुबह-शाम पिलाने से पीलिया रोग में लाभ होता है।
- मूत्रकृच्छ्र-10-20 मिली मूल क्वाथ को दिन में 2 से 3 बार पिलाने से मूत्र त्याग में कठिनता, मूत्र का ना आना, ज्वर, शोथ, विष तथा मूत्र-विकारों में लाभ होता है।
- प्रसव-कासमर्द के पत्रों का स्वरस पिलाने से प्रसव सुखपूर्वक होता है।
- वीर्यविकार-कसौंदी की मूलत्वक् को पीसकर चूर्ण बना लें। 1-2 ग्राम चूर्ण में मधु मिलाकर सुबह-शाम एक गिलास दूध के साथ लेने से वीर्य का पतलापन दूर होकर वीर्य पुष्ट होता है तथा धातु क्षय ठीक हो जाता है।
- सूजाक-काली कसौंदी की 10-20 ग्राम ताजी पत्तियों को 200 मिली पानी में पकाकर, क्वाथ बना लें। इस क्वाथ को घावों का प्रक्षालन करने पर सूजाक में लाभ होता है।
- श्लीपद-10 ग्राम कसौंदी मूल कल्क को समभाग गोघृत के साथ प्रात सायं सेवन करने से श्लीपद (हाथी पांव रोग) में लाभ होता है।
- चर्मरोग-20-30 मिली कसौंदी पञ्चाङ्ग क्वाथ को सुबह-शाम पीने से रक्त का शोधन होता है एवं चर्म रोगों में लाभ होता है।
- कसौंदी पञ्चाङ्ग क्वाथ को जल में मिलाकर स्नान करने से तथा विकार ग्रस्त दैहिक स्थलों को धेने से खुजली, विसर्प, दाद, कंडू, संक्रमण इत्यादि रोग ठीक हो जाते हैं।
- कासमर्द के बीजों को पीसकर अथवा तक्र के साथ मिलाकर लगाने से दद्रु तथा कण्डु आदि त्वचा विकारों का शमन होता है।
- कसौंदी की जड़ को सिरके या नींबू स्वरस में पीसकर दाद पर लेप करने से लाभ होता है।
- श्वेतकुष्ठ-कसौंदी और मूली के बीजों को समभाग लेकर दुगुनी मात्रा में गंधक के साथ पीसकर लेप करने से श्वेत कुष्ठ (सफेद दाग) का शमन होता है।
- क्षत-कसौंदी के ताजे पत्तों को पीसकर लेप करने से क्षत तथा दाह-युक्त त्वचा विकारों का शमन होता है।
- नारुरोग-कसौंदी के पत्र कल्क में प्याज और नमक मिलाकर, पीसकर, पीड़ित स्थान पर बांधने से नारु बाहर निकल जाता है।
- अपस्मार-10-20 मिली कसौंदी पञ्चाङ्ग क्वाथ को दिन में 3-4 बार पिलाने से मिर्गी, अपतंत्रक एवं आक्षेपक रोगों में लाभ होता है।
- मानस-विकार-कसौंदी के फूलों को मसलकर रोगी को सुघांने से या कसौंदी के शुष्क फूलों का काढ़ा बनाकर 20 मिली मात्रा में दिन में तीन बार पिलाने से लाभ होता है।
- ज्वर-10-20 मिली कसौंदी मूल क्वाथ को सुबह-शाम पिलाने से, मलेरिया तथा अन्य दीर्घ कालिक ज्वरों का शमन होता है। यह विशेष रूप से विषमज्वर प्रतिरोधक है।
- दुर्बलता-20 मिली कासमर्द मूल क्वाथ को सुबह-शाम पिलाने से शारीरिक दुर्बलता व कमजोरी दूर होती है।
- शोथ-कासमर्द पत्र एवं मूल कल्क का लेप करके गुनगुने जल से स्नान करने पर सर्वशरीरगत शोथ में लाभ होता है।
- कुक्कुर कास-कासमर्द पत्र स्वरस में मधु मिलाकर बच्चों को खिलाने से कुक्कुर कास में लाभ होता है।
- कीटदंश-मकड़ी, बर्रे (भिड़), ततैया आदि विषैले कीटों के काटने पर कसौंदी के पत्रों का स्वरस अथवा कल्क को दंश स्थान पर लगाने से वेदना का शमन हाता है।
- वृश्चिक दंश-कासमर्द की मूल को पीसकर वृश्चिक दंश स्थान पर लगाने से दंशजन्य वेदना आदि प्रभावों का शमन होता है।
प्रयोज्याङ्ग : पत्र, बीज, त्वक्, मूल तथा पञ्चाङ्ग।
मात्रा : स्वरस 6-12 मिली। चूर्ण 3-6 ग्राम। मूलक्वाथ 20-40 मिली। या चिकित्सक के परामर्शानुसार।
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