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आपने कालमेघ के पौधे (kalmegh plant) को अपने आस-पास जरूर देखा होगा, लेकिन शायद कालमेघ को पहचानते, या कालमेघ के फायदे (kalmegh benefits in hindi )के बारे में नहीं जानते होंगे। कालमेघ एक ऐसा पौधा है, जो जड़ी-बूटी के गुणों से भरपूर होता है। वैसे तो कालमेघ दिखने में बहुत ही साधारण-सा पौधा लगता है, लेकिन जब आप कालमेघ के गुणों के बारे में जानेंगे, तो आश्चर्य में पड़ जाएंगे।
आयुर्वेद के अनुसार, कालमेघ के इस्तेमाल से आप शरीर में होने वाले विकारों की रोकथाम कर सकते हैं। कालमेघ का प्रयोग कर कई रोगों का उपचार भी कर सकते हैं। आइए कालमेघ के बारे में विस्तार से जानते हैं।
कालमेघ एक जड़ी-बूटी है। यह चिरायते जैसी होती है। इसके पत्ते हरे मिर्च के पत्ते जैसे हरे, और पीले होते हैं। फल के दोनों सिरों पर नुकीलापन होता है। इसकी जड़ छोटी, पतली, लम्बी, तथा स्वाद में बहुत ही कड़वी होती है। कालमेघ (nilavembu) की मुख्य प्रजाति के अलावा एक और प्रजाति पाई जाती है। यह कालमेघ से कम गुणों वाली होती है।
कालमेघ का वानस्पतिक नाम Andrographis paniculata (Burm. f.) एन्ड्रोग्रैफिस पेनीकुलेटा (Nees, Syn-Andrographis paniculata var. glandulosa Trimen), है, और यह एकेन्थेसी (Acanthaceae) कुल से है। इसे इन नामों से भी जाना जाता हैः-
Kalmegh in –
कालमेघ के औषधीय प्रयोग, प्रयोग के तरीके, प्रयोग की मात्रा ये हैंः-
कई लोग शारीरिक कमजोरी की शिकायत करते हैं। इसमें कालमेघ का इस्तेमाल किया (kalmegh uses in hindi) जा सकता है। इसके लिए 10-20 मिली भूनिम्ब पत्ते का काढ़ा पिएं। इससे शारीरिक कमजोरी दूर हो जाती है।
पेट के रोग में 1-2 ग्राम कालमेघ पंचांग चूर्ण का सेवन करें। इससे पेट के साथ-साथ डायबिटीज आदि बीमारी में भी लाभ (kalmegh benefits in Hindi) होता है।
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कालमेघ (Kalmegh Nilavembu Powder) के इस्तेमाल से सोरायसिस में भी फायदा मिलता है। कालमेघ के चूर्ण को ग्लिसरीन के साथ मिलाकर मलहम बना लें। इसे लगाने से सोरायसिस में लाभ होता है।
पेट में कीड़े हो जाने पर कालमेघ पंचांग (kalmegh in hindi) का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से लाभ होता है।
गर्भावस्था में महिलाओं को बहुत अधिक उल्टी होने की शिकायत रहती है। इसमें 2 ग्राम भूनिम्ब पेस्ट में इतनी ही मात्रा में चीनी मिलाकर सेवन करें। इससे गर्भावस्था में बार-बार होने वाली उल्टी बंद हो जाती है।
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पित्त के कारण होने वाले स्तन संबंधी विकार में हरड़, बहेड़ा, आंवला, नागरमोथा, भूनिम्ब, तथा कुटकी लें। इनसे काढ़ा बना लें। इसे 20-30 मिली मात्रा में पीने से लाभ होता है।
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सूजन को ठीक करना है, तो भूनिम्ब, तथा सोंठ को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर पेस्ट बना लें। इसके 2 ग्राम मात्रा को गुनगुने जल के साथ सेवन करने से सूजन में लाभ होता है। कालमेघ का इस्तेमाल (nilavembu uses)सूजन को कम करने में मदद करता है।
मिट्टी के एक घड़े में भूनिम्ब के पत्ते बिछा लें। इसके ऊपर धनिया के पत्ते बिछाकर, पानी से भिगो कर, रात भर छोड़ दें। सुबह रस निकालकर सेवन करें, तथा हाथ-पैर पर लेप करें। इससे जलन खत्म होती है।
मूत्र रोग में 1-2 ग्राम भूनिम्ब पंचांग चूर्ण को 10-20 मिली बड़ी लोणी (Portulaca oleracea) काढ़ा के साथ सेवन करें। इससेऔर पढ़ें – एनीमिया कम करने के घरेलू उपचार मूत्र रोग जैसे पेशाब में दर्द होना, पेशाब रुक-रुक कर आने जैसी परेशानी ठीक होती है।
बवारीस में कालमेघ (kalmegh in hindi) का उपयोग किया जा सकता है। इन्द्रयव, कलिहारीकन्द, पिप्पली, चित्रकमूल, अपामार्ग के बीज लें। इनके साथ भूनिम्ब, तथा सेंधा नमक लें। सभी को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बनायें। चूर्ण में बराबर मात्रा में गुड़ मिला लें। इसकी 125 मिग्रा की वटी बनाकर रोज सुबह और शाम सेवन करें। आपको 1-1 वटी का सेवन करना है। इससे बवासीर रोग में लाभ होता है।
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कफज विकार के कारण होने वाली बुखार के लिए चिरायता, निम्ब छाल, पिप्पली, कचूर, शुण्ठी, शतावरी लें। इनके साथ गुडूची, तथा बृहती को समान मात्रा में लें। इसका काढ़ा बनाकर (10-20 मिली) पीने से कफज दोष के कारण हुए बुखार में फायदा होता है।
टीबी एक गंभीर बीमारी है, लेकिन अगर आप टीबी रोग में कालमेघ (kalamegha) का सेवन करते हैं, तो इससे काफी फायदा मिलता है। टीबी रोग में 2 ग्राम पंचांग चूर्ण में 1 ग्राम काली मिर्च का चूर्ण मिला लें। इसे 1 माह तक सेवन करने से टीबी रोग में लाभ होता है।
लिवर के विकारों में भी कालमेघ (kalamegha)का प्रयोग करने से फायदा मिलता है। कालमेघ पंचांग के रस, या पंचांग का काढ़ा बनाकर सेवन करें। इससे लिवर के विकार ठीक होते हैं।
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सांप काटने पर भूनिम्ब के पत्तों (kalmegh pata) को पीसकर, सांप के काटने वाले स्थान पर लेप करें। इससे सांप के जहर के साथ-साथ बिच्छू के विष, दर्द, और जलन में फायदा (kalmegh benefits) होता है।
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कालमेघ (kalamegha)का उपयोग इस तरह किया जा सकता हैः-
कालमेघ (Kalmegh tree) के इस्तेमाल की ये मात्रा होनी चाहिएः-
कालमेघ का भरपूर लाभ (nilavembu uses)लेने के लिए चिकित्सक के परामर्शानुसार इसका सेवन करें।
कालमेघ (kalmegh tree) का अधिक मात्रा, और ज्यादा दिनों तक उपयोग करने पर ये नुकसान हो सकते हैंः-
इसमें प्रजनन संस्थानगत विषाक्त प्रभाव तथा शुक्रजनन रोधक क्रिया देखी गयी है। साइटोकाईनेसिस के कारण स्पर्मेटोजेनिक कोशिका का विभाजन भी हो सकता है।
कालमेघ (nilavembu in hindi)के सेवन से जितने लाभ होते हैं उतने नुकसान (nilavembu side effects)भी, जैसे- गर्भस्रावी प्रभाव के कारण कालमेघ का प्रयोग गर्भावस्था में नहीं करना चाहिए।
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कालमेघ के पौधे (kalmegh tree) की खेती पूरे भारत में की जाती है। खासकर भारत के वन्य-प्रदेशों, एवं मैदानी क्षेत्रों में कालमेघ की खेती अधिक होती है।
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