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Kaandeer: नव जीवन दे सकती है काण्डीर- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

Contents

कांडीर का परिचय (Introduction of Kaandeer)

आयुर्वेद में सेहत का खजाना पाया जाता है। जिनमें कांडीर का नाम भी आता है। कांडीर को हिन्दी को जल धनिया भी कहते हैं। जल धनिया में पौष्टिकता का गुण इतना होता है कि वह आयुर्वेद में औषधि के रूप में काम करता है। कांडीर का उपयोग बाल, त्वचा या, महिला जैसे अनके रोगों के इलाज के लिए  आयुर्वेद में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है।

kaandeer

कांडीर क्या है? (What is Kaandeer in Hindi?)

असल में काण्डीर एक ऐसा शाकीय पौधा होता है,जो सीधा, चिकना, 30-90 सेमी ऊँचा होता है। इसका काण्ड या तना मोटा, हरे रंग का, पर्व सन्धि युक्त, शाखा-प्रशाखायुक्त होता है। काण्ड एवं शाखाएँ पोली, गहरे खात युक्त तथा अरोमश होती हैं। इसके मूलज पत्र 18-37 मिमी व्यास के, वृक्काकार, आधार पर 3 भागों में विभाजित धनिया के पत्ते जैसे कटावदार, तेज गंध वाला लगभग तीन भागों में भागों में विभाजित दिखता है। इसके फूल छोटे, 6-8 मिमी व्यास के, पीले रंग के समशिखीय शाखाओं पर लगे होते हैं। इसके फल छोटी पीपली जैसे  6-9 मिमी लम्बे, छोटे होते हैं। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल नवम्बर से मार्च तक होता है।

कांडीर के रासायनिक घटक-

काण्डीर के सम्पूर्ण पौधे में सिरेटोनिन, वाष्पशील तेल, एनिमोनिन, रेननकुलिन, ट्रिप्टामिन, प्रोटोएनिमोनिन, रेजिन तथा नारकोटिन नामक एक मादक पदार्थ पाया जाता है।

 

अन्य भाषाओं में कांडीर के नाम (Names of Kaandeer in Different Languages)

कांडीर का वानास्पतिक नाम Ranunculus sceleratus Linn. (रैननकुलस स्केलेरॅटस) Syn-Ranunculus holophyllus Hance होता है। इसका कुल  Ranunculaceae (रैननकुलैसी) होता है और इसको अंग्रेजी में Celery-leaved crowfoot (सेलेरी लीव्ड क्रोफूट) कहते हैं। चलिये अब जानते हैं कि कांडीर और किन-किन नामों से जाना जाता है। 

Sanskrit-काण्डीर, काण्डकटुक, सुकाण्डक; 

Hindi-देवकाण्डीर, जल धनिया; 

Kumai-शिम (Shim); 

Bengali-पोदिका (Podika), पालिक (Palik); 

Nepali-नाककोरे (Nakkore); 

Bihari-पालिका (Palika);  

Marathi-कुलागी (Kulagi); 

Manipuri-लालूकाओबा (Lalukaoba)।

English-पॉयज्नस बटरकप (Poisonous buttercup), ब्लिस्टर बटरकप (Blister buttercup); 

Arbi-कबीकजज (Kabikajaj), केफेसाबा (Kafessaba); 

Persian-कबीकाज (Kabikaj)।

कांडीर का औषधीय गुण (Medicinal Properties of Kaandeer in Hindi)

काण्डीर प्रकृति से  कड़वा ,गर्म, तीखा और रूखा होता है। काण्डीर पेट संबंधी रोग, प्लीहा या स्प्लीन रोग, पेट दर्द, मंदाग्नि या बदहजमी दूर करनेवाला होता है।

काण्डीर का पौधा उत्तेजक, मूत्र को बढ़ाने वाला, कृमिघ्न, उद्वेष्टनहर(Antispasmodic), दर्दनिवारक, पाचक, जीवाणु (बैक्टिरीया) और विषाणु (वायरस) को मारने वाला, तथा कोशिका विकृति कारक होता है।

काण्डीर श्लेष्मा के कारण होने वाला ज्वर, गृध्रसी (साइटिका), आमवात (रूमेटाइड अर्थराइटिस), मूत्रकृच्छ्र (मूत्र रोग), श्वास, (श्वसनकज्वर), पेट दर्द, त्वचा रोग तथा कृमि नाशक के इलाज रूप में काम करता है।

काण्डीर का रस क्षारीय तथा त्वचा संबंधी रोगों के इलाज के रूप में काम करता है। काण्डीर के बीज बलकारक तथा आमाशय सक्रियता वर्धक होते हैं।

काण्डीर से प्राप्त प्रोटोएनीमोनिन (Protoanemonin)में तीव्र जीवाणुरोधी, विषाणुरोधी, कोशिका-विकार-कारक (Cytopathogenic) तथा कृमिघ्न क्रिया होती है। काण्डीर के पत्तों के रस में शीघ्र एवं फंगस को मारने वाला (fungicidal) क्रिया प्रदर्शित होती है। काण्डीर से प्राप्त प्रोटोएनीमोनिन तथा एनीमोनिन में तीव्र कवकरोधी गुण होता है। काण्डीर के पत्ते का रस कवकनाशक गुण प्रदर्शित करता है। काण्डीर के वायवीय भागों का सार शोथहर क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है।

कांडीर के फायदे और उपयोग (Uses and Benefits of Kaandeer in Hindi) 

कांडीर में पौष्टिकारक गुण होता है, उतना ही औषधी के रूप में कौन-कौन से बीमारियों के लिए फायदेमंद है,चलिये इसके बारे में आगे जानते हैं-

गंजेपन के इलाज में फायदेमंद कांडीर (Kaandeer Beneficial to Treat Baldness in Hindi)

baldness

आजकल बाल झड़ने की समस्या आम हो गई है। काण्डीर के पत्तों का काढ़ा बनाकर सिर को धोने से इन्द्रलुप्त यानि गंजापन, खालित्य तथा पालित्य (सफेद बाल) आदि रोगों में लाभ होता है।

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मुँह के दुर्गंध को दूर करने में लाभदायक कांडीर (Benefit of Kaandeer to Treat Bad Breath in Hindi)

कभी-कभी किसी बीमारी के साइड इफेक्ट के कारण मुँह से बदबू आने की समस्या होती है। काण्डीर के बीजों का काढ़ा बनाकर गरारा करने से मुँह की दुर्गंध दूर होने में मदद मिलती है।

 

दांत दर्द से राहत दिलाने में फायदेमंद कांडीर (Kaandeer Beneficial to Treat Toothache in Hindi)

काण्डीर के पत्तों को पीसकर उसकी लुगदी बनाकर दांतों पर मलने से दांत का दर्द दूर करने में मदद मिलती है।

कंठमाला या मम्स से राहत दिलाने में लाभकारी कांडीर (Kaandeer Beneficial in Mumps in Hindi)

मम्स से परेशान हैं तो काण्डीर के पत्तों को पीसकर लेप करने से कंठमाला का इलाज करने से लाभ मिल सकता है।

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खांसी में फायदेमंद कांडीर (Kaandeer Beneficial in Cough in Hindi)

सोंठ, मरिच, पिप्पली, काण्डीर, काकनासा, शतावरी, गोखरू आदि द्रव्यों से विधिवत घी में  पकाकर, मात्रानुसार प्रयोग करने से खांसी, बुखार, खाने की रूची बढ़ाने में फायदेमंद, प्लीहा-विकार, सिरदर्द आदि रोगों में लाभ होता है।

पाइल्स के इलाज में फायदेमंद कांडीर (Benefit of Kaandeer to Treat Piles in Hindi)

Piles

काण्डीर के 500 मिग्रा जड़ के चूर्ण को 500 मिग्रा काली मरिच चूर्ण में मिलाकर, पीसकर शहद मिलाकर सेवन करने से अर्श या पाइल्स में लाभ मिलता है।

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पेट दर्द से राहत दिलाने में लाभकारी कांडीर (Benefit of Kaandeer to Treat Stomach Ache in Hindi)

10-15 मिली काण्डीर पञ्चाङ्ग के काढ़े का सेवन करने से पेट दर्द, गुल्म, बदहजमी तथा कृमि रोगों में लाभ मिलता है।

 

हस्तमैथुनजन्य नपुंसकता के इलाज में लाभकारी कांडीर (Benefit of Kaandeer to Treat Masturbation Impotence in Hindi)

काण्डीर के पत्तों को पीसकर इन्द्रिय (कामेन्द्रिय) में लगाने से हस्तमैथुनजन्य नपुंसकता में लाभ होता है।

 

रजोरोध में लाभकारी कांडीर (Kaandeer Beneficial to Treat Secondary Amanorrhoea in Hindi)

काण्डीर के पत्तों को पीसकर गोली बनाकर योनि में रखने से रूका हुआ आर्तव फिर से बहने लगता है।

 

आमवात से राहत पाने में कांडीर फायदेमंद (Kaandeer Beneficial to Treat Rheumatoid arthritis in Hindi)

उम्र के साथ अगर जोड़ों के दर्द से परेशान रहते हैं तो काण्डीर के पत्तों को पीसकर लेप करने से आमवात में लाभ होता है। इसके अलावा कांडीर पत्ते के रस से तिल तेल को पकाकर, छानकर ठंडा करके मालिश करने से वात-व्याधियों से राहत मिलती है।

 

कुष्ठ के इलाज में लाभकारी कांडीर (Benefit of Kaandeer to Treat Leprosy in Hindi)

 Leprosy

देवदारु, काण्डीर, पूतिकरंज, जटामांसी तथा काकनासा आदि द्रव्यों को समान मात्रा में लेकर लेप बनाकर बाह्य रूप से लगाने से मण्डल कुष्ठ में लाभ होता है।

 

त्वचा संबंधी रोगों में फायदेमंद कांडीर (Kaandeer Beneficial in Skin Diseases in Hindi)

कांडीर का औषधिकारक गुण त्वचा संबंधी रोगों के इलाज में लाभकारी होता है-

-काण्डीर के बीजों को पीसकर लेप करने से खुजली में लाभ होता है।

-काण्डीर के पौधे को पीसकर निर्मित कल्क को लगाने से श्वित्र तथा पामा (Scabies)में लाभ होता है।

-काण्डीर के पत्तों का पेस्ट और पञ्चाङ्ग लेप करने से क्षत, व्रण, घाव के सूजन तथा घाव के दर्द से राहत मिलती है।

-काण्डीर के पञ्चाङ्ग या पत्तों को पीसकर लगाने से सूजन, ध्वजभंग, खुजली तथा खाज आदि रोगों में लाभ होता है।

 

नारू रोग में फायदेमंद कांडीर (Benefit of Kaandeer in Dracunculiasis in Hindi)

पानी के संक्रमण को दूर करने में कांडीर से इस तरह से इलाज करने में लाभ मिलता है। काण्डीर के जड़ को पीसकर गुनगुना करके लेप करने से नारू में लाभ होता है।

 

प्लेग में इलाज में फायदेमंद कांडीर (Kaandeer Beneficial to Treat Plague in Hindi)

प्लेग की गाँठों पर काण्डीर पञ्चाङ्ग का लेप करने से लाभ मिलता है। कांडीर का इलाज इससे राहत पाने में मदद करता है।

कांडीर का उपयोगी भाग (Useful Parts of Kaandeer)

आयुर्वेद के अनुसार कांडीर का औषधीय गुण इसके इन भागों को प्रयोग करने पर सबसे ज्यादा मिलता है-

-पत्ता

-जड़

-तना और 

-बीज।

कांडीर का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए (How to Use Kaandeer in Hindi)

यदि आप किसी ख़ास बीमारी के घरेलू इलाज के लिए कांडीर का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही इसका उपयोग करें। चिकित्सक के सलाह के अनुसार 1-3 ग्राम चूर्ण ले सकते हैं।

कांडीर सेवन के साइड इफेक्ट (Side Effect of Kaandeer)

काण्डीर का हरा ताजा पौधा अत्यधिक तीक्ष्ण, विषाक्त तथा स्फोटक होता है, अधिक मात्रा में इसका प्रयोग करने से मुँह में घाव, त्वचा में स्फोट (फफोला) आदि लक्षण प्रकट हो सकते हैं। अत्यधिक मात्रा में काण्डीर घातक भी हो सकता है। काण्डीर के पौधे को सूखाकर या उबालकर इसकी विषाक्तता को दूर किया जाता है। काण्डीर का प्रयोग मात्रानुसार तथा चिकित्सकीय परामर्शानुसार करना चाहिए।

कांडीर कहां पाया या उगाया जाता है (Where is Kaandeer Found or Grown in Hindi)

भारत में नदियों के किनारे तथा उष्ण पर्वतीय घाटियों में जम्मु-कश्मीर से बंगाल, आसाम तक 1500 मी की ऊंचाई पर एवं उत्तरी भारत में सर्वत्र प्राप्त होता है। इसके पौधे विषाक्त होते है। काण्डीर के झाड़ी जलाशयों के समीप या जल प्रचुर स्थानों में अधिक पाए जाते हैं।