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ज्योतिष्मती (malkangni) कड़वी, तीखी, कसैली, गर्म और चिकनी होती है। कई प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथों में ज्योतिषमती के प्रयोगों की विस्तार से चर्चा की गई है। चरक संहिता के अनुसार, बहुत सालों से मिर्गी और कुष्ठ रोग के इलाज के लिए ज्योतिष्मती का इस्तेमाल किया जा रहा है। ज्योतिष्मती का तेल (malkangni oil benefits in hindi) तीखा, गर्म, कडवा, वात–कफ का नाश करने वाला होता है। यह पेट के कीड़ों को खत्म करने वाला, कुष्ठ रोग को ठीक करने वाला तथा डायबिटीज में फायदा पहुंचाने वाला होता है।
आयुर्वेद में ज्योतिष्मती (malkangni) के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है। पतंजलि के अनुसार ज्योतिष्मती का उपयोग आंखों की बीमारी और कफ-वात विकार में लाभ देता है। घाव पीलिया तथा पेट दर्द में भी लाभदायक होती है। इससे भूख बढ़ती (Appetizer) है और याददाश्त मजबूत होती है।
ज्योतिष्मती (malkangni) के तने छूने पर खुरदरी लगती है। इसके फल लगभग गोलाकार और चिकने होते हैं। कच्चे रहने पर ये हरे होते हैं जबकि पक जाने पर पीले हो जाते हैं। इसके फलों के अन्दर 1 से 6 तक की संख्या में बीज (malkangani seeds) होते हैं। ये बीज नुकीले अथवा अण्डाकार, गहरे लाल रंग की खोल से घिरे हुए होते हैं।
ज्योतिष्मती (jyotishmati) औषधीय गुणों से भरपूर एक वनस्पति है जिसके फल, पत्तों और जड़ों का उपयोग अनेक प्रकार की बीमारियों में किया जाता है। इसकी लता लगभग 10 मीटर लम्बी तथा झाड़ीदार होती है।
इसकी लताएं कई बार यह ऊंचे वृक्षों पर चढ़ जाती हैं। इसकी कोमल तथा पतली शाखायें नीचे की ओर झुकी हुई होती हैं। जब इन शाखाओं में फूल तथा फल लगते हैं तब ये और नीचे झुक जाती हैं और हवा से इधर-उधर झूलती रहती हैं।
ज्योतिष्मती (jyotishmati) का वानस्पतिक नाम सिलास्ट्रस पैनिकुलेटस (Celastrus paniculatus Willd.), Syn-Catha paniculata Scheidw., Celastrus utansRoxb) है। यह सिलेस्ट्रसी (Celastraceae) कुल का पौधा होता है। ज्योतिष्मती को देश और विदेश में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है, जो ये हैंः-
अब तक आपने जाना ज्योतिष्मती क्या है और इसे कितने नामों से जाना जाता है। आइए जानते हैं कि ज्योतिष्मती के प्रयोग से फायदे क्या होते हैं और इसकी विधि क्या हैः-
कई लोग बराबर सिर दर्द की शिकायत करते हैं। ऐसे लोग ज्योतिष्मती के पत्ते एवं जड़ को पीसकर मस्तक पर लगाएं। इससे सिर दर्द से राहत मिलती है।
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ज्योतिष्मती के तेल (malkangni oil benefits) की पैर के तलवों पर मालिश करें। इससे आंख के विकारों का नाश होता है तथा आंखों की रोशनी बढ़ती है।
ज्योतिष्मती की जड़ को पीसकर छाती पर लेप करने से फेफड़े की सूजन कम होती है।
ज्योतिष्मती (jyotishmati) का तेल (1-5 बूंद), सज्जीखार (60 मिग्रा) तथा हींग (60 मिग्रा) को दूध के साथ 15 दिन या 1 माह तक सेवन करें। इससे पेट के रोग खत्म होते हैं।
भगंदर (Fistula) के पीड़ितों के लिए ज्योतिष्मती (malkangini) बेहद असरकारी और लाभकारी औषधि है। रसांजन, दोनों हल्दी, दन्ती, ज्योतिष्मती, नीम्बू के पत्ते और मंजीठ को गौमूत्र में पीस लें। इसका लेप करने से भगन्दर में लाभ होता है।
ज्योतिष्मती बवासीर में भी लाभ पहुंचाती है। बवासीर के मरीज ज्योतिष्मती की जड़ को चावल की धुलाई किए गए पानी से पीस लें। इसमें काली मिर्च का चूर्ण मिला लें। इससे लेप करने से बवासीर में लाभ होता है। खूनी बवासीर की बीमारी में ज्योतिष्मती के बीज (malkangani seeds) को पीसकर बवासीर के मस्सों पर लगाएं। इससे फायदा होता है।
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ज्योतिष्मती के 2-5 बूंद तेल (malkangni oil benefits) को लस्सी में डालकर पीने से मूत्र विकार (पेशाब से संबंधित बीमारी) ख़त्म होते हैं।
मासिक धर्म विकार में ज्योतिष्मती का प्रयोग करना अच्छा परिणाम देता है। महिलाएं गुड़हल के फूल को कांजी के साथ पीस लें। इसमें घी में भुने हुए ज्योतिष्मती के पत्तों को मिला लें। इसका सेवन करने से बहुत दिनों का रुका हुआ मासिक चक्र तुरंत शुरू हो जाता है।
ज्योतिष्मती (malkangini) के 1-2 बीज के चूर्ण को खीर में डालकर खाने से नपुंसकता मिटती है। ज्योतिष्मती के तेल (jyotishmati oil) की 5-10 बूंदों को पान में लगाकर दिन में दो बार खाएं। इससे नपुसंकता में लाभ होता है। इस अवधि में दूध तथा घी का अत्यधिक सेवन करना चाहिए।
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गठिया एक ऐसी बीमारी है जिससे कई लोग परेशान रहते हैं। इसमें शरीर के जोड़ों में बहुत दर्द होता है। गठिया के मरीज का प्रयोग करेंगे तो लाभ मिलता है। ज्योतिष्मती के बीज (malkangani seeds) के 500 मिग्रा चूर्ण को मधु के साथ खाएं। इससे गठिया तथा बादी के रोग खत्म होते हैं।
ज्योतिष्मती का तेल जोड़ों पर लगाने से छोटे जोड़ों की सूजन ठीक हो जाती है।
शरीर में कहीं भी दर्द हो रहा है तो आप ज्योतिष्मती का इस्तेमाल कर सकते हैं। किसी भी तरह के दर्द में ज्योतिष्मती के बीज तथा पत्तों को पीसकर दर्द वाले स्थान पर लगाएं। दर्द ठीक हो जाता है।
आप घाव को ठीक करने के लिए भी ज्योतिष्मती का उपयोग कर सकते हैं। ज्योतिष्मती आदि शोधन वर्ग के द्रव्यों का काढ़ा बनाकर घाव को धोने से घाव में सुधार होता है। ज्योतिष्मती को घाव पर लगाने से घाव जल्दी भरता है।
सात बार छाने हुए क्षार जल से ज्योतिष्मती के तेल (jyotishmati oil) को पका लें। इस तेल की मालिश करने से सिध्म कुष्ठ में लाभ होता है।
ज्योतिष्मती (celastrus paniculatus) के बीज का तेल (malkangni oil) लगाने से त्वचा रोगों में लाभ होता है। इसके बीज के चूर्ण को गोमूत्र के साथ पीस लें। इसे लगाने से एक्सिमा (eczema) में लाभ होता है।
ज्योतिष्मती के तेल से पिण्डार की जड़ को पीस लें। इसे नाक में 1-2 बूंद डालने से बुखार के कारण आई आलस्य दूर होती है।
ज्योतिष्मती का तेल (malkangni oil) लकवा वाले अंग पर लगाएं। इससे पक्षाघात (लकवा) में लाभ होता है।
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प्रयोग करने से पूर्व चिकित्सक से परामर्श जरूर करें।
ज्योतिष्मती (celastrus paniculatus) के इन भागों और रूपों का प्रयोग ऊपर बताए गए तरीकों से किया जा सकता है:-
वैसे तो ज्योतिष्मती के प्रयोग से सामान्य तौर पर नुकसान नहीं होता है, लेकिन औषधि के रूप में प्रयोग करने के पहले किसी आयुर्वेद चिकित्सक से सलाह जरूर लें।
ज्योतिष्मती (celastrus paniculatus) की लताएं भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में लगभग 1200 मीटर की ऊंचाई वाले पर्णपाती वनों में पायी जाती है।
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