फंगल संक्रमण (Fungal infection) एक आम प्रकार का त्वचा संबंधी संक्रमण होता है। मनुष्यों में, फंगल संक्रमण तब होता है जब कवक (Fungus) या फंगस शरीर के किसी क्षेत्र में आक्रमण करते है और प्रतिरक्षा प्रणाली इनसे लड़ने में सक्षम नहीं होती है।
जिससे कवक से प्रभावित त्वचा में लाल धब्बे, दाद, खुजली और त्वचा में घाव आदि लक्षण दिखाई देने लगते हैं। ये कवक हवा, मिट्टी, पौधों और पानी किसी भी जगह में विकसित हो सकते है तथा पर्यावरण के प्रभाव के कारण दिन-ब-दिन बढ़ने लगते हैं।
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फंगल संक्रमण तीनों दोषों के कारण होता है। लक्षणों के आधार पर दोषों की दुष्टि भिन्न-भिन्न हो सकती है। खुजली होने पर कफ एवं पित्त असंतुलित होना, लाल होने पर कफ एवं पित्त का असंतुलन और त्वचा पर सफेद चकत्ते होना- वात एवं कफ का असंतुलन होने के कारण होता है।
फंगल संक्रमण एक आम समस्या है परन्तु अगर समय से इसका इलाज न किया जाए तो यह एक गम्भीर रूप ले सकता है। फंगल संक्रमण भले ही त्वचा पर पड़ने वाले लाल चकत्तों जैसा होता है, परन्तु इसका प्रभाव काफी खतरनाक साबित हो सकता है। यह रोग सिर्फ त्वचा तक ही सीमित नहीं होता है बल्कि यह ऊतक, हड्डियों और शरीर के सभी अंगों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है।
फंगल इंफेक्शन नवजात से वृद्धावस्था तक किसी भी अवस्था में हो सकता है।
वैसे तो फंगस के कारण जो इंफेक्शन होता है उसमें मूल रूप से खुजली या रैशेज ही होते हैं। इसके अलावा जो लक्षण होते हैं वह हैं-
-रैशेज
-त्वचा में लाल रंग के पैचेस होना।
-प्रभावित क्षेत्रों पर सफेद चूर्ण की तरह पदार्थ निकलना।
-त्वचा में पपड़ी जमना या खाल उतरना।
-त्वचा में दरारे होना।
-त्वचा का लाल होना।
फंगल इंफेक्शन होने के बहुत सारे कारण होते हैं, जो फंगस के पनपने या बढ़ने के वजह बन जाते हैं-
-कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली भी फंगल संक्रमण का कारण बनती है।
-ज्यादातर गर्म, नम वातावरण तथा नम त्वचा क्षेत्र इस संक्रमण के होने का प्रमुख कारण होते है।
-एड्स, एच.आई.वी संक्रमण, कैंसर, मधुमेह जैसी बीमारियाँ भी फंगल संक्रमण का कारण बनती है।
-जो लोग एक फंगल संक्रमण (Fungal infection) से पीड़ित व्यक्ति से संपर्क में आते हैं, उन्हें भी संक्रमण हो सकता है।
-अधिक वजन और मोटापा भी इसका एक कारण बन सकता है। जांघों पर अतिरिक्त चर्बी, नियमित और लंबे समय तक साईकिल चलाने या जॉगिंग करने से इस हिस्से में अतिरिक्त नमी और रगड़ होने लगती है। लगातार इस रगड़ से त्वचा में रैशेज हो सकते हैं। इससे फंगल और अन्य संक्रमण हो सकते हैं।
-अधिक पसीना, फंगस के बढ़ने का कारण हो सकते हैं।
-आनुवांशिकी कारक या फंगल संक्रमण (Fungal infection) का पारिवारिक इतिहास भी इस संक्रमण का प्रमुख कारण होता है।
-महिलाओं को सेनेटरी पैड से भी जांघों के आस-पास संक्रमण हो सकता है।
-पाउडर, डियोड्रेंट, कपड़ा धोने के लिए इस्तेमाल होने वाले डिटर्जेंट पाउडर के एलर्जी के कारण भी जांघों के बीच के ग्रोइन एरिया में रैशेज हो सकते हैं।
-कई बार बच्चों को नैपी रैशज़ हो जाते हैं। जब बच्चा अधिक समय तक गीली नैपी पैड के संपर्क में रहता है, तो उसे ऐसी परेशानी हो सकती है।
-आमतौर पर मानसून के दौरान फंगल पैदा करने वले जीवाणु कई गुना तेजी से फैलते हैं। आमतौर पर शरीर के नजर अंदाज किए गए अंगों जैसे पैर की अंगुलियों के आगे का भाग, अंगुलियों के आगे का भाग, अंगुलियों आदि के बीच, कमर का निचला हिस्सा, जहाँ ये संक्रमण बहुत अधिक तेज़ी से होता है। मानसून के दौरान लोग हल्की बूंदा-बांदी में भीगने के बाद अक्सर त्वचा को गीला छोड़ देते हैं। यही छोटी-सी असावधानी कई बार फंगल से संक्रमित होने का कारण बन जाती है, क्योंकि नमी में बढ़ता है त्वचा पर फफूंद संक्रमण यानि बरसाती मौसम, उमस और नमी भरे वातावरण में फंगस का आक्रमण बढ़ जाता है। यही कारण है कि इन दिनों अधिकतर लोग फंगल इंफेक्शन का शिकार होते हैं। इम्यून सिस्टम यानि रोग प्रतिरोधी क्षमता का कमजोर होना-स्किन इंफेक्शन की बड़ी वजह होती है। इस मामले में त्वचा संक्रमण का जोखिम ज्यादा बढ़ जाता है। जून, जुलाई और अगस्त के महीने के दौरान यह समस्या काफी बढ़ जाती है।
फंगल इंफेक्शन के समस्या से बचने के लिए सबसे पहले जीवनशैली और आहार में बदलाव लाने की ज़रूरत होती है-
-मानसून में फंगल संक्रमण अधिक होता है।
-त्वचा को सूखा और स्वच्छ रखे।
-सूती कपड़े पहने।
-बरसात में बालों को गीला न रहने दे।
-पानी पर्याप्त मात्रा में पीयें ताकि त्वचा सूखी न रखे।
-फंगल संक्रमण की नवीन अवस्था में एलोपैथिक उपचार बेहतर परिणाम देते हैं परन्तु अगर एलोपैथिक उपचार से संक्रमण ठीक न हो तो आयुर्वेदिक उपचार ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकता है।
सामान्यतः फंगल इंफेक्शन की समस्या से निजात पाने के लिए सबसे पहले घरेलू नुस्ख़ों को ही अपनाया जाता है। यहां हम पतंजली के विशेषज्ञों द्वारा पारित कुछ ऐसे घरेलू उपायों के बारे में बात करेंगे जिनके प्रयोग से इंफेक्शन की समस्या को कुछ हद तक राहत पाया जा सकता है-
हल्दी में एंटीफंगल गुण होते हैं, इसलिए इसके प्रयोग से भी फंगल इंफेक्शन ठीक हो जाते हैं। इसके लिए आप इंफेक्शन वाली जगह पर कच्ची हल्दी को पीसकर लगा सकते हैं। अगर कच्ची हल्दी उपलब्ध नहीं है तो आप हल्दी पाउडर को थोड़े से पानी के साथ मिलाकर इसका गाढ़ा पेस्ट बनाकर इसे भी प्रभावित जगह पर लगा सकते हैं। हल्दी के प्रयोग से इंफेक्शन की वजह से होने वाले दाग-धब्बे भी मिट जाते हैं।
नीम त्वचा के किसी भी तरह के संक्रमण को रोकने में लाभकारी होता है। नीम के पानी या नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर इस पानी का प्रयोग दिन में कई बार त्वचा पर करने से फंगल इंफेक्शन से राहत मिलती है।
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पुदीने में इंफेक्शन के प्रभाव को नष्ट करने की क्षमता होती है। पुदीने की पत्तियों को पीसकर पेस्ट बना लें। इस पुदीने के पेस्ट को त्वचा में लगा कर इसे 1 घण्टे तक रहने दे फिर निकाल दें।
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केरोसिन के तेल में 5 ग्राम कपूर और 1 ग्राम नेप्थलीन को मिला लें। इसे संक्रमण वाली जगह पर कुछ देर मलहम की तरह लगा कर छोड़ दें। जब तक रोग ठीक न हो जाये, इस प्रक्रिया को दिन में दो बार दोहराये।
टी ट्री ऑयल में एंटी-बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं। त्वचा संक्रमण को दूर करने के लिए टी ट्री ऑयल को सीधे प्रभावित हिस्से में रोजाना दो बार लगायें।
पीपल की पत्तियों को थोड़े पानी के साथ उबाल लें। इसे ठण्डा होने दें और इस पानी का प्रयोग त्वचा को धोने के लिए करें। इससे घाव जल्दी ठीक होने लगते हैं।
लहसुन में एंटी फंगल गुण मौजूद होते हैं इसलिए खाने में लहसुन के प्रयोग से फंगल इंफेक्शन का खतरा कम हो जाता है। लहसुन के प्रयोग के लिए आप लहसुन की 3-4 कलियों को पीस लें और इसके पेस्ट को इंफेक्शन वाली जगह पर लगाएं। अगर आपने इंफेक्शन वाली जगह को ज्यादा खुजलाया है तो लहसुन लगाने से एक मिनट हल्की-सी जलन हो सकती है लेकिन इससे ये इंफेक्शन धीरे-धीरे ठीक होने लगता है।
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जैतून का तेल काफी गुणकारी होता है लेकिन पत्तों में भी कई गुण होते हैं। फंगल इंफेक्शन को ठीक करने के लिए जैतून के 5-6 पत्तों को पीसकर इसका पेस्ट बना लें और इसे इंफेक्शन वाली जगह पर लगा लें। इस पेस्ट को त्वचा पर आधे घण्टे लगा रहने दें इसके बाद धो लें।
फंगल इंफेक्शन में एलोवेरा जेल के प्रयोग से राहत मिल सकती है, लेकिन इसके लिए ताजा तोड़े गए पत्ते का जेल अच्छा होता है। इसके लिए आप एलोवेरा के ताजे पत्ते को तोड़कर इसे बीच से वर्टिकल काट लें और जेल वाले हिस्से को त्वचा पर सीधे रगड़ें। रगड़ने के बाद बचे हुए रेशों को त्वचा पर 30 मिनट तक रहने दें फिर गुनगुने पानी से धो लें।
दही में एसिड होता है जो हानिकारक बैक्टीरिया को मार देता है। हालांकि दही में खुद भी बैक्टीरिया होते हैं लेकिन वह बैक्टीरिया हमारे शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। फंगल इंफेक्शन के लिए आप दही को इंफेक्शन वाली जगह पर कॉटन की सहायता से लगाएं और मसाज करें। एक बात का ध्यान रहे कि, इंफेक्शन वाली जगह को कभी भी हाथों से न छुएं क्योंकि ये इंफेक्शन संक्रामक होता है।
-चाय के पेड़ के तेल में प्राकृतिक एंटीफंगल यौगिक होते हैं जो फंगल को मारने में मदद करते हैं जो फंगल संक्रमण का कारण बनता है। इसके अलावा, इसके एंटीसेप्टिक गुण अन्य शरीर के अंगों में संक्रमण के फैलाव को रोकते हैं।
-शुद्ध चाय के पेड़ के तेल और जैतून का तेल या मीठे बादाम के तेल को बराबर मात्रा में मिलाएं। दिन में कई बार त्वचा पर लगाने से संक्रमण से राहत मिलता है।
-आप चाय के पेड़ के तेल के तीन हिस्सों और मुसब्बर वेरा जेल के एक हिस्से के साथ मिश्रण भी तैयार कर सकते हैं। दिन में दो बार संक्रमित क्षेत्र में मिश्रण को रगड़ें।
-योनि संक्रमण के लिए, एक टैम्पन पर चाय के पेड़ के तेल की कुछ बूंदें रखें और इसे योनि में दो से तीन घण्टे तक डालें। प्रतिदिन दो बार दोहराएं।
-मध्यम-शृंखला फैटी एसिड की उपस्थिति के कारण नारियल का तेल किसी भी प्रकार के फंगल संक्रमण के लिए एक प्रभावी उपाय के रूप में काम करता है। संक्रमण के लिए जिम्मेदार फंगल को मारने के लिए ये फैटी एसिड प्राकृतिक फंगसाइड के रूप में काम करते हैं।
-धीरे-धीरे प्रभावित क्षेत्र पर नारियल का तेल लगायें और इसे अपने आप सूखने दें। जब तक संक्रमण साफ नहीं हो जाता तब दो या तीन बार दोहराएं।
-नारियल के तेल और दालचीनी के तेल की बराबर मात्रा में मिलाएं और प्रभावित क्षेत्र पर इसे लागू करें। संक्रमण के विकास को नियंत्रित करने के लिए प्रतिदिन दो बार इस उपाय का पालन करें।
-योनि संक्रमण के लिए, जैविक नारियल के तेल में एक टैम्पन भूनें और योनि में डालें। इसे दो घंटों तक छोड़ दें। टैम्पन को हटाने के बाद, गर्म पानी के साथ त्वचा के प्रभावित जगह को अच्छी तरह से कुल्लाएं। संक्रमण समाप्त होने तक प्रक्रिया को दो बार दोहराएं।
-चाय में टैनिन फंगल संक्रमण के लिए फंगल को नष्ट करने में मदद करते हैं। इसके अलावा, चाय में एंटीबायोटिक और अस्थिर गुण होते हैं जो फंगल संक्रमण, सूजन और त्वचा की जलन जैसे फंगल इंफेक्शन के लक्षणों से छुटकारा पाने में मदद करते हैं।
-गर्म पानी में कुछ चाय बैग 10 मिनट के लिए भिगो दें। उन्हें पानी से हटा दें और उन्हें 30 मिनट के लिए रेफ्रिजरेटर में रखें। प्रभावित जगह पर ठण्डे चाय के बैग तब तक लगायें जब तक संक्रमण पूरी तरह से साफ नहीं हो जाता है। इस प्रक्रिया को तीन बार दोहराएं।
-टोनेल फंगस या एथलीट के पैर के लिए, पाँच मिनट के लिए उबलते पानी के चार कप में पांच काले चाय के बैग खड़े करें। पानी को ठण्डा होने दें और फिर 30 मिनट तक प्रभावित पैर को भिगो दें। पाँच से छ सप्ताह के लिए प्रतिदिन दो बार दोहराएं।
-जैतून के पत्ते में एंटीफंगल और साथ ही एंटीमाइक्रोबॉयल गुण होते हैं जो कवक या फंगस को खत्म करने में मदद करते हैं। इसके अलावा, यह प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है, जिससे इंफेक्शन से राहत पाने में आसानी होती है।
-पेस्ट बनाने के लिए कुछ जैतून के पत्तों को पीस लें। प्रभावित क्षेत्र पर सीधे इसे लगायें। इसे 30 मिनट तक छोड़ दें। संक्रमण समाप्त होने तक रोजाना एक या दो बार इस उपाय का पालन करें।
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