शरीर के किसी एक या अनेक अंगो का जलना एक प्रकार की दुर्घटना है जो आग, विद्युत, रसायन, प्रकाश, विकिरण या घर्षण आदि से हो सकती है। बहुत ठण्डी चीजों के सम्पर्क में आने से भी शरीर ‘जल’ सकता है जिसे शीत-जलन (कोल्ड बर्न) कहते हैं। आग, तेल या अन्य किसी अन्य तरल पदार्थ से त्वचा के जलने पर असहनीय दर्द होता है। जलने के कई कारण जैसे तेज धूप, आग से जलना, भाप या कोई गर्म तरल पदार्थ, बिजली या रसायनिक पदार्थ आदि हो सकते हैं।
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जलना आम घरेलू चोटों में से एक है। जलने से त्वचा को गंभीर क्षति होती है। जो की प्रभावित त्वचा की कोशिकाओं का मरने का कारण बनती हैं। गर्म और ठंड दो कारणों से त्वचा जलती है। बहुत ठंड के कारण जैसे त्वचा जलती है उसी तरह तेज धूप, आग से जलना, भाप या कोई गर्म तरल पदार्थ, बिजली या रसायनिक पदार्थ आदि हो सकते हैं। जलने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे गर्म तेल, गर्म पानी, कोई रसायन, गर्म बर्तन पकड़ने से या दिवाली के पटाके के बारुद से भी व्यक्ति जल सकता है। इसके अलावा खाना पकाते समय महिलाएं अक्सर जल जाती हैं। जिसमें गर्म दूध या तेल से जलना मुख्य होता है। वहीं बच्चे अक्सर खेल-कूद या शैतानी करते समय आग या अन्य किसी गर्म चीज की चपेट में आ जाते हैं। मामूली रूप से जलने के घाव तो समय के साथ भर जाते हैं लेकिन गंभीर रूप से जलने पर संक्रमण को रोकने और घावों को भरने के लिए विशेष देखभाल की जरूरत होती है।
त्वचा के जलने के कई कारण होते हैं-
-आग
-गरम तरल पदार्थ या भाप
-गरम धातु, कांच या कोई अन्य वस्तु।
-बिजली का करंट
-एक्स-रे से निकलने वाले विकिरण या कैंसर के इलाज में उपयोग आने वाली विकीरण थेरेपी।
-सूर्य की किरणें एवं पराबैंगनी किरणें।
-रसायन जैसे कि एसिड, पेट्रोल या रंग को पतला करने वाले पदार्थ।
त्वचा का जलना हल्के से लेकर बहुत ज्यादा तक हो सकता है। जब बहुत ही हल्का हो तो उसे फर्स्ट डिग्री बर्न कहते हैं। इसमें मेडिकल ट्रीटमेंट की इतनी आवश्यकता नहीं पड़ती है, जब तक जलने का असर ऊतकों या टिशु पर न हो। सेकेन्ड और थर्ड डिग्री के बर्न में अस्पताल ले जाना जरुरी होता है।
फर्स्ट डिग्री
इसमें सिर्फ त्वचा की सबसे ऊपरी परत प्रभावित होती है। घाव में दर्द होता है और सूजन और लालपन आ जाता है। अगर घाव तीन इंच से बड़ा हो या ऐसा लगे की घाव त्वचा की अंदरुनी परत तक है या वह आंख, मुंह, नाक या गुप्तांक के पास हो तो डॉक्टर को जरूर दिखाएं। सामान्य घाव को भरने में उसे 6 दिन लगते हैं।
सेकेन्ड डिग्री बर्न
यह बाहरी परत एपिडर्मिस और अंदरूनी परत डर्मिस दोनों को प्रभावित करता है। इससे दर्द, लालपन, सूजन और फफोले हो जाते हैं। यदि घाव जोड़ों पर हुआ है तो उस हिस्से को हिलाने-डुलाने में तकलीफ होगी। शरीर में पानी की कमी हो सकती है।
थर्ड डिग्री बर्न
इसमें त्वचा की तीनों परतें प्रभावित हो जाती हैं। इससे त्वचा सफेद या काली हो जाती है और सुन्न हो जाती है। जले हुए स्थान के हेयर फालिकल, स्वेट ग्लैंड और तंत्रिकाओं (नर्वस) के सिरे नष्ट हो जाते हैं। तंत्रिकाओं के नष्ट होने से दर्द नहीं होता। कोई फफोला या सूजन नहीं होती। ब्लड फ्लो में बाधा उत्पन्न होता है। अत्यधिक डिहाइड्रेशन हो जाता है। लक्षण समय बीतने के साथ गंभीर होते जाते हैं। 75-90% जलने पर जीवित रहने की संभावना बहुत कम रह जाती है।
जलने पर फफोला पड़ने के अलावा हर स्तर के अलग-अलग लक्षण होते हैं-
फर्स्ट डिग्री बर्न (First degree Burn)
-यह त्वचा की ऊपरी सतह को प्रभावित करता है
-इससे त्वचा लाल हो जाती है।
-प्रभावित हिस्से में दर्द होता है।
-सूजन
-लालिमा
इसके लिए प्रारंभिक चिकित्सा का उपयोग किया जाता है। सनबर्न इसका एक बेहतरीन उदाहरण है।
सेकेन्ड डिग्री बर्न (Second degree Burn)
-यह त्वचा की ऊपरी और दूसरी सतह को भी प्रभावित करता है।
-इससे त्वचा लाल पड़ जाती है।
-प्रभावित हिस्से में सूजन और दर्द महसूस होता है।
-इस प्रकार का बर्न अक्सर गीला दिखाई पड़ता है।
-इसमें त्वचा पर छाले पड़ जाते हैं जिनमें बहुत दर्द भी हो सकता है।
-सेकेंड डिग्री के गहरे बर्न आपकी त्वचा पर निशान भी छोड़ सकते हैं।
थर्ड डिग्री बर्न (Third degree Burn)
जो बर्न त्वचा में दूसरी सतह से नीचे वाली परत तक पहुँच जाते हैं उन्हें हम थर्ड-डिग्री बर्न कहते हैं।
इसमें त्वचा कड़ी, मोम जैसी सफेद, कठोर एवं जली हुई दिखाई पड़ती है। इस तरह के बर्न आपकी तंत्रिकाओं को नुकसान पहुँचा सकते हैं जिससे त्वचा सुन्न पड़ सकती है।
फोर्थ डिग्री बर्न (Fourth degree Burn)
यह सबसे गंभीर प्रकार के बर्न होते हैं। यह आपकी हड्डियां और मांसपेशियों को प्रभावित कर सकते हैं। इसमें त्वचा काली और जली हुई दिखाई पड़ती है। इससे तंत्रिकाओं (नर्वस) को हानि पहुँचने की आशंका रहती है।
आमतौर पर जलने से बचने के लिए यह तरीके अपनाये जा सकते हैं-
-चूल्हे पर खाना बनता न छोड़ें।
-खाना बनाते समय मजबूत दस्तानों का प्रयोग करें जिससे आपके हाथ और कलाई कवर रह सकें।
-गरम तरल पदार्थों को बच्चों और पालतू जानवरों से दूर रखें।
-खाना बनाते समय कभी-भी ढीले कपड़े न पहने। ऐसे कपड़ों में आग आसानी से लग सकती है।
-जल्दी जल जाने वाले पदार्थों को भट्टी एंव हीटर से दूर रखें।
-यदि धूम्रपान करते हैं तो घर के अंदर या बिस्तर में धूम्रपान न करें।
-रसायनों, लाइटर और माचिस को बच्चों से दूर रखें।
-माचिस और लाइटर बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
-किचन में सिंथेटिक कपड़े न पहनें।
-वॉटर हीटर का तापमान 120 डिग्री या उससे कम सेट करें।
-खाना बनाकर गैस का नॉब बन्द कर दें।
-बच्चों को किचन में अकेला न छोडे़।
-गर्म खाना और तरल पदार्थ को बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
जलने पर जीवनशैली और आहार में कैसे बदलाव करने चाहिए-
-कभी लापरवाही तो कभी अनजाने में शरीर का कोई हिस्सा जल जाये तो जलने पर सबसे पहले उस पर ठंडा पानी डालिए।
-जले हुए मरीज को एक साथ पानी मत दीजिए, बल्कि ओ.आर.एस का घोल पिलाइए। क्योंकि जलने के बाद आदमी की आंत काम करना बंद कर देती है और पानी सांस नली में फंस सकता है जो कि जानलेवा हो सकता है।
-जले हुए हिस्से पर मरहम या मलाई बिलकुल ही मत लगाइए। इससे इंफेक्शन हो सकता है।
-कोशिश यह कीजिए कि जलने वाले हिस्से पर फफोले न पड़ें, क्योंकि फफोले पड़ने से संक्रमण होने का खतरा ज्यादा होता है।
-मिर्च-मसालेदार भोजन का सेवन न करें।
-अत्यधिक गरम और तले खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
जलने पर कभी भी यह गलतियां नहीं करनी चाहिए इससे स्थिति और भी गंभीर हो जाती हैं-
-गंभीर रूप से जलने पर तुरन्त डॉक्टर से संपर्क करें।
-कोई भी जला हुआ कपड़ा या दूसरी चीज उससे चिपक गई हो तो उसे न निकालें।
-गंभीर रूप से जले घाव पर कोई मल्हम, क्रीम, तेल या मक्खन न लगाएं।
-फफोला और मृत त्वचा को न छेड़ें, इससे संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
-अगर व्यक्ति गंभीर रूप से जला है तो उसे कुछ भी न खिलाएं।
-गंभीर रूप से जले हुए अंग या शरीर को पानी में न डुबोएं।
-जले हुए व्यक्ति के सिर के नीचे तकिया न रखें। अगर जलने से श्वास नली प्रभावित हुई होगी तो इससे सांस मार्ग बंद हो सकता है।
-घाव पर मक्खन या बर्फ न लगाएं। इससे कोई लाभ नहीं होगा बल्कि स्किन के टिशु नष्ट हो जाएंगे।
-अगर कपड़े जलकर चिपक चुके हैं तो उन्हें घाव से खींचकर न निकालें।
-गंभीर रूप से जली अवस्था में उस भाग पर ठंडा पानी न डालें, क्योंकि इससे शरीर का तापमान और कम हो सकता है और ब्लड प्रेशर गिरकर ब्लड फ्लो को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।
त्वचा के जलने के प्रकार के अनुसार उपचार भी अलग-अलग होता है-
फर्स्ट डिग्री बर्न में
जली हुई त्वचा को जल्दी से ठंडे पानी में डुबो लें। उसे कम से कम 15 मिनट पानी में डुबोकर रखें, ताकि चमड़ी से गर्मी निकल जाए और सूजन न हो।
संक्रमण से बचने के लिए जली हुई त्वचा पर एलोवेरा जेल या एंटीबायोटिक क्रीम लगाएं।
घाव के ऊपर ढीली पट्टी या न चिपकने वाली पट्टी बांध लें, ताकि वह हवा से बचे और दर्द कम हो। इससे संक्रमण भी नहीं फैलेगा।
सेकेंड डिग्री बर्न में
घाव गहरा है तो तुरन्त डॉक्टर को दिखाएं।
त्वचा प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ सकती है।
अंगो के मुड़ने से फिजिकल थेरेपी की जरूरत पड़ती है।
अस्पताल में भर्ती करना जरूरी होता है।
थर्ड डिग्री बर्न में
अस्पताल ले जाने की जरूरत पड़ेगी।
रोगी की शरीर में शिराओं से तरल पदार्थों की आपूर्ति की जाती है।
कृत्रिम रूप से ऑक्सीजन देने की आवश्यकता पड़ती है।
पूरी देखभाल की आवश्यकता होती है।
रोगी अवसाद या डिप्रेशन में जा सकता है।
आम तौर पर जलने पर उससे कष्ट से निजात पाने के लिए सबसे पहले घरेलू नुस्ख़ों को ही अपनाया जाता है। यहां हम पतंजली के विशेषज्ञों द्वारा पारित कुछ ऐसे घरेलू उपायों के बारे में बात करेंगे जिनके प्रयोग से अवस्था के अनुसार जलने के परेशानी से राहत मिल सकती है-
जले हुए स्थान पर आलू पीसकर लेप लगाएं, इससे जले हुए स्थान पर शीतलता का अनुभव होता है और जलन से जल्दी राहत मिलती है।
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तुलसी के पत्तों का रस जले हुए स्थान पर लगाएं, इससे जले हुए भाग पर दाग होने की संभावना कम होती है।
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तिल को पीसकर लेप बनाइये और इसे लगायें। इससे जलन और दर्द नहीं होगा। तिल लगाने से जलने वाले भाग पर पड़े दाग धब्बे भी चले जाते हैं।
पीतल की थाली में सरसों का तेल व पानी को नीम की छाल के साथ मिलाकर मरहम बनाएं और जले हुए स्थान पर लगाएं।
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जलने पर चूना लगाने से भी काफी आराम मिलता है। यदि गर्म तेल के कारण कोई अंग जल जाता है और इस पर घाव भी हो जाता तो इसके लिए पुराने चूने का इस्तेमाल करें। चूने को पीसकर इसे दही में मिलाकर घाव पर लगाएं।
नीम में मौजूद एंटी इंफ्लेमेटरी गुण के कारण आग से जले स्थान पर नीम का तेल अथवा नीम तेल में पत्तों को पीसकर लगाने से आराम मिलता है। नीम के तेल एवं पत्तियों में एंटीसेप्टिक गुण होते हैं। इसके प्रयोग से टेटनस के खतरे से बचाया जा सकता है।
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जलने पर जलन और दर्द को दूर करने के लिए टूथपेस्ट बहुत अच्छा उपचार है। जले हुए भाग पर सफेद टूथपेस्ट लगाएं और उसे सूखने दें और अगर जरुरत पड़े तो इसे दोबारा भी लगा सकते हैं।
त्वचा के जलने पर उसमें जलन होती है इस जलन को मिटाने के लिए अंडे की सफेदी बहुत ही फायदेमंद होती है। जले पर अंडे का सफेद भाग लगाइए और फिर देखिए इसके सूखते ही जलन कैसे गायब हो जाती है।
एलोवेरा का असर ठंडा होता है। ठंडा होने के कारण यह जलने के घाव पर लगाने से तुरंत राहत मिलता है। एलोवेरा के पत्ते को काट कर जले हुए हिस्से पर लगाने से जलन से तुरंत राहत मिलती है और वह हिस्सा जल्दी ठीक भी हो जाता है।
सफेद सिरका आपको दर्द, जलन, जलने के घाव जैसी समस्याओं में राहत देता है। किसी भी तरह की जलन या जलने के लगाने से आराम मिलता है। घाव के निशान को कम करने और जलने के बाद के हर तरह के संक्रमण को मिटाकर घाव को बढ़ने से रोकने में सिरका लाभकारी होता है।
टी बैग का उपयोग कर फर्स्ट डिग्री जलन को शांत किया जा सकता है। चाय में टैनिक एसिड होता है जो कि बर्न्स की गर्मी को दूर कर सकता है।
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यदि आप जलन से तुरंत राहत चाहते हैं तो 15 मिनट के लिए जले हुए भाग को दूध में डुबोकर रखें, इससे दर्द,जलन और सूजन को कम करने में मदद मिलती है।
ओट्स में नमी देने वाले गुण होते हैं जो जलन को कम करने में सहायता करते हैं। ओट्स तब ज्यादा प्रभावी साबित होते हैं जब आपके जले का निशान ठीक हो रहा होता है और आप उस भाग को काफी तीव्रता से खुजलाना चाहते हैं। आप एक कप ओट्स को नहाने के पानी में भी मिश्रित कर सकते हैं।
त्वचा का जलना एक सामान्य से गंभीर स्थिति में परिवर्तित हो सकती है। निम्नलिखित स्थिति में डॉक्टर से तुरन्त सम्पर्क करें –
-यदि जला हुआ क्षेत्र बहुत बड़ा हो।
-यदि बर्न थर्ड डिग्री का हो।
-यदि व्यक्ति ने धुँआ अन्दर ले लिया हो।
-अगर बिजली का झटका लगा हो।
-48 घंटे बाद भी दर्द कम न हुआ हो।
-अगर बहुत प्यास लगे।
-चक्कर आए।
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