वानस्पतिक नाम : Leea macrophylla Roxb. ex Hornem. (लिआ मॅक्रोफाइला) Syn-Leea integrifolia Roxb., Leea latifolia Wall. ex Kurz
कुल : Vitaceae (वाइटेसी)
अंग्रेज़ी में नाम : Leea (लिआ)
संस्कृत-गजकर्ण, हस्तिकर्ण, हस्तिकर्णपलाश, हस्तिकंद, केकिदंडा; हिन्दी-हत्कन, हस्तिकर्ण पलाश, समुद्रक, धोलसमुद्र; उड़िया-हातीकानोपोत्रो (Hatikanopotro); कन्नड़-काडूमारी (Kaadumari), द्राक्षसी (Drakshi); बंगाली-बन्चालीता (Banchalita), ढोलसमुद्र (Dholsamudra), तुलसमुद्र (Tulsamudra); नेपाली-बुलेवेत्रा (Bulvetra); मराठी-
गजकर्णी (Gajakarni), डिंडा (Dinda); मलयालम-नालूगू (Nalugu), नेल्लू (Nellu)।
अंग्रेजी-हाथीकान (Hathikana)।
परिचय
भारत के समस्त उष्णकटिबंधीय हिमालयी क्षेत्रों तथा आर्द्र पर्णपाती वनों में पाया जाने वाला कन्दयुक्त पौधा है। इसके पत्ते हाथी के कान के सदृश बड़े होते हैं, जिसके फलस्वरूप इसको हस्तिकर्ण पलास भी कहा जाता है। इसके पुष्प छोटे, श्वेत वर्ण के होते हैं। इसके फल कृष्ण वर्ण के, गोलाकार तथा चिकने होते हैं।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
हस्तिकर्ण तिक्त, उष्ण, मधुर, वातकफशामक, कुष्ठ, विसर्प, शीत ज्वर, प्लीहा विकार, गुल्म, उदर विकार, त्वक् दोष तथा आनाह शामक है।
इसका कन्द विकाशी, मधुर, संग्राही; पाण्डु, शोथ, कृमि, प्लीहा विकार, गुल्म, आनाह, उदररोग, ग्रहणी, अर्श, प्रमेह, तृष्णा, अरुचि, विष, मूर्च्छा तथा मद शामक होता है।
इसकी मूल वेदनाहर, स्तम्भक, बलकारक, रसायन, शुक्रल, पाचक, मधुमेह नाशक, कफनिसारक तथा कुष्ठघ्न होती है।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
प्रयोज्याङ्ग : कन्द तथा पत्र।
मात्रा : चिकित्सक के परामर्शानुसार।
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