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हरीतकी (Haritaki or Kadukka podi) त्रिफला के तीन फलों में एक होता है। आयुर्वेद में हरीतकी औषधि के लिए बहुत इस्तेमाल किया जाता है। हरीतकी न सिर्फ औषधि के लिए नहीं बल्कि सेहत और सौन्दर्य के लिए भी बहुत लाभकारी होता है। हरीतकी का फल,जड़ और छाल सबका उपयोग किया जाता है। चलिये हरीतकी के फायदों और गुणों ( Harad ke benefits) के बारे में विस्तार से जानते हैं।
हरीतकी को हरड़ भी कहते हैं। निघण्टुओं में सात प्रकार की हरीतकी का वर्णन मिलता है। स्वरूप के आधार पर इसकी सात जातियाँ हैं-1. विजया, 2. रोहिणी, 3. पूतना, 4. अमृता, 5. अभया, 6. जीवन्ती तथा 7. चेतकी लेकिन वर्तमान में यह तीन प्रकार की ही मिलती है। जिसको लोग अवस्था भेद से एक ही वृक्ष के फल मानते हैं। वैसे तो हरीतकी सभी जगह मिल जाता है। शायद आपको पता नहीं कि हरड़ बहुत तरह के गुणों वाला औषधीय वृक्ष होता है। हरड़ 24-30 मी तक ऊँचा, मध्यम आकार का, शाखाओं वाला पेड़ होता है। इसके पत्ते सरल, चमकदार, अण्डाकार और भाला के आकार होते हैं। इसके फल अण्डाकार अथवा गोलाकार, 1.8-3.0 सेमी व्यास या डाइमीटर के और पके हुए अवस्था में पीले से नारंगी-भूरे रंग के होते हैं। फलों के पीछले भाग पर पांच रेखाएं पाई जाती हैं।
जो फल कच्ची अवस्था में गुठली पड़ने से पहले तोड़ लिए जाते हैं, वही छोटी हरड़ के नाम से जानी जाती है। इनका रंग स्याह पीला होता है। जो फल आधे पके अवस्था में तोड़ लिए जाते हैं, उनका रंग पीला होता है। पूरे पके अवस्था में इसके फल को बड़ी हरड़ कहते हैं। प्रत्येक फल में एक बीज होता है। फरवरी-मार्च में पत्तियां झड़ जाती हैं। अप्रैल-मई में नए पल्लवों के साथ फूल लगते हैं तथा फल शीतकाल में लगते हैं। पक्व जनवरी से अप्रैल महीने में पके फल मिलते हैं। इसके बीज कठोर, पीले रंग के, बड़े आकार के, हड्डियों के समान और कोणीय आकार के होते हैं।
हरीतकी मधुर और कड़वा होने से पित्त; कड़वा व कषाय होने से कफ तथा अम्ल, मधुर होने से वात दोष को नियंत्रित करने में मदद करती है। इस प्रकार देखा जाय तो यह तीनों दोषो को कम करने में सहायता करती है। यह रूखी, गर्म, भूख बढ़ाने वाली, बुद्धि को बढ़ाने वाली, नेत्रों के लिए लाभकारी, आयु बढ़ाने वाली, शरीर को बल देने वाली तथा वात दोष को हरने वाली है।
यह कफ, मधुमेह, बवासीर (अर्श), कुष्ठ, सूजन, पेट का रोग, कृमिरोग, स्वरभंग, ग्रहणी(Irritable bowel syndrome), विबंध (कब्ज़), आध्मान (Flatulance), व्रण(अल्सर या घाव), थकान, हिचकी, गले और हृदय के रोग, कामला (पीलिया), शूल (दर्द), प्लीहा व यकृत् के रोग, पथरी, मूत्रकृच्छ्र और मूत्रघातादि (मूत्र संबंधी) रोगों को दूर करने में मदद करती है।
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हरड़ का फल अल्सर के लिए हितकारी और प्रकृति से गर्म होती है। हरीतकी का फल सूजन, कुष्ठ, अम्ल या एसिडिटी तथा आंखों के लिए लाभकारी होती है। हरड़ में पांचों रस हैं लेकिन तब भी सेहत के लिए गुणकारी होती है। इसलिए एक ही हरीतकी को विभिन्न तरह के रोगों के लिए प्रयोग किया जाता है।
Haritaki in-
आयुर्वेद में हरड़ या हरीतकी का बहुत महत्व है। छोटे से हरड़ में सेहत के बहुत फायदे बंद होते हैं। चलिये जानते हैं कि हरीतकी या हरड़ कितने रोगों में फायदेमंद है।
हरड़ का सेवन करने का तरीका हर रोगों के लिए अलग-अलग होता है। हरड़ को उबालकर खाने से दस्त होना बंद होता है तो भूनकर खाने से त्रिदोषहर, भोजन के साथ हरड़ खाने से बुद्धि बढ़ती है, भोजन के बाद सेवन करने से खाने से जो पेट संबंधी समस्याएं होती है उससे राहत मिलती है।
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श्रेष्ठ हरीतकी के लक्षण-जो हरीतकी नई, मधुर, पुष्ट, गोल, भारी, जल में डूबने वाली लाल रंग की, तोड़ने में गुड़ के समान टूटने वाली, थोड़ी-सी कड़वी, अधिक रस वाली, मोटी छाल वाली, स्वयं पक कर गिरने वाली तथा लगभग 22-25 ग्राम (2 कर्ष) वजन की होती है, वह हरीतकी ही श्रेष्ठ मानी जाती है।
अप्रशस्त हरीतकी-जो हरीतकी कीड़ों के द्वारा खाई हुई, आग से जली हुई, पानी या कीचड़ में पड़ी हुई, ऊसर भूमि या बंजर भूमि में पैदा होती है। यह हरीतकी फटी हुई होती है। अप्रशस्त हरीतकी का सेवन या इस्तेमाल नहीं करनी चाहिए।
आजकल के तनावभरी जिंदगी में सिरदर्द आम बीमारी हो गई है। हरड़ की गुठली को पानी के साथ पीस कर सिर में लेप लगाने से आधा सिर दर्द से छुटकारा दिलाने में फायदेमंद होता है। [Go to: Benefits of Harad]
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शायद आपको पता नहीं कि रूसी होने के कारण भी बाल झड़ते हैं। हरड़ को इस तरह से प्रयोग करने पर रूसी आना रोक सकते हैं। आम बीज चूर्ण और छोटी हरीतकी चूर्ण को समान मात्रा में लेकर दूध में पीसकर सिर पर लगाने से रूसी कम हो जाती है। [Go to: Benefits of Harad]
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अक्सर दिन भर कंप्यूटर पर काम करने से आँखों में जलन और दर्द जैसी समस्याएं होने लगती है। रोज हरड़ का इस तरह से इस्तेमाल करने पर आँखों को आराम मिलता है। हरड़ को रातभर पानी में भिगोकर सुबह पानी को छानकर आँखें धोने से आंखों को शीतलता मिलती है तथा आँख संबंधी बीमारियों से राहत मिलती है। [Go to: Benefits of Harad]
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उम्र बढ़ने के साथ मोतियाबिंद की समस्या से सब परेशान होते हैं। हरड़ का इस्तेमाल इस तरह से करने पर मोतियाबिंद के परेशानी से आराम मिलता है।
मौसम बदला की नहीं जुकाम से सबको परेशानी होने लगती है। हरीतकी जुकाम में बहुत लाभकारी होती है। प्रतिश्याय या जुकाम में हरीतकी का प्रयोग करने से सिरदर्द की परेशानी से आराम मिलता है। [Go to: Benefits of Harad]
मुँह और गले के रोगों में हरीतकी बहुत ही फायदेमंद होती है। हरीतकी का काढ़ा या चूर्ण मुँह के बीमारी में आराम मिलता है।
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अगर लंबे समय से कफ से परेशान हैं तो हरीतकी का इस तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं-
अगर खाना खाने के बाद हजम नहीं हो रहा है या एसिडिटी आदि की समस्या हो रही है तो हरीतकी का सेवन इस तरह से करने पर लाभ मिलती है। 3-6 ग्राम हरीतकी चूर्ण में बराबर मिश्री मिलाकर सुबह-शाम भोजन के बाद सेवन करने से पाचन-शक्ति बढ़ती है। [Go to: Benefits of Harad]
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अगर अनियमित खान-पान के कारण उल्टी जैसा महसूस हो रहा है तो हरीतकी का ऐसे इस्तेमाल कर सकते हैं। 2-4 ग्राम हरड़ के चूर्ण को मधु में मिलाकर सेवन करने से दोष नष्ट होते हैं और उल्टी बंद होती है। [Go to: Benefits of Harad]
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कभी-कभी लंबे बीमारी के कारण खाने की इच्छा कम हो जाती है। इस अवस्था में हरीतकी का सेवन करने से लाभ मिलता है।
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जिस रोगी को अतिसार हो अथवा थोड़ा-थोड़ा, रुक-रुक कर दर्द के साथ मल निकलता हो उसे बड़ी हरड़ तथा पिप्पली के 2-5 ग्राम चूर्ण को सुहाते (गुनगुने) गर्म जल के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है। [Go to: Benefits of Harad]
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अगर लंबे समय से कब्ज से परेशान हैं तो हरीतकी का सेवन इस तरह से करने पर राहत मिलती है।
–हरड़, सनाय और गुलाब के गुलकन्द की गोलियां बनाकर खाने से कब्ज की परेशानी कम होती है।
-हरड़ और साढे तीन ग्राम दालचीनी या लौंग को 100 मिली जल में 10 मिनट तक उबालकर, छानकर सुबह पिलाने से विरेचन (पेट साफ) हो जाता है। [Go to: Benefits of Harad]
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आजकल के अनियमित जीवनशैली के कारण बवासीर की समस्या होने लगी है। बवासीर के दर्द से राहत पाने के लिए हरीतकी (Kadukka podi) का काढ़ा बनाकर पाइल्स के मस्सों को धोने से लाभ होता है। [Go to: Benefits of Harad]
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आजकल के भागदौड़ भरी जिंदगी में सबसे ज्यादा खान-पान पर ही असर पड़ता है। पीलिया में हरीतकी उपचारस्वरुप काम करती है।लौह भस्म, हरड़ तथा हल्दी इनको समान मात्रा में मिलाकर 500 मिग्रा से 1 ग्राम मात्रा में लेकर घी एवं मधु से अथवा केवल 1 ग्राम हरड़ को गुड़ और मधु के साथ मिलाकर दिन में दो से तीन बार सेवन करने से कामला में लाभ होता है। [Go to: Benefits of Harad]
मूत्र संबंधी बहुत तरह की समस्याएं होती है जैसी देर से पेशाब आना या रूक-रूक कर आना, कम मात्रा में पेशाब होना, पेशाब करते वक्त जलन या दर्द होना आदि। इन सब समस्याओं में हरीतकी बहुत काम आती है। हरीतकी, गोखरू, धान्यक, यवासा तथा पाषाण-भेद को समान मात्रा में लेकर 500 मिली जल में उबालें, 250 मिली रहने पर उतार लें। अब इस काढ़े में मधु मिलाकर सुबह, दोपहर तथा शाम 10-30 मिली मात्रा में सेवन करने से मूत्र त्याग में कठिनाई, मूत्र मार्ग की जलन आदि रोगों में लाभ होता है। [Go to: Benefits of Harad]
आजकल के तनाव भरी जिंदगी के सौगात में डायबिटीज मिल जाती है। डायबिटीज को नियंत्रित करने के लिए 2-5 ग्राम हरीतकी चूर्ण (Kadukka podi) को 1 चम्मच मधु के साथ सुबह-शाम सेवन करने से डायबिटीज में लाभ होता है। [Go to: Benefits of Harad]
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हाइड्रोसील की परेशानी में हरीतकी बहुत गुणकारी होती है। 5 ग्राम हरड़ तथा 1 ग्राम बनाएं को 50 मिली एरंड तेल और 50 मिली गोमूत्र में पकायें।जब सिर्फ तेल शेष रह जाय तो छानकर, गुनगुने गर्म जल के साथ सुबह शाम थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेने से हाइड्रोसील कम होने में मदद मिलती है। [Go to: Benefits of Harad]
टेस्टीस में सूजन होने पर त्रिफला के काढ़े का सेवन बहुत ही गुणकारी होता है। 10-20 मिली त्रिफला के काढ़े में 10 मिली गोमूत्र डालकर पीने से वात कफ से के कारण टेस्टीस में जो सूजन होता है उससे राहत मिलती है। [Go to: Benefits of Harad]
हाथीपाँव के परेशानी से राहत पाने के लिए हरड़ का इस्तेमाल ऐसे करना चाहिए। 10 ग्राम हरड़ को 50 मिली एरंड के तेल में पकाकर 6 दिन पीने से हाथी पाँव रोग में लाभ होता है। [Go to: Benefits of Harad]
अगर घाव सूखने का नाम ही नहीं ले रहा है तो हरीतकी का इस्तेमाल बहुत फायदेमंद होता है। हरीतकी के काढ़े से घाव को धोने से घाव जल्दी भरता है। [Go to: Benefits of Harad]
अल्सर को घाव को सूखाने के लिए हरीतकी को इन चीजों के साथ एक साथ मिलाकर लेप बना लें और इस्तेमाल करें। हरड़ की 1-2 ग्राम भस्म को 5-10 ग्राम मक्खन में मिलाकर व्रण (घाव) पर लेप करने से शीघ्र घाव सूखा जाता है। [Go to: Benefits of Harad]
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कुष्ठ रोग के परेशानी को कम करने के लिए हरीतकी का इस्तेमाल ऐसे करना चाहिए।
-20-50 मिली गोमूत्र को 3-6 ग्राम हरड़ चूर्ण के साथ सुबह शाम सेवन करने से फायदा मिलता है।
-हरड़, गुड़, तिल तैल, मिर्च, सोंठ तथा पीपल को समान मात्रा में पीसकर 2-4 ग्राम की मात्रा में लेकर एक महीने तक सुबह शाम सेवन करने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है। [Go to: Benefits of Harad]
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अगर किसी बीमारी के कारण या कमजोरी के वजह से बेहोशी महसूस हो रही है तो हरीतकी का ऐसे सेवन करें। हरड़ के काढ़ा से पके हुए घी का सेवन करने से मद और बेहोशी मिटती है। [Go to: Benefits of Harad]
अगर मौसम के बदलने के वजह से बार-बार बुखार आता है तो हरीतकी का प्रयोग उपचारस्वरुप ऐसे कर सकते हैं-
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हरीतकी का गुण रक्तपित्त से राहत दिलाने में बहुत लाभप्रद साबित होता है।
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अगर किसी बीमारी के लक्षण स्वरुप हाथ और पैरों में सूजन आ गई है तो हरीतकी का सेवन निम्नलिखित प्रकार से करने पर फायदा मिलता है-
हरीतकी का फल, पत्ता तथा पञ्चाङ्ग का प्रयोग औषधि के रुप में ज्यादा किया जाता है।
बीमारी के लिए हरीतकी के सेवन और इस्तेमाल का तरीका पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए हरीतकी का उपयोग कर रहे हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।
चिकित्सक के परामर्शानुसार-
-10-30 मिली काढ़ा और
-2-6 ग्राम चूर्ण ले सकते हैं।
हरीतकी नमक के साथ सेवन करने से कफ रोग को, शक्कर के साथ पित्त को, घी के साथ वात-विकारों को और गुड़ के साथ सेवन करने से सब रोगों को दूर करती है।
जो हरीतकी का सेवन करना चाहते हैं, उन्हें वर्षा-ऋतु में नमक से, शरद् में शक्कर से, हेमन्त में सोंठ से, शिशिर में पिप्पली के साथ, वसन्त-ऋतु में मधु के साथ और ग्रीष्म ऋतु में गुड़ के साथ हरड़ का सेवन करना चाहिए।
हरीतकी का सेवन निम्न अवस्था में नहीं करनी चाहिए-
हरड़ का वृक्ष पर्वतीय प्रदेशों और जंगलों में 1300 मी की ऊँचाई तक पाया जाता है।
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