वानस्पतिक नाम : Haldina cordifolia (Roxb.) Ridsdale (हल्डिनिया कॉर्डिफोलिया) Syn-Adina cordifolia (Roxb.) Benth. & Hook. f. ex B.D. Jacks
कुल : Rubiaceae (रूबिएसी)
अंग्रेज़ी में नाम : Yellow teak (येलो टीक)
संस्कृत-हरिद्रु, कदम्बक, हारिद्रक, पीतवर्ण, श्रीमान्, गौरद्रुम; हिन्दी-हल्दु, कादमी, लाडिवा; उड़िया-होलोन्डा (Holonda), केलीकोदोम्बो (Kelikodombo), कुर्रूम (Kurrum); असमिया-केलीकदम (Kelikadam), रोग्हू (Roghu);
कोंकणी-एडू (Edu); कन्नड़-एहनॉ (Ahnau), एहनौ (Ahenoo), एनीगल्लु (Anigallu), अरसीनटिगे (Arasintege), येटेगा (Yettega); गुजराती-अल्दावन (Aldavan), हालाडारावो (Haladaravo); तमिल-बन्दरू (Bandaru), मंजकदम्बू (Manjkadambu), रूद्रागनपु (Rudraganapu); तेलुगु-बंदरू (Bandaru), पचागनापा (Pachaganapa), पसुपु (Pasupu), कदम्बु (Kadambu); बंगाली-दको (Dako), बका (Bangka), केलीकदम (Kelikadam); पंजाबी-हल्दू (Haldu) मराठी-हल्द्रव्र (Haldarava), होनान्गी (Honangi), कलम (Kalam); मलयालम-बराकुरम (Barakuram), कटम्पा (Katampa), मन्जाकदम्ब (Manjakadamba)।
अंग्रेजी-सैफरॅन टीक (Saffron teak), हलदू (Haldu)।
परिचय
यह उत्तरी भारत के उप-हिमालयी पहाड़ी क्षेत्रों मे उत्तराखण्ड से पश्चिम बंगाल एवं असम तक 1500 मी की ऊँचाई पर प्राप्त होता है। उत्तराखण्ड के हल्द्वानी शहर का नाम हल्दु वृक्ष के आधार पर ही रखा गया है। यहाँ पर हल्दु (हरिद्रु) के वृक्ष बहुतायत से पाए जाते है। इसका विशाल वृक्ष लगभग 30 मी तक ऊँचा होता है। इसके पुष्प कदम्ब के पुष्प के जैसे भूरे-पीत वर्ण के होते हैं। इसकी लकड़ी का रंग हल्दी के जैसे पीला होता है। इसलिए इसे हल्दू कहते हैं।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
हल्दु कषाय, कटु, उष्ण, लघु, रूक्ष, कफपित्तशामक, वर्णकारक, व्रणशोधक, व्रणरोपक, बलवर्धक तथा कान्तिजनक व त्वक् दोष शामक है।
हल्दु की काण्डत्वक् पूयरोधी, ज्वरघ्न एवं पित्तरोधी होती है।
इसकी मूल प्रवाहिकारोधी एवं स्तम्भक होती है।
यह अग्निमांद्य, अजीर्ण, वमन, तृष्णा, ग्रहणी मूत्रदोष, ज्वर तथा कृमि रोग में हितकर है।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
प्रयोज्याङ्ग : छाल तथा मूल।
मात्रा : क्वाथ 10-30 मिली। चिकित्सक के परामर्शानुसार।
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