रसार्द्धं गन्धकं शुं शुण्ठीचूर्णं च तत्समम् ।
लवङ्गं मरिचं चापि प्रत्येकं तु पलं भवेत् ।।
सैन्धवं त्रिपलं ग्राह्यं त्रिपलं च सुवर्चलम् ।
चणकाम्लं पलद्वद्वं क्षारं मूलकजं तथा ।।
मर्दयेन्निम्बुकद्रावैर्यामान् सप्त खरांशुभि ।
बदरप्रमाणमात्रा सर्वाजीर्णप्रणाशिनी ।।
चणकस्याम्लकाभावे चुं देयं मनीषिभि ।।
भै.र.10/242-244
क्र.सं. घटक द्रव्य प्रयोज्यांग अनुपात
मात्रा– 2 ग्राम
अनुपान– नीबू शर्बत, कोष्ण जल
गुण और उपयोग– यह वटी दीपन–पाचन तथा मुँह का फीकापन दूर कर जायका ठीक करती है। अग्निमांद्य को दूर कर अजीर्ण को ठीक करती है। भोजन के बाद यह वटी लेने से पाचन अच्छी प्रकार से होता है। यह वटी पेट दर्द, पेट की गैस, कब्ज, आँव, भोजन के प्रति अरुचि तथा अम्लपित्त में विशेष लाभ करती है। इसके सेवन से भूख अच्छी लगती है और भोजन अच्छी प्रकार पचता है। इसके नियमित सेवन से दूषित जल का भी शरीर पर प्रभाव नहीं पड़ता। अति लाभकारी यह वटी राजवटी के नाम से भी प्रचलित है।
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