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अरणी का नाम तो सुना ही होगा आपने। यह देखने में छोटा होने पर भी इसके औषधीय गुण अनगिनत हैं। अरणी दो प्रकार की होती है, छोटी और बड़ी। छोटी अरणी के औषधीय गुण बहुत सारे बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं। छोटी अरणी की सब्जी और चटनी भी बनाई जाती है। छोटी अरणी के औषधीय प्रयोग, फायदे, उपयोग के बारे में विस्तार से जानने के लिए आगे बढ़ते हैं।
आयुर्वेद में अरणी का महत्व इसके औषधीय गुणों के कारण है। जैसा कि पहले की कहा गया है कि अरणी बड़ी और छोटी दो प्रकार के होती हैं। छोटी तथा बड़ी दोनों प्रकार की अरणी वीर्य और रस में प्राय: समान गुण वाले होते हैं। छोटी अरणी के पत्ते सुगंधित होते हैं इसलिए खाने में उपयोग करने के साथ-साथ औषध बनाने में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
अरणी का वानास्पतिक नाम Clerodendrum phlomidis L. f. (क्लीरोडेनड्रम् फ्लोमाइडिस)Syn-Volkameria multiflora Burm.f है। इसका कुल Verbenaceae (वर्बीनेसी) होता है और इसको अंग्रेजी में Wind killer (विन्ड किलर)कहते हैं। चलिये अब जानते हैं कि अरणी और किन-किन नामों से जाना जाती है।
Sanskrit-क्षुद्राग्निमंथ, लघुंथ, अरणिका, अग्निमंथिनी;
Hindi-टेकार, उरनी, अरणी लघु, तर्कारी, छोटी अरणी;
Odia-होंतारी (Hontari), वाताघ्नि (Vataghni);
Urdu-अरनी (Arni);
Kannada-तग्गि (Taggi), तग्गिगिडा (Taggigida);
Gujrati-अरणी (Arani), उरनी (Urani);
Tamil-तालुडालाइ (Taludalai), थल ञ्जी (Thalanji), तक्कारी (Takkari);
Telugu-तलुकि (Taluki), तक्कोलामु (Takkolamu);
Bengali-अरनी (Arani), गणियारी (Ganiyari);
Marathi-टंकाली (Tankali), ऐरनमूल (Airanmula);
Malayalam-तिरूतालि (Tirutali)।
छोटी अरणी के रस में मधुर,कड़वा, तिक्त होता है और विपाक में कड़वा होता है। वीर्य में गर्म, लघु, दीपन तथा वात-कफ को कम करने वाली होती है। इसका प्रयोग सूजन, पाण्डु या पीलिया, अग्निमांद्य या बदहजमी, विबन्ध या कब्ज, वज़न बढ़ने, सिरदर्द, गुल्म या एसिडिटी, आभ्यन्तर-विद्रधि (पेट के भीतर का घाव) तथा आध्मान (Flatulance) की चिकित्सा में किया जाता है। छोटी अरणी का शाक-सामान्यत गर्म, मधुर, तिक्त रसयुक्त तथा वात का कम करने वाला होता है।
अरणी देखने में छोटा होता है लेकिन आयुर्वेद में इसके पौष्टिकता और औषधीय गुणों के कारण उपचार के लिए इस्तेमाल किया जाता है। चलिये इसके बारे में आगे जानते हैं-
अगर कान में दर्द से परेशान रहते हैं तो बेल, एरण्ड, तर्कारी (अरणी लघु), बांस के बीज आदि द्रव्यों को समान मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। चूर्ण को 20 ग्राम की मात्रा में लेकर, 300 मिली आरनाल (काञ्जी) में पकाकर नाड़ीस्वेद करने से वातकफ के कारण होने वाले कान दर्द से राहत मिलती है।
-अरणी, नीम तथा धतूरे के पत्तों का रस निकालकर बराबर मात्रा में तिल या सरसों के तेल में पकाकर तेल तैयार होने पर छानकर रखें। इसे 2-4 बूंद कान में डालने से कर्ण पीड़ा, कर्णपूय व कर्णशूल में अत्यन्त लाभ होता है। पूर्ण लाभ होने तक नियमित इसका प्रयोग करें। केवल अरणी के पत्तों को पीसकर रस निकाल लें। इस रस को गुनगुना करके 2-4 बूंद कानों में डालने से भी कान दर्द आदि समस्याओं से राहत मिलती है।
चोरपुष्पी (चोरक), छोटी अरणी की छाल, बालवच, जीरा तथा कलौंजी को कूटकर, चूर्ण बनाकर छानकर रख लें। पोटली में बांधकर सूंघने से प्रतिश्याय को दूर करने में मदद करता है।
छोटी अरणी के पत्ते को पीसकर रस निकालकर 5-10 मिली मात्रा में सुबह-शाम पीने से सांस संबंधी कष्ट, लीवर में सूजन, पाण्डु या पीलिया रोग, प्रमेह या डायबिटीज तथा फिरङ्ग रोग (सिफिलिस रोग) में लाभ होता है।
छोटी अरणी के 5-10 मिली पत्ते के रस अथवा 10 मिली जड़ से बने काढ़े को पिलाने से अरुचि, अजीर्ण, आध्मान या पेट फूलना, आमाशय के दर्द, अतिसार या दस्त तथा पेट के कृमियों के इलाज में मदद करता है। इस काढ़े में 30-40 मिली काढ़े में थोड़ा सरसों का चूर्ण डालकर पीने से वातज गुल्म का इलाज करने में मदद मिलती है।
10 ग्राम जड़ को 200 मिली पानी में पकाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को 10-20 मिली की मात्रा में सुबह शाम पीने से अर्श, पूयमेह या सूजाक (गोनोरिया) तथा शोथ या सूजन को कम करने में मदद करता है।
यौन संक्रमण के कारण उपदंश या सिफिलिस होता है। अरणी के पत्तों का काढ़ा यारस बनाकर पीने से उपदंश तथा मेदोरोग में लाभ होता है।
छोटी अरणी के 5-10 मिली पत्ते के रस में थोड़ा पानी, शहद अथवा मिश्री मिलाकर पीने से प्रदर ल्यूकोरिया, गर्भाशयगत सूजन एवं अन्य गर्भाशयगत बीमारियों में भी लाभ होता है।
त्रिफला, भांग, पठानी लोध्र तथा कच्चे अनार फल की छाल को समान मात्रा में लेकर चूर्ण कर लें। अब इस चूर्ण में तर्कारी (अग्निमन्थ), अरणी के पत्तों के रस की भावना को देकर 500 मिग्रा की गोली बना लें। इस गोली को सुबह योनि में रखने से योनि का संकोचन होकर योनिशैथिल्यता (शिथिलता) दूर होता है।
छोटी अरणी के पञ्चाङ्ग का चूर्ण (1-2 ग्राम),रस (5-10 मिली) या काढ़े (20-40 मिली) का सेवन करने से वातरक्त या गठिया में लाभ होता है।
लघु अरणी, सहिजन, तुलसी, सोंठ, कुटज तथा नीम के पत्ते, जड़ एवं फल को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बना कर, काढ़े से अंगों का मसाज करने से ऊरुस्तम्भ या लकवा में लाभ होता है।
कपित्थ, बेल, तर्कारी (अरणी लघु), वंशलोचन, एरण्ड तथा करञ्ज को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनायें। इस काढ़े से बच्चों का मसाज करने से बाल-रोगों में फायदा मिलता है।
छोटी अरणी के जड़ का काढ़ा बनाकर उसको लगाने से रोमान्तिका या रूबेला के लक्षणों से राहत मिलने में आसानी होती है।
आयुर्वेद के अनुसार अरणी का औषधीय गुण इसके इन भागों को प्रयोग करने पर सबसे ज्यादा मिलता है-
-जड़
– पत्ता और
-फूल।
यदि आप किसी ख़ास बीमारी के घरेलू इलाज के लिए अरणी का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही इसका उपयोग करें। चिकित्सक के सलाह के अनुसार 5-10 मिली रस, 30-50 मिली काढ़ा और 2-4 ग्राम पञ्चाङ्ग चूर्ण का सेवन कर सकते हैं।
छोटी अरणी समस्त भारत में विशेषतया पश्चिमी उत्तर हिमालय की तराई, रत्नागिरी और उत्तरप्रदेश तथा उत्तराखण्ड के कई स्थानों पर बहुतायत से पायी जाती है।
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