चिरौंजी का उपयोग आमतौर पर सूखे मेवों की तरह किया जाता है. कई लोग मिठाइयाँ बनाते समय या कोई भी मीठी डिश बनाते समय चिरौंजी का उपयोग करते हैं. छोटे से आकार वाली चिरौंजी कई तरह के पोषक तत्वों से भरपूर होती है. आयुर्वेद में भी चिरौंजी के फायदों का वर्णन करते हुए लिखा गया है कि यह पुष्टिकारक है. आयुर्वेदिक विशेषज्ञों और डॉक्टरों का भी मानना है कि चिरौंजी शरीर की ताकत और यौन क्षमता बढ़ाने में यह बहुत उपयोगी है. इस लेख में हम आपको चिरौंजी के फायदे, नुकसान और औषधीय गुणों के बारे में बता रहे हैं.
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चिरौंजी का पेड़ लगभग 12-18 मी ऊँचा और साल भर हरा रहने वाला पौधा है. इसकी छाल बहुत ही मोटी और खुरदुरी होती है. इसकी पत्तियां 15-20 सेमी लम्बाई की गोल आकर में जालीदार सिरे युक्त होती हैं. इसके फल 8-12 मिमी के अंडाकार और गोलाकार होते हैं. इन फलों को तोड़कर अंदर से जो गुठली निकाली जाती है उसे ही चिरौंजी कहते हैं.
चिरौंजी का वानस्पतिक नाम Buchanania cochinchinensis (Lour.) M.R. Almedia (बुकैनानिया कोचीनचाइनेन्सिस) Syn-Buchanania latifolia Roxb. Buchanania lanzan Spreng है. यह Anacardiaceae (ऐनाकार्डिऐसी) कुल का पौधा है. आइये जानते हैं कि अलग अलग भाषाओं में इसे किन नामों से पुकारा जाता है.
स्वादिष्ट होने के साथ-साथ चिरौंजी सेहत के काफी फायदेमंद भी है. सर्दी-खांसी दूर करने के अलावा यह गठिया और यौन क्षमता से जुड़े रोगों के इलाज में उपयोगी है. आइये चिरौंजी के फायदों के बारे में विस्तार से जानते हैं.
सिरदर्द से परेशान होने पर पेनकिलर खाने की बजाय घरेलू उपायों को अपनाना सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद है. आयुर्वेद के अनुसार, चिरौंजी की गिरी के साथ, बादाम गिरी, खजूर, ककड़ी बीज और तिल को मिलाकर पीस लें. इस मिश्रण को दूध या पानी के साथ 5 ग्राम की मात्रा में लें. इससे सिरदर्द ठीक हो जाता है.
अगर आप सर्दी से परेशान हैं तो नियमित तौर पर सीमित मात्रा में चिरौंजी खाना शुरू कर दें. इसके सेवन से सर्दी दूर होती है.
इसी तरह खांसी से आराम पाने के लिए चिरौंजी की 5-10 ग्राम गिरी को घी में भूनकर पीस लें. इसके बाद इसे 200 मिली दूध में मिलाकर उबाल लें। उबालने के बाद इसमें 500 मिग्रा इलायची पाउडर और चीनी मिलाकर पीने से सर्दी-जुकाम और खांसी से आराम मिलता है।
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विशेषज्ञों का मानना है कि जिन लोगों की यौन क्षमता कमजोर है उसके लिए चिरौंजी काफी उपयोगी है. 5-10 ग्राम चिरौंजी के बीजों को पीसकर उसमें मिश्री मिलाकर दूध के साथ खाएं. इसके नियमित सेवन से वीर्य को पोषण मिलता है और यौन क्षमता बढ़ती है।
तिल, चिरौंजी, मुलेठी, कमलनाल और बेंत-मूल इन सब को आवश्यकतानुसार लेकर बकरी के दूध में पीसकर लेप बना लें. अब इस लेप को जोड़ों पर लगाएं, इससे दर्द और सूजन से जल्दी आराम मिलता है.
त्वचा में कहीं पर घाव हो जाए तो चिरौंजी के उपयोग से आप उसे ठीक कर सकते हैं. इसके लिए मंजीठ, हल्दी, भार्गी, हरीतकी, नीला थोथा, तालीसपत्र, प्रियाल आदि को पीसकर तेल में पका लें. तेल में पकाने के बाद इसे छानकर घाव पर लगाएं. इससे घाव जल्दी ठीक होता है.
खुजली दूर करने के चिरौंजी को निम्न तरीकों से उपयोग कर सकते हैं.
चिरौंजी की गिरी को गुलाब जल में पीसकर उसमें सुहागा मिलाकर खुजली वाली जगह पर लगाएं. इससे खुजली जल्दी दूर होती है.
प्रियाल गिरी और काले तिल को 10-10 ग्राम लेकर 250 मिली गाय के दूध में पीकर छान लें. अब इसमें मिश्री मिलाकर सुबह शाम पीने से साथ ही चिरौंजी और तिल को को दूध में पीसकर प्रभावित हिस्से में लगाने से खुजली और जलन से राहत मिलती है.
अगर आप बार बार मुंहासे निकलने से परेशान हैं और कोई उपाय नहीं सूझ रहा है तो एक बार चिरौंजी का उपयोग करके देखें. विशेषज्ञों का मानना है कि चिरौंजी को गुलाब जल में पीसकर चेहरे पर लगाने से मुंहासे जल्दी ठीक होते हैं.
गर्मियों के मौसम में कई लोग नाक, कान से खून निकलने की समस्या से परेशान रहते हैं. अगर आप भी उनमें से एक हैं तो चिरौंजी से पकाए दूध का सेवन करें. इसके सेवन से नाक कान से खून बहने (रक्तपित्त) की समस्या ठीक हो जाती है.
अगर आप शारीरिक रुप से कमजोर हैं या थोड़ी सी मेहनत करने के बाद थक जाते हैं तो चिरौंजी का सेवन आपके लिए फायदेमंद है. ताज़ी चिरौंजी खाने से या दूध में चिरौंजी की खीर बनाकर खाने से शरीर को ताकत और पोषण मिलता है.
स्तनपान छुड़ा देने पर शिशु को चिरौंजी की मींगी, मुलेठी, मधु, धान का लावा तथा मिश्री से बनाए गए लड्डू (मोदक) खिलाने से शरीर को पर्याप्त पोषण मिलता है।
आयुर्वेद के अनुसार चिरौंजी के निम्न भाग सेहत के लिए उपयोगी हैं.
आमतौर पर चिरौंजी की छाल का काढ़ा का सेवन 50-100 मिली मात्रा में करना चाहिए. अगर आप किसी गंभीर बीमारी के घरेलू इलाज के रूप में चिरौंजी का उपयोग करना चाहते हैं तो पहले डॉक्टर से सलाह लें.
यह भारत के शुष्क राज्यों में 900 मी की ऊँचाई पर एवं मध्य भारत से पश्चिमी प्रायद्वीप एवं उत्तराखण्ड में 450 मी की ऊँचाई तक पाया जाता है।
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