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Bhurjpatra: बेहद गुणकारी है भूर्जपत्र- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

वानस्पतिक नाम : Betula utilis D.Don (बेटूला यूटिलिस) Syn-Betula bhojpattra Wall.

कुल : Betulaceae (बेटूलेसी)

अंग्रेज़ी नाम : Himalayan silver birch (हिमालयन सिल्वर बिर्च)

संस्कृत-भूर्जपत्र, भूर्ज, चमि, मृदुत्वच, बहुवल्कल, सुचर्मा, छदपत्र, वल्कद्रुम, भूर्जपत्रक, चित्रत्वक्, बिन्दुपत्र, रक्षापत्र, विचित्रक, भूतघ्न, मृदुपत्र, मृदुचर्मी, शैलेन्द्रस्थ, चर्मद्रुम, छत्रपत्र, शिबि, स्थिरच्छद, विद्यादल, पत्रपुष्पक, बहुपट, बहुत्वक्, मृदुच्छद; हिन्दी-भोजपत्र, भूजपत्र, भोजपत्तर; उत्तराखण्ड-भोजपत्तर (Bhojpattar), भुज (Bhuj); उर्दू-भूर्जपत्र (Bhurjapatra); कन्नड़-बुर्जामारा (Burjamara), भूयापत्र (Bhuyapathra); गुजराती-भोजपत्र (Bhojpatra); तमिल-भुर्जामाराम (Bhurjamaram); तैलुगु-भोजपत्रमु (Bhojpatramu), भुजपत्री (Bhujpatri); बंगाली-भूजिंपत्र (Bhunjipatra); नेपाली-भोजपत्र (Bhojpatra), भूजपात (Bhujpat); पंजाबी-भूज (Bhuj), बुर्ज (Burj); मराठी-भूर्जपत्र (Bhurjpatra); मलयालम-भुजापत्रम (Bhujapatram)।

अंग्रेजी-इण्डियन पेपर बर्च (Indian paper birch), जेकमन ट्री (Jacquemen tree)।

परिचय

भारत में यह शीतोष्णकटिबंधीय हिमालय में कश्मीर में 2100-3600 मी तथा सिक्किम में 2700-4200 मी की ऊँचाई तक पाया जाता है। यह 12-15 मी तक ऊँचा, छोटे से मध्यमाकार का, पर्णपाती वृक्ष होता है। इसकी काण्डत्वक् श्वेत वर्ण की तथा अन्त त्वक् गुलाबी वर्ण की, कागज के समान पतली होती है, जो काण्ड से आसानी से पृथक् हो जाती है। इसके पत्र नवीन अवस्था में पीत वर्णी निर्यासी शल्कों से युक्त तथा चिपचिपे होते हैं। इसके पुष्प मंजरियों में लगे हुए होते हैं। इस वृक्ष की छाल को भोजपत्र कहते हैं। यह कागज के समान अथवा केले के सूखे पत्तें के समान होती है। प्राचीन काल में जब कागज उपलब्ध नहीं होता था, तब कागज के स्थान पर लिखने के लिए इसका प्रयोग किया जाता था। इस पर लिखी पाण्डुलिपियां वर्षों तक सुरक्षित रहती हैं।

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

भोजपत्र कटु, कषाय, उष्ण, लघु, त्रिदोषशामक, बलकारक, पथ्य, कर्णरोग, रक्तपित्त, मेदरोग, विष, शूल, रक्तविकार, कुष्ठ, मेह, पाण्डु, श्वित्र, कृमि तथा व्रण नाशक होता है।

इसकी काण्डत्वक् सुंधित, स्तम्भक, जीवाणुरोधी, विबन्धकारक, कफनिसारक, पूयरोधी, व्रणरोपक तथा रक्तस्तम्भक होती है।

यह अस्थिभग्न संधानकारक; अपस्मार, जीवाणु संक्रमण, अतिसार, प्रवाहिका, कुष्ठ, त्वक्-विकार तथा सामान्य दौर्बल्यशामक होता है।

काण्ड त्वक् फाण्ट वातानुलोमक गुण प्रदर्शित करता है।

औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि

  1. कर्णस्राव-भोजपत्र काण्ड त्वक् का क्वाथ बनाकर कान को धोने से कर्णस्राव तथा कर्णवेदना का शमन होता है।
  2. अफारा-भोजपत्र की छाल का क्वाथ बनाकर 10-15 मिली मात्रा में पिलाने से आध्मान, कामला व पित्त-विकृतिजन्य ज्वर में लाभ होता है।
  3. कुष्ठ-भोजपत्र वृक्ष की गाँठ, लहसुन, शिरीषत्वक्, वचा, गुग्गुलु तथा सहिजन त्वक् के चूर्ण में सरसों का तैल मिलाकर लेप करने से कुष्ठ में लाभ होता है।
  4. मनशिला, भूर्जग्रन्थि, कुटज आदि द्रव्यों को पीसकर लगाने से कुष्ठ में लाभ होता है।
  5. ग्रन्थि विसर्प-बलामूल, नागबला, हरीतकी, भोजपत्र वृक्ष की गाँठ, बहेड़ा, वंश पत्र तथा अग्निमंथ को पीसकर लेप करने से ग्रन्थि विसर्प में लाभ होता है।
  6. व्रण-भोजपत्र वृक्ष की गाँठ, कासीस, त्रिवृत् तथा गुग्गुलु को पीसकर लेप करने से घाव जल्दी भर जाता है।
  7. जौ, घृत, भोजपत्र, मदनफल, गन्धविरोजा तथा देवदारु का धूपन करने से स्राव तथा वेदनायुक्त वातजव्रण में लाभ होता है।
  8. व्रण-काण्ड त्वक् क्वाथ से घाव को धोने से घाव जल्दी भर जाता है।
  9. योषापस्मार-काण्ड त्वक् से निर्मित फाण्ट (10-20 मिली) का सेवन करने से योषापस्मार में लाभ होता है।
  10. बालग्रह-पीली सरसों, नीम पत्र, अर्कमूल, वचा तथा भोजपत्र में घृत मिलाकर धूप देने से सभी प्रकार के बालग्रह शाँत होते हैं।

प्रयोज्याङ्ग  :छाल, भूर्जग्रंथि (वृक्ष की गाँठ)।

मात्रा  :क्वाथ 10-15 मिली या चिकित्सक के परामर्शानुसार।

आचार्य श्री बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण, आयुर्वेदिक विशेषज्ञ और पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्तंभ हैं। चार्य बालकृष्ण जी एक प्रसिद्ध विद्वान और एक महान गुरु है, जिनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान ने नए आयामों को छूआ है।

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आचार्य श्री बालकृष्ण

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