Categories: स्वस्थ भोजन

Grapes: अंगूर के हैं बहुत अनोखे फायदे – Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

वानस्पतिक नाम : Vitis vinifera Linn. (वाइटिस वाइनिफेरा)

कुल : Vitaceae (वाइटेसी)

अंग्रेज़ी नाम : Grapes (ग्रेप्स)

संस्कृत-द्राक्षा, स्वादुफला, मधुरसा, मृद्वीका, गोस्तनी, स्वाद्वी; हिन्दी-दाख, मुनकका, द्राक्ष, अंगूर; उर्दू-अंगूर (Angur); उड़िया-द्राक्या (Drakya), गोस्तोनी (Gostoni); कन्नड़-द्राक्षा (Draksha), अंगूर (Angoor); कोंकणी-धाकू (Dhaku); गुजराती-धराख (Dharakh), दराख (Darakh); तमिल-कोट्टन (Kottan), कोडीमुन्दरी (Kodimundiri); तेलुगु-द्राक्षा (Draksha), गोस्तनी द्राक्षा (Gostanidraksha); बंगाली-मनेका (Maneka), अंगूरफल (Angurphal); पंजाबी-अंगूर (Angur), बूरी (Buri); मराठी-अंगूर (Angoor), द्राक्ष (Draksha); मलयालम-गोस्तनी (Gostani), मुन्टीरी (Muntiri)।

अंग्रेजी-कॉमन ग्रेप वाइन (Common grape vine); अरबी-एनाएब (Aenaeb), एनब (Ainab), हबुस् सजीव (Habus sajiv), अब-जोश (Ab-josh); फारसी-अंगूर (Angur), मवेज (Mavez)।

परिचय

चरक, सुश्रुतादि सभी प्राचीन आयुर्वेदीय ग्रन्थों में द्राक्षा, मृद्वीका आदि नामों से अंगूर का वर्णन पाया जाता है। यूनानी और अरबी ग्रन्थों में अंगूर, अनब, हसरम आदि नामों से इसी का वर्णन हुआ है। एक बहुवर्षायु सुदीर्घ लता है। फलों में यह सर्वोत्तम एवं निर्दोष फल है, क्योंकि यह सभी प्रकार की प्रकृति के मनुष्य के लिए अनुकूल है। नीरोगी के लिए यह उत्तम पौष्टिक खाद्य है तो रोगी के लिए बलवर्धक पथ्य। जब कोई खाद्य पदार्थ पथ्य रूप में न दिया जा सके तब द्राक्षा‘ (मुनक्का) का सेवन किया जा सकता है। रंग और आकार तथा स्वाद भिन्नता से अंगूर की कई किस्में होती हैं। काले अंगूर, बैंगनी रंग के अंगूर, लम्बे अंगूर, छोटे अंगूर, बीज रहित जिनको सुखाकर किशमिश बनाई जाती है। काले अंगूरों को सुखाकर मुनक्का बनाई जाती है। भारत में जम्मू-काश्मीर, पंजाब, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात एवं हरियाणा में इसकी खेती की जाती है।

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

अंगूर के पके फल शीतल, नेत्रों को हितकारी, पुष्टिकारक, पाक या रस में मधुर, स्वर को उत्तम करने वाले, कषाय, मल तथा मूत्र को निकालने वाले, वीर्यवर्धक, पौष्टिक, कफकारक तथा रुचिकारक है। यह तृष्णा, ज्वर, श्वास, कास, वातरक्त, कामला, मूत्रकृच्छ्र, रक्तपित्त, मोह, दाह, शोष तथा मेह में हितकर है। कच्चा अंगूर गुणों में हीन, भारी तथा कफपित्तशामक होता है। काली दाख या गोल मुनक्का-वीर्यवर्धक, भारी और कफपित्तशामक है।

किशमिश-बिना बीज की छोटी किशमिश मधुर, शीतल, वीर्यवर्धक, रुचिप्रद, खट्टी तथा श्वास, कास, ज्वर, हृदय की पीड़ा, रक्त-पित्त, क्षत, क्षय, स्वरभेद, तृष्णा (अत्यधिक प्यास), वात, पित्त और मुख के कड़वेपन को दूर करती है।

अंगूर के ताजे फल-रुधिर को पतला करने वाले, छाती के रोगों में लाभ पहुँचाने वाले, बहुत जल्दी पचने वाले, रक्त-शोधक, खून बढ़ाने वाले, शीतल, मृदुकारक, मूत्रल, विरेचक, आमाशय रसवर्धक, स्वेदक, क्षुधावर्धक, मधुर, रक्तवर्धक, ज्वरघ्न, शोधक, पाचक, कफनिसारक तथा बलकारक होते हैं।

अंगूर के पुष्प कफनिसारक, आर्तववर्धक तथा रक्तवर्धक होते हैं।

अंगूर के बीज शीतल, स्वेदल तथा कषाय होते हैं।

अंगूर के पत्र अतिसारनाशक तथा स्तम्भक होते हैं।

औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि

  1. शिर शूल-8-10 नग मुनक्का, 10 ग्राम मिश्री तथा 10 ग्राम मुलेठी, तीनों को पीसकर नस्य देने से पित्त-विकृतिजन्य शिरशूल का शमन होता है।
  2. नकसीर-2-2 बूंद द्राक्षा रस का नस्य देने से नकसीर बन्द हो जाती है।
  3. मुखरोग-10 नग मुनक्का तथा 3-4 ग्राम जामुन के पत्ते मिलाकर क्वाथ बनाकर कुल्ला करने से दंतशूल, मुखदौर्गन्ध्य तथा अरुचि का शमन होता है।
  4. कफ-विकृति या अजीर्ण के कारण मुख से दुर्गन्ध आती हो तो 5-10 ग्राम मुनक्का नियमपूर्वक खाने से दूर हो जाती है।
  5. गलग्रन्थि-अंगूर के 10 मिली रस में 1 ग्राम हरड़ चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम नियमपूर्वक पीने से गलग्रन्थि का शमन होता है।
  6. अंगूर स्वरस का गरारा करने से कण्ठदाह, शूल तथा शोथ का शमन होता है।
  7. 1 ग्राम मिश्री, 500 मिग्रा पीपर, 1 ग्राम मुनक्का तथा 1 ग्राम तिल को शहद के साथ सेवन करने से श्वास, कास तथा छर्दि का शमन होता है।
  8. उरक्षत-10-10 ग्राम मुनक्का और धान की खील को 100 मिली जल में भिगो दें। 2 घंटे बाद मसल छानकर उसमें मिश्री और शहद मिलाकर सेवन करने से उरक्षत में लाभ होता है।
  9. श्वास-कास-मुनक्का और हरीतकी से निर्मित 40-60 मिली क्वाथ में 10 ग्राम मिश्री और 2 चम्मच शहद मिलाकर पीने से श्वास-कास में लाभ होता है।
  10. द्राक्षा, आँवला, खजूर, पिप्पली तथा काली मिर्च, इन सबको समभाग लेकर पीस लें। इसके सेवन से सूखी खांसी तथा कुक्कुर खांसी में लाभ होता है।
  11. क्षय-घी, खजूर, मुनक्का, मिश्री, मधु तथा पिप्पली, इन सबका अवलेह बनाकर सेवन करने से स्वरभेद, कास, श्वास, जीर्ण-ज्वर तथा क्षयरोग का शमन होता है।
  12. पित्तज-कास-10 नग मुनक्का, 30 नग पिप्पली तथा 45 ग्राम मिश्री, तीनों का मिश्रण बनाकर, मधु मिलाकर 2-5 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करने से पित्तज कास में लाभ होता है।
  13. कफज-विकार-8-10 नग मुनक्का, 25 ग्राम मिश्री तथा 2 ग्राम कत्थे को पीसकर मुख में रखकर चूसने से दूषित कफज विकारों का शमन होता है।
  14. हृद्शूल-यदि हृदय में पीड़ा हो तो 3 भाग मुनक्का कल्क में 1 भाग शहद तथा 1/2 भाग लौंग मिलाकर कुछ दिन सेवन करने से लाभ होता है।
  15. मुदुरेचन के लिए-10-20 नग मुनक्कों को साफ कर, बीज निकालकर, 200 मिली दूध में भली-भांति उबालकर (जब मुनक्के फूल जाएं) दूध और मुनक्के दोनों का सेवन करने से प्रात काल सम्यक-रूप से मल का निर्हरण होता है।
  16. 10-20 नग मुनक्का, 5 नग अंजीर, सौंफ, सनाय, अमलतास का गूदा 3-3 ग्राम तथा गुलाब के फूल 3 ग्राम, इन सबका क्वाथ करके प्रात काल गुलकन्द मिलाकर पीने से सम्यक-रूप से मल का निर्हरण होता है।
  17. रात्रि में सोने से पहले 10-20 नग मुनक्कों को थोड़े घी में भूनकर चुटकी भर सेंधानमक मिलाकर सेवन करने से सम्यक् रूप से मल का निर्हरण होता है।
  18. 7 नग मुनक्का, 5 नग काली मिर्च, 10 ग्राम भुना जीरा तथा 6 ग्राम सेंधानमक को मिलाकर चटनी बनाकर चाटने से कब्ज तथा अरुचि दूर होती है।
  19. उदर-शूल-अंगूर और अडूसे का क्वाथ बनाकर 40-60 मिली मात्रा में पिलाने से उदरशूल का शमन होता है।
  20. अम्लपित्त-दाख तथा हरड़ बराबर-बराबर लें। इसमें दोनों के बराबर शक्कर मिलाएं, सबको एकत्रकर पीस लें; 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर एक-एक गोली प्रात सायं शीतल जल के साथ सेवन करने से अम्लपित्त, हृदय-कंठ की दाह, तृष्णा तथा मंदाग्नि का शमन होता है।
  21. 10 ग्राम मुनक्का  और 5 ग्राम सौंफ को 100 मिली जल में भिगो दें। प्रात मसल-छानकर पीने से अम्लपित्त में लाभ होता है।
  22. रक्तार्श-अंगूरों के गुच्छों को हांडी में बन्द कर भस्म बना लें। (काले रंग की भस्म प्राप्त होगी।) 1-2 ग्राम भस्म में बराबर मिश्री मिलाकर, 5 ग्राम गोघृत के साथ सेवन करने से रक्तार्श जन्य रक्तस्राव शीघ्र बन्द हो जाता है।
  23. पांडु-कामला-500 ग्राम मुनक्का का कल्क (पत्थर पर पिसा हुआ), 2 किग्रा पुराना घी और 8 ली जल, सबको एकत्र मिलाकर पकाएं, जब केवल घी मात्र शेष रह जाए तो उसे छानकर रख लें, 3 से 10 ग्राम तक प्रात सायं सेवन करने से पांडु तथा कामला आदि में विशेष लाभ होता है।
  24. पथरी-काली द्राक्षा की भस्म को पानी में घोलकर या 40-50 मिली गोखरू क्वाथ या 10-20 मिली अंगूर रस के साथ पिलाने से पथरी नष्ट होती है।
  25. 8-10 नग मुनक्कों को काली मिर्च के साथ घोटकर पिलाने से पथरी टूट-टूट कर निकल जाती हैं।
  26. मूत्रकृच्छ्र-8-10 मुनक्कों एवं 10-20 ग्राम मिश्री को पीसकर, दही के पानी में मिलाकर पीने से मूत्रकृच्छ्र में लाभ होता है।
  27. मुनक्का (12 ग्राम), पाषाणभेद, पुनर्नवामूल तथा अमलतास गूदा (6-6 ग्राम) को जौकुट कर, आधा ली जल में अष्टमांश क्वाथ सिद्ध कर पिलाने से मूत्रकृच्छ्र में लाभ होता है।
  28. अण्डकोषवृद्धि-अंगूर के 5-6 पत्तों पर घी लगाकर आग पर गर्मकर अण्डकोषों में बांधने से सूजन कम हो जाती है।
  29. मूर्च्छा-दाख और आँवलों को समान मात्रा में लेकर, उबालकर, पीसकर थोड़ा शुंठी चूर्ण मिलाकर, शहद के साथ चटाने से ज्वर-युक्त मूर्च्छा में लाभ होता है।
  30. 25 ग्राम मुनक्का, 12 ग्राम मिश्री, 12 ग्राम अनार की छाल और 12 ग्राम खस को यवकुट कर 500 मिली पानी में रात भर भिगो दें, प्रातकाल छानकर, 3 खुराक बनाकर दिन में 3 बार पिला दें। इसके प्रयोग से मूर्च्छा में लाभ होता है।
  31. 100-200 ग्राम मुनक्का को घी में भूनकर थोड़ा सेंधानमक मिलाकर, नित्य 5-10 ग्राम तक खाने से चक्कर आना बन्द हो जाता है।
  32. बल एवं पुष्टि के लिए- 12 नग मुनक्का, 5 नग छुहारा तथा 7 नग मखाना, इन सभी को 250 मिली दूध में डालकर खीर बनाकर सेवन करने से रक्त तथा मांस की वृद्धि होकर शरीर पुष्ट होता है।

और पढ़ें: मखाना के फायदे

  1. 9 नग मुनक्का, 5 नग किसमिस, ब्राह्मी 3 ग्राम, 8 नग छोटी इलायची, 3 ग्राम खरबूजे की गिरी, 10 नग बादाम तथा 3 ग्राम बबूल की पत्ती को घोटकर पीने से दाह का शमन होकर शरीर का पोषण तथा बल की वृद्धि होती है।
  2. प्रात 20 ग्राम मुनक्का खाकर ऊपर से 250 या 125 मिली दूध पेने से ज्वर तथा ज्वर जन्य दौर्बल्य का शमन होकर शरीर पुष्ट होता है।
  3. 20 से 60 ग्राम किसमिस को रात्रि एक कप जल में भिगो दें, प्रात काल मसलकर-छानकर जल को पीने से दौर्बल्य तथा अम्लपित्त का शमन होता है।
  4. रात्रि को सोने से पूर्व मुनक्का खाएं (बीज निकालकर) फिर ऊपर से जल पी लें, कुछ दिनों में दुर्बलता दूर होकर शरीर पुष्ट होता है (ज्यादा लेने पर अतिसार हो जाते हैं, अपनी शारीरिक क्षमतानुसार मात्रा का निर्धारण कर लें)।
  5. दाह-10-20 नग मुनक्कों को शाम को जल में भिगोकर प्रात मसलकर छान लें तथा उसमें थोड़ा श्वेत जीरे का चूर्ण और मिश्री या चीनी मिलाकर पिलाने से पित्तज दाह का शमन होता है।
  6. 10 ग्राम किसमिस को आधा ली गाय के दूध में पकाकर ठंडा हो जाने पर रात्रि के समय नित्य सेवन करने से दाह का शमन होता है।
  7. 10 ग्राम मुनक्का और 10 ग्राम मिश्री मिलाकर सेवन करने से दाह का शमन होता है।
  8. 8 भाग किसमिस, 5 ग्राम गिलोय सत्त, 1-1 गाम जीरा तथा चीनी, इन सभी के मिश्रण को चिकने ताम्रपात्र में भरकर उसमें इतना गाय का घी मिलाएं कि मिश्रण अच्छी तरह भीग जाए। इसमें से नित्य प्रति 2-3 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से एक-दो सप्ताह में चेचकजन्य दाह का शमन होता है।
  9. सन्निपात ज्वर-सन्निपातज ज्वर में भी जिह्वा सूख जाए और फट जाए तो 2-3 नग दाख को 1 चम्मच मधु के साथ पीसकर उसमें थोड़ा घी मिलाकर लेप करने से लाभ होता है।
  10. पित्त-ज्वर-द्राक्षा और अमलतास के गूदे का क्वाथ बनाकर 20-40 मिली मात्रा में पीने से पित्तज ज्वर का शमन होता है।
  11. अंगूर के शरबत का नित्य सेवन करने से भी दाह, ज्वर आदि का शमन होता है।
  12. द्राक्षा और मुलेठी का क्वाथ बनाकर 20-40 मिली मात्रा में दिन में दो-तीन बार पीने से तृष्णा का शमन होता है।
  13. मुनक्का, काली मिर्च और सेंधानमक तीनों को पीसकर 250 मिग्रा की गोलियां बनाकर 2-2 गोली प्रात-सायं चूसने से पित्तजज्वर का शमन होता है।
  14. रक्त-पित्त-10 ग्राम किसमिस, 160 मिली दूध तथा 640 मिली जल, तीनों को मंद अग्नि पर पकाएं। 160 मिली शेष रहने पर थोड़ी मिश्री मिलाकर प्रात सायं सेवन करें। इसके प्रयोग से रक्तपित्त का शमन होता है।
  15. 10-10 ग्राम मुनक्का, मुलेठी तथा गिलोय लेकर यवकुट कर 500 मिली जल में पकाकर अष्टमांश क्वाथ सिद्ध करें 20-30 मिली मात्रा में सेवन करने से रक्तपित्त का शमन होता है।
  16. 10 ग्राम मुनक्का, 10 ग्राम गूलर की जड़ तथा 10 ग्राम धमासा लेकर, यवकुट कर अष्टमांश क्वाथ सिद्ध करें। 20-30 मिली मात्रा में सेवन करने से रक्तपित्त, दाह, मुखशोष, तृषा तथा कफ के साथ खांसने पर रक्त निकलना आदि विकार शीघ्र दूर हो जाते हैं।
  17. अंगूर के 50-100 मिली रस में 10 ग्राम घी और 20 ग्राम खांड मिलाकर पीने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
  18. मुनक्का और पके गूलर के फल को बराबर-बराबर लेकर पीसकर शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
  19. 1 भाग मुनक्का तथा 1 भाग हरड़ को पानी के साथ पीसकर 200 मिली बकरी के दूध के साथ पिलाएं। इसके प्रयोग से रक्तपित्त में लाभ होता है।
  20. द्राक्षा तथा अमलतास के फलों से निर्मित क्वाथ (20-40 मिली) या शीतकषाय का सेवन करने से पित्तज्वर का शमन होता है।
  21. द्राक्षा तथा अनार के कल्क को मुख में धारण करने से ज्वर-जन्य मुख-वैरस्य तथा मुखशुष्कता का शमन होता है।
  22. द्राक्षा एवं आँवले के कल्क में गोघृत मिलाकर मुख के अंदर प्रतिसारण करने से तालु तथा कण्ठ शोष का शमन होकर भोजन में रुचि उत्पन्न हो जाती है।
  23. क्षय-(खर्जुरादि घृत)-समभाग खजूर तथा द्राक्षा से विधिवत् सिद्ध घृत में शर्करा, मधु तथा पिप्पली मिलाकर सेवन करने से राजयक्ष्मा-जन्य स्वरभेद, कास, श्वास तथा ज्वर आदि का शमन होता है।
  24. द्राक्षावलेह-समभाग द्राक्षा, मिश्री एवं पिप्पली के चूर्ण (2-4 ग्राम) में तिल तैल एवं मधु मिलाकर सेवन करने से क्षय रोग में लाभ होता है।
  1. हरीतकी चूर्ण तथा द्राक्षा को समान मात्रा में मिलाकर पीस लें। 2-3 ग्राम मात्रा में सेवन करने से पैत्तिक रक्तपित्त, कण्डू, गुल्म तथा जीर्णज्वर का शमन होता है।
  2. द्राक्षा कल्क से सिद्ध गोघृत में दूध एवं मिश्री मिलाकर पीने से रक्तपित्त रोग में लाभ होता है।
  3. द्राक्षा एवं चारों पर्णिनी (शालपर्णी, पृश्निपर्णी, मुद्गपर्णी तथा माषपर्णी) से सिद्ध दुग्ध को पीने से रक्तपित्त रोग में लाभ होता है।
  4. वातज्वर-द्राक्षा, गुडूची, गम्भारी, त्रायमाणा तथा सारिवा से निर्मित क्वाथ (10-30 मिली) में गुड़ मिलाकर सेवन करने से वातज-ज्वर का शमन होता है।
  5. ज्वर-मुनक्का, हरीतकी, नागरमोथा, कुटकी, अमलतास और पित्तपापड़ा, इन द्रव्यों से बनाए क्वाथ (10-30 मिली) का सेवन करने से पिपासा, मूर्च्छा, दाह, रक्तपित्त तथा पित्तज्वर का शमन होता है।
  6. द्राक्षा, अडूसा, अमलतास, यवासा, चिरायता तथा सफेद चन्दन को समान भाग लेकर क्वाथ बनाकर 10-20 मिली की मात्रा में पीने से त्रिदोषज-ज्वर में लाभ होता है।
  7. द्राक्षा, सौंफ, मुलेठी, खूबकला, वनप्सा, अमलतास, चिरपोटा तथा गुलकंद, इनसे सिद्ध 10-30 मिली क्वाथ में मिश्री मिलाकर पीने से पित्तज्वर, आध्मान तथा दाह में लाभ होता है।
  8. रक्तपित्त-मुनक्का तथा हरड़ से निर्मित 10-30 मिली क्वाथ में मिश्री व शहद मिलाकर पीने से कास, श्वास तथा रक्तपित्त में लाभ होता है।
  9. द्राक्षा से निर्मित हिम को 10-20 मिली की मात्रा में पीने से ज्वर का शमन होता है।
  10. धतूरे का विष-10 मिली अंगूर के सिरके को 100 मिली दूध में मिलाकर पिलाने से धत्तूर सेवन जन्य विषाक्त प्रभावों का शमन होता है।

प्रयोज्याङ्ग : पञ्चाङ्ग, पक्व फल, श्ािष्क फल, पत्र, पुष्प एवं काण्ड।

मात्रा : 10-20 ग्राम। स्वरस 50-100 मिली। क्वाथ 10-30 मिली। हिम 10-20 मिली।

और पढ़े:

आचार्य श्री बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण, आयुर्वेदिक विशेषज्ञ और पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्तंभ हैं। चार्य बालकृष्ण जी एक प्रसिद्ध विद्वान और एक महान गुरु है, जिनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान ने नए आयामों को छूआ है।

Share
Published by
आचार्य श्री बालकृष्ण

Recent Posts

कब्ज से छुटकारा पाने के लिए अपनाएं पतंजलि दिव्य त्रिफला चूर्ण

आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार, त्रिफला चूर्ण पेट से जुड़ी समस्याओं के लिए बेहद फायदेमंद है. जिन लोगों को अपच, बदहजमी…

12 months ago

डायबिटीज को नियंत्रित रखने में सहायक है पतंजलि दिव्य मधुनाशिनी वटी एक्स्ट्रा पावर

डायबिटीज की बात की जाए तो भारत में इस बीमारी के मरीजों की संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही…

12 months ago

त्वचा से जुड़ी समस्याओं के इलाज में उपयोगी है पतंजलि दिव्य कायाकल्प वटी

मौसम बदलने पर या मानसून सीजन में त्वचा से संबंधित बीमारियाँ काफी बढ़ जाती हैं. आमतौर पर बढ़ते प्रदूषण और…

12 months ago

युवाओं के लिए अमृत है पतंजलि दिव्य यौवनामृत वटी, जानिए अन्य फायदे

यौन संबंधी समस्याओं के मामले में अक्सर लोग डॉक्टर के पास जाने में हिचकिचाते हैं और खुद से ही जानकारियां…

12 months ago

मोटापे से छुटकारा पाने के लिए अपनाएं पतंजलि मेदोहर वटी

पिछले कुछ सालों से मोटापे की समस्या से परेशान लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. डॉक्टरों के…

12 months ago

पेट से जुड़े रोगों को ठीक करती है पतंजलि दिव्य गोधन अर्क, जानिए सेवन का तरीका

अधिकांश लोगों का मानना है कि गौमूत्र के नियमित सेवन से शरीर निरोग रहता है. आयुर्वेदिक विशेषज्ञ भी इस बात…

12 months ago