Contents
जिस तरह आधुनिक चिकित्सा पद्धति में बीमारी का पता कुछ लैब टेस्ट और जांचों की मदद से लगाया जाता है। उसी तरह आयुर्वेद में भी बीमारी की पहचान करने के कई तरीके हैं। इनमें नाड़ी परीक्षण प्रमुख है। इसमें मरीज की नाड़ी की गति नापकर बीमारियों का पता लगाया जाता है।
शरीर की सेहत अच्छी होने या बिगड़ने का प्रभाव ह्रदय की गति ( दिल की धड़कन) पर पड़ता है। इस स्पंदन या धड़कन का प्रभाव धमनियों की धड़कन पर पड़ता है। इसी धड़कन को छूकर आयुर्वेदिक चिकित्सक आपकी सेहत का अंदाज़ा लगाते हैं।
नाड़ी की जांच के लिए सबसे सही समय सुबह खाली पेट होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि भोजन व तेल मालिश के बाद नाड़ी की गति अनिश्चित व अस्थिर हो जाती है। इसलिए इन क्रियाओं के बाद नाड़ी परीक्षा से रोग को इलाज करना मुश्किल हो जाता है। इसी तरह यदि रोगी भूखा प्यासा हो तो भी नाड़ी की गति का ठीक से पता नहीं चल पाता है।
आमतौर पर पुरुषों के दायें हाथ की और स्त्रियों के बाएं हाथ की नाड़ी की गति देखी जाती है। हालांकि कभी कभी दोनों हाथों की नाड़ी देखने पर ही स्पष्ट जानकारी हासिल हो पाती है। हथेली से लगभग आधा इंच नीचे का स्थान छोड़कर नाड़ी का परीक्षण किया जाता है।
नाड़ी परीक्षण के दौरान मरीज को अपनी बाहें सीधी और फैलाकर रखनी चाहिए और हाथ को बिल्कुल ढीला छोड़ देना चाहिए। इस दौरान हाथ की उंगलियाँ व अंगूठा सीधा और फैला हुआ होना चाहिए। चिकित्सक को अपने दायें हाथ से नाडी देखनी चाहिए। इस विधि में हाथ की तीन उंगलियाँ तर्जनी, मध्यमा और अनामिका का प्रयोग किया जाता है।
तर्जनी ऊँगली अंगूठे के निचले हिस्से पर रखी जाती है। नाड़ी पर तीनो ऊँगलियों के पोरों से हल्का लेकिन एक जैसा दवाब डालकर गति महसूस करना चाहिए। एकदम सही और निश्चित गति जानने के लिए बार-बार अंगुलियों को वहां से हटाकर फिर रखना चाहिए।
इस प्रकार, जिस अंगुली के पोर में नाडी की गति का दबाव अधिक अनुभव होता है, उसी के आधार पर रोग का पता लगाया जाता है। यदि तर्जनी अंगुली में गति का दबाव अधिक है, तो इसका मतलब है कि रोगी में वात दोष की प्रधानता है। मध्यमा (बीच वाली) अंगुली में गति के दबाव से पित्त की अधिकता और अनामिका अंगुली में दबाव की अनुभूति से कफ दोष की प्रधानता का पता चलता है।
ऐसा बताया गया है कि नाड़ी की गति से भी रोग का पता चलता है। जैसे कि अगर नाडी की गति साँप की गति जैसी है, तो इसका मतलब है कि वात दोष अधिक है। अगर यह मेंढक की चाल जैसी है तो इसका मतलब है पित्त दोष बढ़ा हुआ है। इसी तरह अगर नाड़ी की गति कबूतर की चाल के समान है तो समझिये कि कफ दोष बढ़ा हुआ है।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि नाड़ी परीक्षण में कुशल वैद्य सिर्फ नाड़ी को छूकर ही लाइलाज या जानलेवा बीमारियों का पता लगा लेते हैं। अगर नाड़ी बहुत धीमे धीमे रुक रुक कर चल रही है या अनियमित रूप से चल रही है तो इसका मतलब है कि बीमारी लाइलाज या जानलेवा है।
अगर नाड़ी की गति पहले पित्त, वात और कफ वाली हो और फिर अचानक से तेज हो जाए और फिर धीमी हो जाए तो यह दर्शाता है कि मरीज को कोई लाइलाज बीमारी है।
अगर नाड़ी बहुत सूक्ष्म, तेज गति वाली और ठंडी महसूस हो तो यह दर्शाता है कि मरीज की मृत्यु जल्दी होने वाली है।
अगर रोगी की नाड़ी हंस की गति जैसे हो और वह खुश दिखे तो यह दर्शाता है कि मरीज स्वस्थ होगा।
इस प्रकार आयुर्वेद में नाडी की गति का बहुत ही विस्तृत अध्ययन किया गया है। हालांकि सभी आयुर्वेदिक वैद्य नाड़ी परीक्षण में पारंगत नहीं होते हैं। इसलिए जो वैद्य नाड़ी परीक्षण में पारंगत और अनुभवी हों उन्ही से अपनी जांच कराएँ।
आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार, त्रिफला चूर्ण पेट से जुड़ी समस्याओं के लिए बेहद फायदेमंद है. जिन लोगों को अपच, बदहजमी…
डायबिटीज की बात की जाए तो भारत में इस बीमारी के मरीजों की संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही…
मौसम बदलने पर या मानसून सीजन में त्वचा से संबंधित बीमारियाँ काफी बढ़ जाती हैं. आमतौर पर बढ़ते प्रदूषण और…
यौन संबंधी समस्याओं के मामले में अक्सर लोग डॉक्टर के पास जाने में हिचकिचाते हैं और खुद से ही जानकारियां…
पिछले कुछ सालों से मोटापे की समस्या से परेशान लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. डॉक्टरों के…
अधिकांश लोगों का मानना है कि गौमूत्र के नियमित सेवन से शरीर निरोग रहता है. आयुर्वेदिक विशेषज्ञ भी इस बात…