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मौसम के अनुसार खानपान और जीवनशैली में लाएं ये बदलाव

हमारे शरीर पर खान-पान के अलावा मौसम और जलवायु का भी प्रभाव पड़ता है। किसी एक मौसम में कोई एक दोष बढ़ता है तो कोई दूसरा शांत होता है जबकि दूसरे मौसम में कोई अन्य दोष बढ़ता घटता रहता है। आयुर्वेद में बताया गया है कि आपकी सेहत और मौसम में गहरा संबंध है।

इसलिए आयुर्वेद में हर मौसम के हिसाब से रहन-सहन और खान पान के निर्देश दिए गए हैं।  इन निर्देशों का पालन करके आप निरोग रह सकते हैं। अपने देश की भौगोलिक स्थिति के अनुसार साल में तीन मौसम होते हैं : गर्मी, सर्दी और मानसून। ये तीन मौसम छः ऋतुओं में बाँटे गये हैं। ये ऋतुएँ हैं :

 

  • शिशिर (जनवरी से मार्च)
  • बसंत (मार्च से मई)
  • ग्रीष्म (मई से जुलाई)
  • वर्षा (जुलाई से सितंबर)
  • शरद (सितंबर से नवंबर)
  • हेमन्त (नवम्बर से जनवरी)

 

इन सारी ऋतुओं को सूर्य की गति के आधार पर निर्धारित किया गया है, जिसे अयन कहा जाता है। अयन के दो प्रकार बताए गए हैं :  

  • उत्तरायण (उत्तर की ओर गति)
  • दक्षिणायन (दक्षिण दिशा की ओर गति)

 

Contents

सर्दियों (हेमंत व शिशिर ऋतु) में खानपान और जीवनशैली 

सेहत की दृष्टि से देखा जाए तो यह मौसम सबसे अच्छा होता है। इस समय शरीर मजबूत रहता है। दिन और रात लम्बे होने की वजह से शरीर को आराम करने और खाना पचाने का पर्याप्त समय मिलता है। यही कारण है कि इन दिनों में भूख ज्यादा लगती है। पाचन शक्ति तेज होने के कारण भरी और अधिक मात्रा में खाया गया खाना भी आसानी से पच जाता है। इसलिए इस मौसम में भूखा रहना या रुखा सूखा खाना खाना आपकी सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है।

और पढ़ें: पाचन शक्ति बढ़ने में धनिया के फायदे

सर्दियों में क्या खाएं 

इस मौसम में चिकनाई युक्त, मधुर, नमकीन और खटाई युक्त आहारों का सेवन करना चाहिए। इसके अलावा पोषक तत्वों से भरपूर आहार भी पर्याप्त मात्रा में लेने चाहिए। ठंड के दिनों में गुनगुना पानी और गढ़ तासीर वाली चीजों का सेवन करना चाहिए।

चिकनाई युक्त आहार : इसके लिए आप घी, मक्खन, तेल, दूध, दूध-चावल की खीर, उड़द की खीर, मिश्री, रबड़ी, मलाई, ठण्डे दूध के साथ शहद, गन्ने का रस, दलिया, हलवा, आँवले व सेब का मुरब्बा, पिट्ठी व मेवों से बने पदार्थ, मिठाई आदि का सेवन करें।

अनाज : अंकुरित चने, मूंग, उड़द, गेंहू, चने की रोटी, कॉर्नफ्लेक्स, पुँराना चावल आदि खाएं।

सब्जियां परवल, बैंगन, गोभी, जिमीकन्द, पके लाल टमाटर, गाजर, सेम, मटर, पालक, बथुआ, मेथी आदि हरी सब्जियों का सेवन करें।

जो लोग हरड़ का सेवन रसायन के रूप में करते हैं, उन्हें हेमन्त-ऋतु में आधा चम्मच हरड़ के साथ सोंठ का चूर्ण आधा चम्मच, तथा शिशिर-ऋतु में हरड़ के साथ पीपल (पिप्पली) का चूर्ण आधा चम्मच ताजे पानी के साथ लेना चाहिए।

 

क्या ना खाएं 

सर्दियों में हल्के, रूखे, तीखे खाद्य एवं पेय पदार्थों, बासी व ठंडी चीजों (आइसक्रीम आदि) का सेवन नहीं करना चाहिए। इमली, अमचूर, खट्टा दही, आम का अचार आदि का सेवन भी सर्दियों में नहीं करना चाहिए।

 

रहन सहन में बदलाव 

सही खानपान के अलावा इस मौसम में निरोग रहने के लिए आपको अपनी जीवनशैली में भी बदलाव लाने होंगे। सुबह जल्दी उठकर शौच, स्नान आदि कर लें और फिर टहलने जाएं। इसके बाद थोड़ी देर योहासन करें। इस मौसम में सरसों के तेल से सिर और शरीर की मालिश करना बहुत फायदेमंद होता है। ठंडी हवा से बचकर रहें और गर्म ऊनी कपड़ों का प्रयोग करें। रात को सोते समय गर्म दूध का सेवन भी लाभदायक होता है।

 

क्या ना करें 

इन दिनों रात में देर तक जागना, सुबह देर से उठना, व्यायाम ना करना, देर तक भूखे रहना, खाना खाने के तुरंत बाद सो जाना आदि गलत आदतों से दूर रहना चाहिए।

 

बसंत (मार्च से मई) ऋतु में खान-पान और जीवनशैली  

यह मौसम बहुत ही सुहावना होता है। इस मौसम में पूरी प्रकृति ही सुन्दर दिखती है। इस समय ना तो ज्यादा ठंडी होती है ना ही ज्यादा गर्मी, मौसम एक दम मिला जुला होता है। दिन में गर्मी होने के कारण शरीर में जमा कफ पिघलकर निकलने लगता है। इसलिए इस मौसम में कफ के असंतुलन से होने वाले रोग जैसे कि खाँसी, जुकाम, दमा, गले की खराश, टॉन्सिल्स, पाचन-शक्ति की कमी, जी-मिचलाना आदि बढ़ जाते हैं।  इसलिए इस मौसम में खानपान पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

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बसंत ऋतु में क्या खाएं 

इस मौसम में ताजा हल्का और आसानी से पचने वाला भोजन करना चाहिए। मूँग, चना और जौ की रोटी, पुराना गेहूँ और चावल, जौ,राई, भीगा व अंकुरित चना, मक्खन लगी रोटी, हरी शाक-सब्जी एवं उनका सूप, सरसों का तेल आदि का सेवन करें।

सब्जियों में- करेला, लहसुन, पालक, केले के फूल, जिमीकन्द व कच्ची मूली, नीम की नई कोपलें, सोंठ, पीपल, काली मिर्च, हरड़, बहेड़ा, आँवला, धान की खील, खस का जल, नींबू आदि का सेवन करें।

इस मौसम में मौसमी फलों और शहद का सेवन भी ज़रुर करें। पानी अधिक मात्रा में पिएं। कफ को कम करने के लिए मुंह में ऊँगली डालकर उल्टी करें।

 

क्या ना खाएं 

बसंत ऋतु में भारी, चिकनाई युक्त, खट्टी (इमली, अमचूर) और मीठी चीजों (जैसे कि गुड़, शक्कर) आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा ठंडी तासीर वाले आहार, उड़द, रबड़ी, मलाई जैसे भारी आहार लेने से बचना चाहिए।

 

रहन सहन में बदलाव 

नियमित रूप से हल्का व्यायाम अथवा योगासन करना चाहिए। सूर्योदय से पहले टहलने से स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। तेल मालिश करके गुनगुने पानी से नहाएं। धूप में निकलते समय सिर पर टोपी या छाते का प्रयोग करें।

क्या ना करें 

इस मौसम में खुले आसमान के नीचे सोना, ठंड में रहना, धूप में घूमना व दिन में सोना भी हानिकारक माना जाता है।

 

गर्मियों के मौसम में खानपान एवं जीवनशैली 

इस मौसम में तापमान काफी बढ़ जाता है जिससे सारा वातावरण रूखा और नीरस दिखाई देता है। इन दिनों गर्म हवाओं (लू ) से बचकर रहना चाहिए और खानपान पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इन दिनों गर्मी की वजह से पसीना ज्यादा निकलता है और शरीर में पानी की कमी होने लगती है। इस मौसम में उल्टी, दस्त और पेचिश की समस्या ज्यादा होती है। इन सभी समस्याओं से बचने के लिए आयुर्वेद में इस मौसम के लिए आहार और रहन सहन से जुड़े ख़ास निर्देश दिए गए हैं।

 

गर्मियों में क्या खाएं 

  • गर्मियों के मौसम में हल्का, चिकना, आसानी से पचने वाला भोजन करना चाहिए। ठंडे तरल पदार्थों का सेवन करना इस मौसम में अधिक लाभकारी होता है। इसके लिए चीनी, घी, दूध व मट्ठे का सेवन करें। छाछ में पिसा जीरा व थोड़ा नमक मिलाकर पीना गर्मियों के मौसम में बहुत लाभकारी होता है। छाछ का सेवन सुबह और दोपहर में ही करें, रात में नहीं।

 

  • सब्जियों में चौलाई, करेला, बथुआ, परवल, पके टमाटर, छिल्के सहित आलू, कच्चे केले की सब्जी, सहजन की फली, प्याज, सफेद पेठा, पुदीना, नींबू आदि का सेवन करें।

 

  • दालों में छिलका रहित मूँग, अरहर और मसूर की दाल का सेवन करें।

 

  • फलों में- तरबूज, मीठा खरबूजा, मीठा आम, सन्तरा और अंगूर, हरी पतली ककड़ी, शहतूत, फालसा, अनार, आँवले के मुरब्बे का सेवन करें।

और पढ़ें: फालसा के फायदे व नुकसान

  • सूखे मेवों में किशमिश, मुनक्का, चिरौंजी, अंजीर व भिगोए हुए बादाम का सेवन करें।

 

  • तरल पदार्थों में नींबू की शिकंजी, आम का पना, लस्सी, ठंडाई, चन्दन, खसखस, बेल का शरबत, नारियल पानी आदि का सेवन करें। मिश्री व घी मिला दूध, भैंस का दूध आदि का सेवन भी गर्मियों के मौसम में फायदेमंद होता है।

 

  • अरहर की दाल में घी और जीरे का छौंक लगाकर खाएं। रसायन के रूप में हरड़ का सेवन समान मात्रा में गुड़ मिला कर करना चाहिए। इस मौसम में भोजन कम मात्रा में और खूब चबाकर-चबाकर खाना चाहिए। खाने को फ्रिज में रखकर बाद में खाने से परहेज करें। फ्रिज की बजाय घड़े का पानी पिएं।

 

क्या ना खाएं 

  • गर्मियों के मौसम में ज्यादा खट्टे और मसालेदार चीजों का सेवन कम करना चाहिए। भारी, तले हुए, मिर्च मसालेदार और बासी खाना ना खाएं। उड़द की दाल, लहसुन, सरसों, खट्टी दही, शहद, बैंगन, बर्फ आदि का सेवन बिल्कुल ना करें।

 

  • हालांकि शहद को औषधि के अनुपान के रूप में लिया जा सकता है। बाजार में बिकने वाली चाट-चटनी आदि खट्टे पदार्थ, खोये के व्यंजन और उड़द की पिट्ठी से बने पदार्थ भी हानिकारक होते हैं। एक बार में अधिक मात्रा में जल नहीं पीना चाहिए, इससे पाचक-अग्नि कमजोर होती है। कुछ-कुछ समय बाद एक-एक गिलास करके पानी पीना लाभकारी है।

 

रहन सहन में बदलाव 

इस मौसम में गर्मी बहुत ज्यादा होती है इसलिए रहने और सोने की जगह ठंडी होनी चाहिए। रहने और सोने वाली जगहों को पंखे, कूलर, एसी आदि के प्रयोग से ठंडा करके रखें। घर से बाहर निकलते समय ठंडा पानी पीकर निकलें। लू से बचने के लिए बाहर निकलते समय साथ में प्याज रखें।  रात में अगर आप देर तक जागते हैं तो थोड़ी थोड़ी देर पर पानी पीते रहें। इससे वात और कफ दोष कुपित नहीं होते और कब्ज भी नहीं होता।

 

रात का भोजन विशेष रूप से हल्का और सुपाच्य होना चाहिए। यदि हो सके तो इस समय सप्ताह में एक-दो बार खिचड़ी का सेवन करें। रात का भोजन जितना जल्दी हो सके कर लेना चाहिए। इस ऋतु में दिन के समय थोड़ा सोया जा सकता है।

 

क्या ना करें 

एकदम ठंडी जगह से अचानक निकलकर धूप में ना आएं। थोड़ा रुक कर पसीना सूख जाने के बाद और शरीर का तापमान सामान्य होने पर ही जल आदि पिएं। फ्रिज के पानी में सादा पानी मिला कर पियें। शराब का सेवन इस मौसम में ना करें। आयुर्वेद के अनुसार इस मौसम में संयमित रुप से सेक्स करना चाहिए।

 

वर्षा ऋतु में खानपान और जीवनशैली  

इस मौसम में बारिश होने के कारण आस पास के वातावरण में काफी गंदगी फ़ैल जाती है। इस वजह से मच्छर मक्खियाँ आदि काफी बढ़ जाती हैं और संक्रमण होने का खतरा भी बढ़ जाता है। इस मौसम में नमी की वजह से वात दोष असंतुलित हो जाता है और पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। वर्षा की बौछारों से पृथ्वी से निकलने वाली गैस, अम्लता की अधिकता, धूल और धुएँ से युक्त वात का प्रभाव भी पाचन-शक्ति पर पड़ता है। बीच-बीच में बारिश न होने से सूर्य की गर्मी बढ़ जाती है। इससे शरीर में पित्त दोष जमा होने लगता है।

इन सब कारणों से व संक्रमण से मलेरिया, फाइलेरिया बुखार, जुकाम, दस्त, पेचिश, हैजा, आत्रशोथ (colitis), गठिया, जोड़ों में सूजन, उच्च रक्तचाप, फुंसियाँ, दाद, खुजली आदि अनेक रोगों की संभावना बढ़ जाती है।

 

मानसून सीजन में क्या खाएं 

  • वर्षा-ऋतु में हल्के, सुपाच्य, ताजे, गर्म और पाचक अग्नि को बढ़ाने वाले खाद्य-पदार्थों का सेवन करना चाहिए। ऐसी चीजों का सेवन करें जो वात को शांत करते हों। इसलिए पुराना अनाज जैसे गेहूँ, जौ, शालि और साठी चावल, मक्का (भुट्टा), सरसों, राई, खीरा, खिचड़ी, दही, मट्ठा, मूँग खाएं। दालों में मूंग और अरहर की दाल खाना लाभकारी होता है।

 

  • सब्जियों में लौकी, भिण्डी, तोरई, टमाटर और पुदीना की चटनी खाएं और सब्जियों का सूप पिएं।

 

  • फलों में सेब, केला, अनार, नाशपाती, पके जामुन और पके देशी आम खाएं।

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  • घी और तेल में बने नमकीन पदार्थ भी उपयोगी रहते हैं।

 

  • आम और दूध का एक साथ सेवन करना इस मौसम में बहुत लाभकारी माना जाता है। यदि एक समय भोजन के स्थान पर आम और दूध का उचित मात्रा में सेवन किया जाए, तो शरीर में ताकत, सुडौलता और पुष्टि आती है।

 

  • दही की लस्सी में लौंग, त्रिकटु (सोंठ, पिप्पली और काली मिर्च), सेंधा नमक, अजवायन, काला नमक आदि डाल कर पीने से पाचन-शक्ति ठीक रहती है।

 

  • लहसुन की चटनी व शहद को जल एवं अन्य पदार्थों (जो गर्म न हों), में मिला कर लेना उपयोगी है।

 

  • इस मौसम में पानी को स्वच्छ रखने पर ज्यादा ध्यान दें क्योंकि संक्रमित या प्रदूषित पानी की वजह से हैजा, फ़ूड पायजनिंग जैसी कई बीमारियां हो सकती हैं। इसलिए पानी को अच्छे से उबालकर फिर ठंडा करके पिएं या फ़िल्टर का प्रयोग करें।

 

क्या ना खाएं 

  • इस मौसम में पत्ते वाली सब्जियां, ठण्डे व रूखे पदार्थ, चना, मोंठ, उड़द, जौ, मटर, मसूर, ज्वार, आलू, कटहल, सिंघाड़ा, करेला और पानी में सत्तू घोलकर लेना हानिकारक माना जाता है। वर्षा ऋतु में जब वर्षा बहुत कम होती है, तो पित्त का प्रकोप होने लगता है। इस समय खट्टे, तले हुए, बेसन से बने पदार्थ, तेज-मिर्च मसाले वाले, बासी खाद्य-पदार्थों और पित्त बढ़ाने वाले खाद्यों का सेवन नहीं करना चाहिए।

 

  • भारी भोजन, बार-बार भोजन करना और भूख न होने पर भी भोजन करने से बचना चाहिए। रात के समय दही और मट्ठा तो बिल्कुल नहीं लेना चहिए।

 

रहन सहन में बदलाव

शरीर की मालिश और सिकाई करें। साफ़ सुथरे और हल्के कपड़े पहनें। अगर आप बारिश में भीग गए हैं तो तुरंत अपने कपड़ों को बदल लें। ऐसे स्थान पर सोना चाहिए, जहाँ अधिक हवा और नमी न हो। भोजन भूख लगने पर और ठीक समय पर ही करना चाहिए। रात्रि को भोजन जल्दी कर लेना चाहिए। मच्छर आदि से बचने के लिए मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए। घर के आस-पास के गड्ढों में जमा हुए और सड़ रहे पानी में मच्छर, मक्खियाँ आदि कीड़े बहुत पनपते हैं व रोग फैलाते हैं, अतः उनमें कीटनाशक छिड़क देना चाहिए। सफाई का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।

 

क्या ना करें 

  • गीले कपड़ों और गीले बिस्तर का उपयोग ना करें। ऐसा करने से बीमारियां तुरंत पनप सकती हैं। शरीर के जोड़ों, विशेषकर जांघों के जोड़ और गुप्त अंगों के आस-पास की चमड़ी को पानी या पसीने से गीला होने से बचाये रखना चाहिए।

 

  • इस मौसम में सड़क पर फिसलन बहुत ज्यादा रहती है इसलिए बाइक या कोई और वहां चलते समय सावधानी बरतें।

 

  • शरीर में घमौरियाँ निकलने पर बर्फ का टुकड़ा मल कर लगाना चाहिए अथवा पाउडर का प्रयोग करें।

 

शरद ऋतु (सितम्बर से नवंबर) में खान पान और जीवनशैली :

यह सर्दियों की शुरुवात वाला मौसम होता है। अब आपके शरीर को वर्षा और उसकी ठंडक को सहने का अभ्यास हो जाता है। मानसून सीजन के बाद इस मौसम में सूर्य अपने पूरे तेज और गर्मी के साथ चमकता है। इस गर्मी की वजह से वर्षा ऋतु में शरीर में जमा हुआ पित्त एकदम असंतुलित हो जाता है। इस वजह से शरीर का रक्त दूषित हो जाता है।

जिसके परिणामस्वरूप बुखार, फोड़े-फुंसियाँ, त्वचा पर चकत्ते, घेंघा, खुजली आदि रोगों की संभावना बढ़ जाती है।  

शरद ऋतु में क्या खाएं 

  • इस मौसम में पित्त को शांत करने के लिए घी और तीखे पदार्थों का सेवन करना चाहिए। इस लिहाज से मीठे, हल्के, सुपाच्य खाद्य एवं पेय पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
  • शालि चावल, मूँग, गेहूँ, जौ, उबाला हुआ दूध, दही, मक्खन, घी, मलाई, श्रीखंड आदि का सेवन लाभकारी होता है।
  • सब्जियों में चौलाई, बथुआ, लौकी, तोरई, फूलगोभी, मूली, पालक, सोया और सेम खाएं।
  • फलों में- अनार, आँवला सिंघाड़ा, मुनक्का और कमलगट्टा लाभकारी हैं।
  • इस ऋतु में हरड़ के चूर्ण का सेवन, शहद, मिश्री या गुड़ मिलाकर करना चाहिए।
  • आँवले को शक्कर के साथ मिलाकर खाएं।

 

क्या ना खाएं 

इस मौसम में सरसों का तेल, मट्ठा, सौंफ, लहसुन, बैंगन, करेला, हींग, काली मिर्च, पीपल, उड़द से बने भारी खाद्य पदार्थ नहीं खाने चाहिए। इसके अलावा कढ़ी जैसे खट्टे पदार्थ, क्षार द्रव्य, दही और नमक वाले खाद्य पदार्थ अधिक मात्रा में नहीं खाने चाहिए।

भूख लगे बिना भोजन नहीं करना चाहिए।

 

रहन-सहन में बदलाव 

प्रदूषित रक्त से होने वाली बीमारियों से बचने के लिए रक्तमोक्षण चिकित्सा करवाएं।

रात्रि के समय चंद्रमा की किरणों में बैठने, घूमने या सोने से स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

 

क्या ना करें

इस मौसम में बहुत अधिक व्यायाम और सेक्स करने से बचना चाहिए। इसके अलावा पूर्व से आने वाली हवाओं से भी खुद को बचाना चाहिए। इन हवाओं के संपर्क में आने से जोड़ों में दर्द की समस्या होने लगती है।

 

अब आप किस मौसम में क्या खाना चाहिए और कैसा रहन सहन रखना चाहिए इस बारे में काफी कुछ जान चुके हैं। यहां एक बात ध्यान देने वाली है कि जैसे ही मौसम में बदलाव हो अर्थात किसी ऋतु के आखिरी हफ्ते में ही आपको अगले मौसम के हिसाब से खानपान और रहन सहन में धीरे धीरे बदलाव शुरु कर देने चाहिए।  

पिछले मौसम में खाए जाने वाले आहारों कों अचानक छोड़कर नए मौसम के हिसाब से अगर आप खाने पीने लगते हैं तो इससे रोग उत्पन्न हो सकते हैं। इसलिए धीमे धीमे बदलाव लायें जिससे आपका शरीर उस अनुसार अनुकूलित हो जाए।

मौसम में बदलाव के समय पहले वाले मौसम के मौजूद दोषों में नए मौसम आने पर उनकी मूल प्रकृति बदलने लगती है। इसलिए इस समय अपने खानपान, जीवनशैली और योगाभ्यास पर विशेष ध्यान दें। ऐसा करके आप ऋतुपरिवर्तन में दोषों के प्रकोप से होने वाले रोगों से मुक्त रहेंगे।