नागरं पिप्पलीमूलं चित्रको हस्तिपिप्पली । श्वदंष्ट्रा पिप्पली धान्यं बिल्वं पाठा यमानिका।। चाङ्गेरीस्वरसे सर्पि कल्कैरेतैर्विपाचयेत् । चतुर्गुणेन दध्ना च तद्घृतं कफवातनुत् ।। भै.र.8/559-560, च.द.4/45-46
क्र.सं. | घटक द्रव्य | प्रयोज्यांग | अनुपात |
1 | शुण्ठी (Zingiber officinale Rosc.) | कन्द | 9.6 ग्रा. |
2 | पिप्पली (Piper longum Linn.) | मूल | 9.6 ग्रा. |
3 | चित्रक (Plumbago zeylanica Linn.) | मूल | 9.6 ग्रा. |
4 | गजपिप्पली (Piper longum Linn.) | फल | 9.6 ग्रा. |
5 | गोक्षुर (Tribulus terrestris) | फल | 9.6 ग्रा. |
6 | पिप्पली (Piper longum Linn.) | फल | 9.6 ग्रा. |
7 | धान्यक (Coriandrum sativum Linn.) | फल | 9.6 ग्रा. |
8 | बिल्व (Aegle marmelos Corr.) | मूल/काण्ड त्वक् | 9.6 ग्रा. |
9 | पाठा (Cissampelos pareira Linn) | मूल | 9.6 ग्रा. |
10 | यवानी (Trachyspermum ammi (Linn.) Sprague) | फल | 9.6 ग्रा. |
11 | चांगेरी स्वरस (Oxalis corniculata) | पंचांग | 3.072 ली. |
12 | गोघृत (Ghee) | 768 ग्रा. | |
13 | दधि (Curd) | 3.072 कि.ग्रा. |
मात्रा– 12 ग्रा.
अनुपान– कोष्ण दूध या गर्म जल।
गुण और उपयोग– यह चांगेरी घृत गुदभ्रंश रोग की उत्तम औषधि है। इस रोग में इस घृत के साथ मूषक की वसा को गुदभ्रंश स्थान पर लगाना चाहिए। यह घृत दर्द के साथ होने वाले अतिसार में भी लाभ करता है। इसके प्रयोग से आमातिसार, अग्निमाद्य, अरुचि और पेट दर्द नष्ट हो जाते हैं।
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