आयुर्वेदानुसारी स्वास्थ्यरक्षक आरोग्य सूत्र

  1. रात्रि को जल्दी सोना और प्रातः जल्दी (सूर्योदय से पहले) जागना स्वास्थ्य के लिए उत्तम है।
  2. स्वास्थ्य का अर्थ केवल शरीर का स्वस्थ होना ही नहीं, अपितु मन और मस्तिष्क का प्रसन्न रहना भी है।
  3. प्रातः काल उठने के बाद कुछ समय (10-15 मिनट) इष्टदेव का ध्यान या स्मरण जीवन में प्रसन्नता व शान्ति देता है।
  4. स्वस्थ रहने और रोगों से बचने के लिए सदा पथ्य सेवन (हितकारी भोजन) करना चाहिए, क्योंकि पथ्य अपथ्य सेवन करने वाले व्यक्ति को औषधि की आवश्यकता नहीं रहती।
  5. भोजन करते समय मन पूर्णतः शान्त और प्रसन्न रहना चाहिए। सारे दिन में कम से कम भोजन का समय तो मनुष्य को केवल अपने लिए सुरक्षित रखना चाहिए।
  6. भोजन सदा समय पर करना चाहिए। पहले खाये हुए भोजन के पाचन हुए बिना  भोजन कर लेना स्वास्थ्य के लिए घातक है। यह आयुर्वेद का सुनहरी नियम है कि- भूख लगने पर ही मित भोजन करे, अन्यथा एक समय लंघन (उपवास) कर लें।
  7. रात्रि के समय दही का सेवन करना और दिन के समय (ग्रीष्म-ऋतु को छोड़कर अन्य ऋतुओं में) सोना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
  8. व्यायाम करना स्वास्थ्य के लिए अति आवश्यक है, अतः यह दिनचर्या का अनिवार्य अंग होना चाहिए; परन्तु अपनी शारीरिक शक्ति से अधिक व्यायाम या श्रम करना बहुत हानिकारक है।
  9. मोटापा और पतलापन, दोनों ही अवांछित हैं, परन्तु मोटापा अपेक्षाकृत अधिक कष्टदायक है, क्योंकि यह अनेक रोगों की जड़ है, अतः इससे सावधान रहें।
  10. रोग को कभी भी छोटा नहीं समझना चाहिए। ध्यान न देने पर सामान्य रोग भी भयंकर रूप धारण कर सकता है।
  11. स्वास्थ्य के लिए हितकारी भोजन का सेवन करें, ऋतु (मौसम) के अनुसार खायें, भूख से कुछ कम भोजन करें।
  12. प्रातः उठकर 1-2 गिलास गुनगुना पानी पीयें, यही उषःपान है। गुनगुने पानी में आधा चम्मच नींबू का रस एवं एक चम्मच शहद मिलाकर पीने से विशेष लाभ होता है। सुबह खाली पेट चाय व कॉफी का सेवन कभी न करें।
  13. मलत्याग करते समय दाँतों को दबाकर या भींचकर रखने से वृद्धावस्था में भी दाँत नहीं हिलते।
  14. प्रातः मुँह में पानी भरकर ठण्डे जल से आँखों में छींटे मारें। अँगूठे से मुँह में स्थित तालु की सफाई करने से आँख, कान, नाक एवं गले के रोग नहीं होते।
  15. स्नान करने से पूर्व दोनों पैरों के अंगूठो में सरसों का शुद्ध तेल मलने से वृद्धावस्था तक नेत्रों की ज्योति कमजोर नहीं होती। प्रातः नंगे पाँव हरी घास पर टहलें, इससे आँखों की रोशनी बढ़ती है। सप्ताह में एक दिन पूरे शरीर की तिल या सरसों के तेल से मालिश करें तथा पैर के अंगूठों व पैर के पंजों की भी मालिश करें।
  16. रात्रि को सोने से पहले तथा प्रत्येक बार भोजन लेने के बाद दांतों के बीच में फंसे अन्न-कणों को कुल्ला करके साफ करें।
  17. नहाने के पानी में नींबू का रस मिलाकर नहाने से शरीर की दुर्गन्ध दूर होती है।
  18. प्रतिदिन शौच-स्नान के पश्चात् योगासन, प्राणायाम आदि नियमित रूप से करें। प्राणायाम करने से सभी प्रकार के रोग दूर होते हैं तथा शरीर स्वस्थ व मन शान्त रहता है और आत्मबल बढ़ता है।
  19. भोजन में सुपाच्य, सात्त्विक, हल्का तथा रेशेयुक्त खाद्य, अंकुरित अन्न, फलों व दलिया का सेवन करें व भोजन को चबा-चबा कर खायें।
  20. भोजन के उपरान्त कम से कम 10 मिनट तक वज्रासन में बैठें तथा यदि संभव हो तो रात्रि के भोजन के बाद थोड़ा भमण करें।
  21. दिन में कम से कम 8 से 12 गिलास (2.5 से 3 लीटर) पानी जरूर पीयें।
  22. सदैव रीढ़ (कमर) को सीधी रखकर बैठें। जमीन पर बैठकर बिना सहारे उठें।
  23. नाखून हमेशा छोटे व साफ रखें तथा नाखूनों को दाँतों से कभी न काटें।
  24. खाने के दौरान पानी न पीयें। यदि भोजन में तरल पदार्थ कम हों तो भोजन के बीच में थोड़ा पानी पी सकते हैं, अन्यथा खाने के आधा घण्टा पहले तथा आधा घण्टे बाद ही पानी का सेवन करें।
  25. भोजन से पूर्व ईश्वर का स्मरण करें। अन्न देने वाले उस प्रभु का धन्यवाद करके भोजन को उसका प्रसाद मान कर ग्रहण करें।
  26. भोजन में हरी सब्जी व सलाद का पर्याप्त मात्रा में प्रयोग करें। अधिक गर्म और अधिक ठण्डी वस्तुएँ पाचन क्रिया के लिए हानिकारक हैं। भोजन में मिर्च मसालों का प्रयोग कम करें। प्रतिदिन मौसम के फलों का प्रयोग स्वास्थ्य के लिए अति उत्तम है। फलों को भोजन के साथ न लेकर अलग से भोजन के पश्चात् खायें।
  27. मल, मूत्र, छींक आदि के वेगों को कभी नहीं रोकना चाहिए, वेग रोकने से रोग उत्पन्न होते हैं।
  28. जीवन में वाणी, व्यवहार व विचार के दोषों को दूर करने के लिए तथा जीवन पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रतिदिन रात को सोते समय थोड़ी देर धैर्यपूर्वक आँखें बंद करके आत्म-निरीक्षण करें, इसमें अपने दोष व आचरण की समीक्षा करें और जीवन में अष्टांग योग को अपनाने के लिए पुरुषार्थ करें। मुँह ढक कर न सोयें। रात को कमरे में वायु-संचार को पूर्णतया अवरुद्ध न करें। बांई करवट सोने से दायां स्वर चलता है, जो भोजन पचाने में सहायक होता है।
  29. पेट के बल लेटकर पढ़ना या सोना नहीं चाहिए।
  30. सिर में तेल की मालिश करने से मन शान्त होता है, तथा नींद अच्छी आती है।
  31. पीने का पानी, खाद्य पदार्थ स्वच्छ, साफ तथा ताजे होने चाहिए क्योकि अस्वास्थ्यकर ढंग कई प्रकार के रोगों को निमत्रण देते हैं।
  32. बालों को धोने के तुरन्त बाद अच्छी तरह सुखा लेना चाहिए।
  33. हर समय नाक खुजाना या गुप्तांगों में खुजली करना शरीर में कीटाणु एवं कृमि होने का संकेत देते हैं।
  34. हर समय उंगलियां चटकाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।
  35. मासिक धर्म के समय सम्भोग नहीं करना चाहिए तथा अत्यधिक शारीरिक श्रम करने से बचना चाहिए क्योंकि इससे वात विकृत होकर शरीर में दोषों की उत्पत्ति करता है।
  36. मासिक धर्म के समय शरीर में नाजुकता (संवेदनशीलता) व शरीर में विविध तरह के रोगाणुओं की उपस्थिति होती है। अतः उस समय अतिश्रम, भारी कार्य तथा अस्पृश्यता का ध्यान रखते हुए भोजन आदि निर्माण व अति कोमल शैय्या आदि में शयन का निषेध किया गया है। ऐसा न करने पर अनेक रोगों की उत्पत्ति होने की सम्भावना रहती है।
आचार्य श्री बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण, आयुर्वेदिक विशेषज्ञ और पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्तंभ हैं। चार्य बालकृष्ण जी एक प्रसिद्ध विद्वान और एक महान गुरु है, जिनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान ने नए आयामों को छूआ है।

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आचार्य श्री बालकृष्ण

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