शरीर को स्वस्थ और मजबूत बनाने के लिए आयुर्वेद में तीन उपस्तंभ बताए गए हैं। जिस तरह किसी बिल्डिंग को खड़ा करने के लिए पिलर का सहारा लिया जाता है ठीक उसी तरह आपका स्वास्थ्य भी इन तीन बातों पर निर्भर करता है। ये तीन उपस्तम्भ निम्नलिखित हैं ।
ये तीनों चीजें आपके दोषों को संतुलित रखने में मदद करती हैं। आइये इनमें से प्रत्येक के बारे में विस्तार से जानते हैं।
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आहार का सीधा मतलब है आपका खानपान, और यह हमारे जीवित रहने के लिए सबसे ज़रूरी चीजों में से एक है। हमारे वेदों में आहार को ही जीवन कहा गया है। असल में देखा जाए तो आहार स्वयं में औषधि है। नियमित संतुलित आहार का सेवन करने से सभी धातुओं और दोषों को पोषण मिलता है।
आपके खानपान का प्रभाव सिर्फ़ शरीर पर ही नहीं बल्कि आपके मन पर भी पड़ता है। लेकिन आप जो कुछ भी खाते हैं वो सिर्फ तभी आपके स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होगा जब आप खाने को सिर्फ स्वाद के लिए नहीं बल्कि स्वास्थ्य के लिए खायेंगे। अच्छी और बुरी सेहत दोनों ही आपके खानपान पर निर्भर हैं।
आयुर्वेद के अनुसार जिन लोगों का अपनी जीभ पर नियंत्रण नहीं रहता है उन्हें ही आगे चलकर बीमारियां होती हैं। अपनी प्रकृति के अनुसार हितकारी, उचित मात्रा में और ठीक तरह से भोजन करने वाला व्यक्ति ही स्वस्थ रहता है।
चरक ने आहार सेवन से जुड़ी आठ विशेष बातें बताई हैं जिन्हें आदर्श आहार संहिता कहा गया है।
हमारे स्वास्थ्य का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ नींद है। अगर आप तनाव या किन्ही अन्य कारणों की वजह से भरपूर नींद नहीं ले पा रहे हैं तो इससे कई बीमारियां हो सकती हैं। दरअसल अच्छी नींद लेने से शरीर की सभी मांसपेशियों और अंगों को आराम मिलता है । जिससे अगली सुबह वो फिर से तरोताजा होकर अपने काम के लिए तैयार हो सकें। अगर आप लगातार ठीक से नींद नहीं लेते हैं तो कुछ दिनों में आप पागल भी हो सकते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को छः से आठ घंटे ज़रूर सोना चाहिए। वही नवजात शिशुओं को 18-20 घंटे से सोना चाहिए जिससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास बेहतर ढंग से हो सके।
रोजाना पर्याप्त नींद लेने से शारीरिक शक्ति, पौरुषता, ज्ञान और आयु की वृद्धि होती है। इससे आपका ओज और चेहरे का निखार भी बढ़ता है। यह बात हमेशा ध्यान रखें कि सुबह जल्दी उठें और रात में जल्दी सोएं।
आज के समय में अधिकांश लोग सुबह देर से उठते हैं और रात में देर से सोते हैं। यही कारण है कि इस जीवनशैली को अपनाने वाले लोग कई तरह की शारीरिक और मानसिक बीमारियों से ग्रसित रहते हैं।
एक बात और ध्यान रखें कि जहाँ अनिद्रा या कम सोना अच्छी सेहत के लिए हानिकारक है वहीं बहुत अधिक सोना भी उतना ही हानिकारक है। बहुत ज्यादा देर तक सोये रहने से आलस, कफ, मोटापा, पाचक अग्नि कमजोर होने जैसी समस्याएँ होने लगती हैं।
शरीर का तीसरा सबसे महत्वपूर्ण उपस्तंभ ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य का अर्थ है कि संयमपूर्वक जीवनशैली अपनाते हुए वीर्य की रक्षा करना। हम जो भी खाते पीते हैं वो चीजें पचने के बाद धातु बनती हैं इन्हें ही ‘वीर्य’ या ‘रज’ कहा गया है। शरीर की शक्ति इसी वीर्य पर ही निर्भर करती है।
आयुर्वेद में बताया गया है कि जो लोग ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करते हैं अर्थात विलासिता पूर्ण संभोग युक्त जीवन बिताते हैं उनके वीर्य का नाश होता है इस वजह से उनकी शारीरिक शक्ति भी कमजोर हो जाती है। वेदों में ब्रह्मचर्य का महत्व बताते हुए कहा गया है कि ब्रह्मचर्य के तप से देवों ने मृत्यु को भी परास्त कर दिया था।
आयुर्वेद के अनुसार आप ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं अर्थात बहुत अधिक संभोग से बचे रहते हैं तो इसके कई फायदे हैं। इससे आप ओजस्वी, बुद्धिमान व बलवान होते हैं। आयुर्वेद में अब्रह्मचर्य शब्द का भी उल्लेख है जिसका मतलब है कि शादी शुदा लोगों को भी एक सीमा के अंदर ही संभोग करना चाहिए। और इसका पालन पुरुष और महिला दोनों को ही करना चाहिए।
ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए आपको अपने जीवनशैली में भी कई बदलाव लाने होंगें। इसके लिए गर्म तासीर वाली चीजों, उत्तेजक रहन सहन व उत्तेजक दृश्यों से बचकर रहना चाहिए। सादा आचरण और सादा खानपान ही अपनाएं।
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