अमृतप्राश घृत (कास)

जीवनीयो गण शुण्ठी वरी वीरा पुनर्नवा।। बलाभार्ङ्गीस्वगुप्तर्द्धि शटी तामलकी कणाः। शृंगाटकं पयस्या पञ्चमूलं यल्लघू ।। द्राक्षा। क्षोडादि फलं मधुरस्निग्धबृंहणम्। तैः पचेत्सर्पिष प्रस्थं कर्षांशैः श्लक्ष्णकल्कितैः।। क्षीरधात्रीविदारीक्षुच्छागमांसरसान्वितम्। प्रस्थार्ध मधुन शीते शर्करार्धतुलारज।। पलार्धकं मरिचत्वगेलापत्रकेसरम्। विनीय चूर्णितं तस्माल्लिह्यान्मात्रां यथाबलम्।। .हृ.चि.3/91-95

क्र.सं. घटक द्रव्य प्रयोज्यांग अनुपात
1 जीवन्ती (Leptadenia reticulata) मूल
2 काकोली (Lilium polyphyllum) मूल
3 क्षीरकाकोली (Fritilerria roylei) मूल
4 मेदा (Litsea glutinosa (Lour.) C.B. Robins मूल
5 महामेदा मूल
6 मुद्गपर्णी पंचांग
7 माषपर्णी पंचांग
8 ऋषभक मूल
9 जीवक (Microstylis wallichii Lindl.) मूल
10 ऋद्धी मूल
11 वृद्धी मूल
12 यष्टीमधु (Glycyrrhiza glabra) मूल
13 शुण्ठी (Zingiber officinale Rosc.) कन्द
14 शतावरी (Asparagus racemosus) मूल
15 मेदा (Litsea glutinosa (Lour.) C.B. Robins) मूल
16 पुनर्नवा मूल
17 बला (Sida cordifolia L.) मूल
18 भारंगी मूल
19 स्वगुप्त बीज बीज
20 ऋद्धी मूल
21 शठी (Hedychium Spicatium Buch-Ham) कन्द
22 तामलकी (Phyllanthus urinaria L.) पंचांग
23 कण (पिप्पली) (Piper longum Linn.) फल
24 फलशृंगाटक (Trapa natans Linn. Vas. bispinosa (Roxb. Makino) फल
25 पयस्या (क्षीर विदारी) (Euphorbia thy mifolia) मूल
26 शालपर्णी पंचांग
27 पृश्णपर्णी (Hedysarum pictum) पंचांग
28 बृहती (Solanum indicum) पंचांग
29 कण्टकारी (Solanum virginianum) पंचांग
30 गोक्षुर पंचांग
31 द्राक्षा (Vitis viniferia Linn.) शुष्क फल 12 ग्रा.
32 अक्षोड़ा फल 12 ग्रा.
33 सर्पी 768 मि.ली.
34 क्षीर (Milk) 768 मि.ली.
35 धात्रीरस (Emblica offinalis Gaertn.) फल 768 मि.ली.
36 विदारी रस (Pueraria tuberosa DC.) मूल 768 मि.ली.
37 इक्षु रवस (Saccharum officinarum L.) तना 768 मि.ली.
38 छाग मांस 768 मि.ली.
39 मधु (Honey) 384 ग्रा.
40 शर्करा (Suga 2.400 कि.ग्रा.
41 मरिच (Piper nigrum Linn.) फल 24 ग्रा.
42 त्वक (Cinnamomum zeylanicum Breyn) तना त्वक 24 ग्रा.
43 एला (Elettaria cardamomum) बीज 24 ग्रा.
44 पत्र (Cinnamomum tamala) पत्र 24 ग्रा.
45 केशर (Crocus sativus) Stmn. 24 ग्रा.

मात्रा 12 ग्रा.

उपयोग तृष्णा, दाह, ज्वर, रक्तपित्त, कास, श्वास, दौर्बल्य, मूत्र रोग

अनुपान उष्ण दुग्ध, उष्ण जल

गुण और उपयोगयह अमृतप्राश घृत मनुष्यों के लिए अमृत के समान गुणकारी होता है। यह शीतवीर्य वाला और परम पौष्टिक अवलेह होता है। इसके प्रयोग से दुर्बल, क्षीण वीर्य वाले, दुर्बल शरीर वाले और क्षीण स्वर वाले रोगी भी पुष्ट एवं बलवान बन जाते हैं।

यह घृत खाँसी, हिचकी, ज्वर, क्षय, रक्तपित्त, श्वास, पिपासा, दाह, पित्त प्रकोप, वमन, मूर्च्छा, हृदयरोग, योनिरोग, मूत्ररोग आदि रोगों के लिए भी परम उपयोगी होता है। यह सन्तानदायक और बहुत पौष्टिक होता है। इस घृत का प्रयोग राजयक्ष्मा तथा बालकों के सूखारोग के लिए बहुत हितकारक होता है। यह घृत सभी निर्बल व्यक्तियें को पुष्ट करता है।

आचार्य श्री बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण, आयुर्वेदिक विशेषज्ञ और पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्तंभ हैं। चार्य बालकृष्ण जी एक प्रसिद्ध विद्वान और एक महान गुरु है, जिनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान ने नए आयामों को छूआ है।

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आचार्य श्री बालकृष्ण

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