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अपामार्ग (apamarga plant in hindi) एक बहुत ही साधारण पौधा है। आपने अपने घर के आस-पास, जंगल-झाड़ या अन्य स्थानों पर अपामार्ग का पौधा को देखा होगा, लेकिन इसे नाम से नहीं जानते होंगे। अपामार्ग की पहचान नहीं होने के कारण प्रायः लोग इस पौधे को बेकार ही समझा करते हैं। इसलिए यह भी नहीं जानते है कि अपामार्ग के फायदे क्या-क्या होते हैं या अपामार्ग का इस्तेमाल भी किया जाता है।
जी हां, अपामार्ग (chirchita plant benefits in hindi) एक बहुत ही गुणी औषधि है जिसका बरसों से आयुर्वेदिक दवाओं के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। अपामार्ग के उपयोग से विकारों को ठीक किया जाता है, बीमारियों की रोकथाम की जाती है। आप दांतों के रोग, घाव सुखाने, पाचनतंत्र विकार, खांसी, मूत्र रोग, चर्म रोग सहित अन्य कई बीमारियों में अपामार्ग का लाभ ले सकते हैं। इसलिए आपके लिए यह जानकारी बहुत ही जरूरी है क्योंकि अपामार्ग का पौधा (apamarga plant) हर जगह मिल जाता है और जानकारियां होने से आप कई रोगों में इससे लाभ ले सकते हैं।
अपामार्ग (chirchita plant benefits in hindi) एक जड़ी-बूटी है। बारिश की शुरुाती मौसम से ही अपामार्ग का पौधा अंकुरित होने लगते हैं। ठंड के मौसम में फलते-फूलते हैं और गर्मी के मौसम में पूरी तरह बड़े हो जाते हैं और इसी मौसम में फलों के साथ पौधा (apamarga plant) भी सूख जाता है। इसके फूल हरी गुलाबी कलियों से युक्त तथा बीज चावल जैसे होते हैं। जिन्हें अपामार्ग तंडुल कहते हैं। इसके पत्ते बहुत ही छोटे और सफेद रोमों से ढके होते हैं। ये अण्डाकार एवं कुछ नुकीले से होते हैं।
मुख्यतः अपामार्ग की दो प्रजातियां होती है। जिनका प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है।
सफेद और लाल दोनों प्रकार के अपामार्ग की मंजरियां पत्तों के डण्ठलों के बीच से निकलती हैं। ये लंबे, कर्कश, कंटीली सी होती है। इनमें ही सूक्ष्म और कांटे-युक्त बीज होते हैं। ये बीज हल्के काले रंग के छोटे चावल के दाने जैसे और स्वाद में कुछ तीखे होते हैं। फूल छोटे, कुछ लाल हरे या बैंगनी रंग के होते हैं।
लाल अपामार्ग की डण्डियां तथा मञ्जरियां कुछ लाल रंग की तथा पत्तों पर लाल-लाल सूक्ष्म दाग होते हैं।
अपामार्ग (apamarga plant in hindi) का वानस्पतिक नाम एकायरेन्थिस् एस्पेरा (Achyranthes aspera L., Syn-Achyranthes australis R. Br.), एमारेन्थेसी (Amaranthaceae) है लेकिन इसके अन्य ये भी नाम हैंः-
सफेद अपामार्ग के नाम (Names of White Apamarg)
Apamarg in-
लाल अपामार्ग (Cyathula prostrata (Linn.) Blume) के नाम (Names of of Red Apamarg)
Apamarg in –
अपामार्ग का औषधीय प्रयोग, प्रयोग की मात्रा और विधियां ये हैंः-
अपामार्ग के 2-3 पत्तों के रस में रूई को डुबाकर फोया बना लें। इसे दांतों में लगाने से दांत का दर्द ठीक (apamarg ke fayde) हो जाता है।
अपामार्ग के गुण की ताजी जड़ से रोजाना दातून करने से दांत के दर्द तो ठीक होते ही हैं साथ ही दाँतों का हिलना, मसूड़ों की कमजोरी और मुंह से बदबू आने की परेशानी भी ठीक होती है। इस दातून के प्रयोग से दांत अच्छी तरह साफ हो जाते हैं।
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यह प्रयोग गंगोत्री के प्रसिद्ध स्वामी अपरोक्षानन्द की माता जी किया गया है।
जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ़) के रहने वाले प्रसिद्ध स्वामी अपरोक्षानन्द की 85 वर्ष माता जी हमेशा अपामार्ग के तने का दातुन करती थीं। दातुन का प्रयोग करने वाले बहुत से लोगों के वृद्धावस्था में भी दांतों की मजबूती बनी रहती है। जब अपामार्ग (apamarg) ताजा नहीं मिलता है तो सूखी हुई अपामार्ग कांड को पानी में भिगोकर दातुन कर सकते हैं।
इसके पत्तों को पीसकर लगाने से फोड़े-फुन्सी आदि चर्म रोग तथा गांठ के रोग भी ठीक (apamarg ke fayde)होते हैं।
अपामार्ग के गुण मुँह संबंधी रोगों में फायदेमंद होता है। इसके लिए अपामार्ग के पत्तों का काढ़ा बनाकर गरारा करने से मुखपाक या मुंह के छाले की परेशानी ठीक होती है।
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भस्मक रोग बहुत अधिक भूख लगने की बीमारी को कहते हैं। इसमें खाया हुआ अन्न भस्म हो जाता है और शरीर एक जैसा ही रहता है। अपामार्ग के बीजों का चूर्ण 3 ग्राम दिन में दो बार लगभग एक सप्ताह तक सेवन करें। इससे या अपामार्ग के 5-10 ग्राम बीजों को पीसकर खीर बनाकर खिला देने से भस्मक रोग अथवा अधिक भूख लगने की समस्या ठीक होती है। इसके बीजों को खाने से अधिक भूख लगना बन्द हो जाती है।
अपामार्ग के बीजों को कूट छानक, महीन चूर्ण करें। इसमें बराबर मात्रा में मिश्री मिलाएं। इसे 3-6 ग्राम तक सुबह-शाम जल के साथ प्रयोग करें। इससे भस्मक रोग में लाभ (apamarg ke fayde) होता है।
2 ग्राम अपामार्ग की जड़ के चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करने से पेट के दर्द ठीक होते हैं।
2 ग्राम अपामार्ग की जड़ (apamarg ki jad) के रस में 2 चम्मच मधु मिलाएं। इसे 2-2 बूंद आंख में डालने से आंखों के रोग ठीक होते हैं।
आई-फ्लू, आंखों में होने वाला दर्द, आंख से पानी बहने, आंखें लाल होना, रतौंधी आदि विकारों में अपामार्ग (apamarg) का प्रयोग करना उत्तम परिणाम देता है। अपामार्ग की साफ जड़ को साफ थोड़ा-सा सेंधा नमक मिले हुए दही के पानी के साथ घिसें। ध्यान रखना है कि तांबे के बर्तन में घिसें। इसे काजल की तरह लगाने से इन रोगों में लाभ होता है।
अपामार्ग के 2-3 पत्तों को हाथ से मसलकर या कूटकर रस निकाल लें। उसके रस को कटने या छिलने वाले लगाने पर खून का बहना रुक जाता है।
अपामार्ग की जड़ को तिल के तेल में पकाकर छान लें। इसे कटने या छिलने वाले जगह पर लगाएं। आराम मिलता है।
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पुराने घाव में अपामार्ग रस के मलहम लगाएं तो घाव पकने नहीं है।
अपामार्ग की जड़ को तिल के तेल में पकाकर छान लें। इसे घाव पर लगाएं। इससे घाव का दर्द कम हो जाता है और घाव ठीक (chirchita plant benefits in hindi) हो जाता है।
लगभग 50 ग्राम अपामार्ग बीज में चौथाई भाग मधु मिलाएं। इसमें 50 ग्राम घी में अच्छी तरह पकायें। पकाने के बाद ठंडा करके घाव पर लेप करें। इससे घाव तुरंत ठीक हो जाता है। इसके अलावा जड़ का काढ़ा बनाकर घाव को धोने से भी घाव ठोक हो जाता है।
अपामार्ग पञ्चाङ्ग से बने काढ़ा को जल में मिलाकर स्नान करने पर खुजली ठीक (chirchita plant benefits in hindi) हो जाती है।
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दमा को ठीक करने के लिए अपामार्ग की की जड़ (apamarg ki jad) चमत्कारिक रूप से काम करता है। इसके 8-10 सूखे पत्तों को हुक्के में रखकर पीने से श्वसनतंत्र के विकारों में लाभ होता है।
लगभग 125 मिग्रा अपामार्ग क्षार में मधु मिलाएं। इसे सुबह और शाम चटाने से बच्चों की श्वास नली तथा वक्ष स्थल में जमा कफ दूर होता है। बच्चों की खांसी ठीक होती है।
खांसी बार-बार परेशान करती हो और कफ निकलने में कष्ट हो साथ ही कफ गाढ़ा हो गया हो तो अपामार्ग का इस्तेमाल अच्छा परिणाम देता है। इस अवस्था में या न्यूमोनिया की अवस्था में 125-250 मिग्रा अपामार्ग (apamarg) क्षार और 125-250 मिग्रा चीनी को 50 मिली गुनगुने जल में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से 7 दिन में लाभ हो जाता है।
6 मिली अपामार्ग की जड़ (apamarg ki jad) का चूर्ण और 7 काली मिर्च चूर्ण को मिलाएं। सुबह-शाम ताजे जल के साथ सेवन करने से खांसी में लाभ होता है।
अपामार्ग पञ्चाङ्ग की भस्म बनाएं। 500 मिग्रा भस्म में शहद मिलाकर सेवन करने से कुक्कुर खांसी ठीक होती है।
बलगम वाली खासी को ठीक करने के लिए अपामार्ग की की जड़ (apamarg ki jad) चमत्कारिक रूप से काम करता है। इसके 8-10 सूखे पत्तों को हुक्के में रखकर पीने से खांसी ठीक हो जाती है।
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अपामार्ग के 10-20 पत्तों को 5-10 नग काली मिर्च और 5-10 ग्राम लहसुन के साथ पीसकर 5 गोली बना लें। 1-1 गोली लेने से बुखार आने से दो घंटे पहले देने से सर्दी से आने वाला बुखार छूटता (chirchita plant benefits in hindi) है।
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2-3 ग्राम अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को दिन में 2-3 बार शीतल जल के साथ सेवन करें। इससे हैजा ठीक होता है। अपामार्ग के 4-5 पत्तों का रस निकालें। इसमें थोड़ा जल व मिश्री मिलाकर प्रयोग करने से भी हैजा में लाभ मिलता है।
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20 ग्राम अपामार्ग पञ्चाङ्ग को लेकर 400 मिली पानी में पकाएं। जब पानी एक चौथाई रह जाए तब उसमें 500 मिग्रा नौसादर चूर्ण तथा 1 ग्राम काली मिर्च चूर्ण मिलाएं। इसे दिन में 3 बार सेवन करने से पेट के दर्द में राहत मिलती है और पेट की अन्य बीमारी भी ठीक होती है।
अपामार्ग की 6 पत्तियां तथा 5 नग काली मिर्च को जल के साथ पीस लें। इसे छानकर सुबह और शाम सेवन करने से बवासीर में लाभ हो जाता है और उससे खून बहना रुक जाता है।
अपामार्ग के बीजों को कूट छानकर महीन चूर्ण बना लें। इसमें बराबर मात्रा में मिश्री मिलाएं। इसे 3-6 ग्राम तक सुबह-शाम जल के साथ प्रयोग करें। इससे बवासीर में फायदा होता है।
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10-20 ग्राम अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को चावल के धोवन के साथ पीस-छान लें। उसमें दो चम्मच शहद मिलाकर पिलाने से पित्तज या कफज विकारों के कारण होने वाली खूनी बवासीर की बीमारी में लाभ होता है।
अपामार्ग की 5-10 ग्राम ताजी की जड़ को पानी में पीस लें। इसे घोलकर पिलाने से पथरी की बीमारी में बहुत लाभ होता है। यह औषधि किडनी की पथरी को टुकडे-टुकड़े करके निकाल देती है। किडनी में दर्द के लिए यह औषधि बहुत काम करता है।
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अपामार्ग की जड़, पत्ते एवं शाखाओं को पीस लें। आसन्न प्रसवा स्त्री की योनि में लेप करने से योनि का दर्द ठीक होता है।
अपामार्ग की जड़ के रस से रूई को भिगोएं। इसे योनि में रखने से योनि के दर्द और मासिक धर्म की रुकावट मिटती है।
अपामार्ग और पुनर्नवा की जड़ को जल में घिसकर योनि में लेप करने से प्रसव के कारण होने वाला दर्द ठीक होता है।
अपामार्ग पञ्चाङ्ग रस में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करने से मासिक धर्म विकार ठीक होता है।
अपामार्ग की जड़ के रस से रूई को भिगोएं। इसे योनि में रखने से मासिक धर्म की रुकावट मिटती है।
अनियमित मासिक धर्म या अधिक रक्तस्राव के कारण जो स्त्रियाँ गर्भ धारण नहीं कर पातीं हैं। वे अपामार्ग के उपाय को अपनाकर लाभ उठा सकती हैं। ऋतुस्नान के दिन से उत्तम भूमि में उत्पन्न इस दिव्य बूटी के 10 पत्ते या इसकी 10 ग्राम की जड़ लें। इसको गाय के 125 मिली दूध के साथ पीसकर छान लें।
इसे 4 दिन तक सुबह, दोपहर तथा शाम पिलाने से स्त्री गर्भ धारण कर लेती है। यह प्रयोग यदि एक बार में सफल न हो तो अधिक से अधिक 3 बार करें।
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अपामार्ग के लगभग 10 ग्राम ताजे पत्ते एवं 5 ग्राम हरी दूब को पीस लें। इसे 60 मिली जल में मिलाकर छान लें। इसे गाय के दूध में 20 मिली या इच्छानुसार मिश्री मिलाकर सुबह सात दिन तक पिलाएं। यह प्रयोग रोग ठीक होने तक नियमित रूप से करें। इससे गर्भाशय में गांठ की परेशानी ठीक हो जाती है।
आप प्रसव के समय भी अपामार्ग का उपयोग कर सकती हैं। पाठा, कलिहारी, अडूसा, अपामार्ग में से किसी एक औषधि की जड़ को नाभि, योनि पर लेप के रूप में लगाएं। इससे प्रसव आसानी से हो जाता है।
प्रसव पीड़ा शुरू होने से पहले अपामार्ग की जड़ को एक धागे में कमर पर बांधें। इससे प्रसव आसानी से होता है। ध्यान रखना है कि प्रसव होते ही उसे तुरन्त हटा लेना चाहिए।
अपामार्ग की जड़, पत्ते एवं शाखाओं को पीस लें। इसे योनि में लेप करने से सुखपूर्वक प्रसव होता है।
अपामार्ग फूलों का पेस्ट बनाकर सेवन करने से प्रजनन से जुड़े रोगों में लाभ होता है।
अपामार्ग के लगभग 10 ग्राम ताजे पत्ते एवं 5 ग्राम हरी दूब को पीस लें। इसे 60 मिली जल में मिलाकर छान लें। इसे गाय के दूध में 20 मिली या इच्छानुसार मिश्री मिलाकर सुबह सात दिन तक पिलाने से मासिक धर्म के दौरान अधिक खून बहने की परेशानी ठीक होती है। यह प्रयोग रोग ठीक होने तक नियमित रूप से करें।
अपामार्ग पञ्चाङ्ग रस में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करने से मासिक धर्म के दौरान अधिक रक्तस्राव ठीक होता है।
अपामार्ग पत्ते के रस से सिर का अभिषेक करें या पत्ते के रस को योनि में लेप करने से रक्तप्रदर (अधिक रक्तस्राव) में शीघ्र लाभ होता है।
अपामार्ग पञ्चाङ्ग रस में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करने से ल्यूकोरिया ठीक होता है।
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हल्दी और अपामार्ग की की जड़ को बराबर मात्रा में लेकर महीन पीस लें। इसे हाथ पैरों के नाखूनों पर तथा सिर पर तिलक के रूप में लगाने से चेचक नहीं निकलता है। यदि चेचक निकल आई हो तो अपामार्ग की साफ जड़ को पीसकर फुन्सियों पर लगाने से शरीर की जलन शांत हो जाती है।
अपामार्ग भस्म को सरसों के तेल के साथ मिलाकर घाव पर लगाएं। इससे कुष्ठ रोग ठीक हो जाता है।
अपामार्ग रस में पिसे हुए मूली के बीज मिलाकर लेप करने से कुष्ठ रोग में फायदा होता है।
सज्जीक्षार, सेंधानमक, चित्रक, दंती, भूम्यामलकी की जड़, श्वेतार्क, अपामार्ग बीज की पेस्ट और तथा गोमूत्र को तेल में पकाएँ। इस तेल से लेप लेने से साइनस जल्दी ठीक हो जाता है।
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अपामार्ग के बीजों के चूर्ण को सूंघने मात्र से आधासीसी में आराम मिलता है। इस चूर्ण को सुंघाएं। इससे मस्तक के अन्दर जमा हुआ कफ पतला होकर नाक के जरिए निकल जाता है।
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अपामार्ग की साफ धोई हुई की जड़ (apamarg ki jad) का रस निकालें। इसमें बराबर मात्रा में तिल का तेल मिलाकर आग में पका लें। जब तेल केवल रह जाए तब छानकर शीशी में रख लें।
इस तेल को गुनगुना करके हर रोज 2-3 बूंद कान में डालने से बहरापन और कान से मवाद बहने की परेशानी ठीक होती है।
अपामार्ग क्षार का घोल और अपामार्ग के पत्ते का पेस्ट बनाएं। इसमें चार गुना तिल के तेल मिलाएं। इसे पकाएं और फिर उस तेल को 2-2 बूंद कान में डालने से बहरेपन, कान का आवाज करना आदि परेशानी ठीक होती है।
अपामार्ग के 10-12 पत्तों को पीसकर गर्म करके जोड़ों पर बांधें। इससे जोड़ों के दर्द से आराम मिलता है। जोड़ों के दर्द के साथ-साथ फोड़े-फुन्सी या गांठ वाली जगह पर अपामार्ग के पत्ते पीसकर लेप लगाने से गांठ धीरे-धीरे दूर हो जाती है।
अपामार्ग की जड़ को पीसकर लगाएं और जड़ का काढ़ा बनाकर सेवन करें। इससे कमर दर्द और जोड़ों के दर्द से आराम मिलता है।
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ततैया, बिच्छू तथा अन्य जहरीले कीड़ों के काटने वाले स्थान पर अपामार्ग पत्ते के रस लगा देने से जहर उतर जाता है। इसके बाद 8-10 पत्तों को पीसकर लुगदी बांध दें। इससे घाव बढ़ता नहीं है।
लाल अपामार्ग की जड़ या पञ्चाङ्ग का काढ़ा बनाकर (10-30 मिली) मात्रा में सेवन करें। इससे भूख बढ़ती है।
1-2 ग्राम तने और पत्ते के चूर्ण का सेवन करने से कब्ज की बीमारी ठीक होती है।
लाल अपामार्ग (apamarga) के पत्ते से बने 10-30 मिली काढ़ा में चीनी मिलाकर सेवन करने से मूत्र रोग जैसे पेशाब में दर्द होना और पेशाब का रुक-रुक कर आना ठीक होता है।
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लाल अपामार्ग की जड़ या पञ्चाङ्ग का काढ़ा बनाएं। इसे 10-30 मिली मात्रा में सेवन करने से पेचिश की बीमारी और हैजा ठीक होता है।
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आप अपामार्ग (apamarga) का इस्तेमाल इतनी मात्रा में कर सकते हैंः-
रस- 10-20 मिली
जड़ का चूर्ण- 3-6 ग्राम
बीज- 3 ग्राम
क्षार- 1/2-2 ग्राम
अपामार्ग का इस्तेमाल इस तरह से किया जाना चाहिएः-
पत्ते
जड़ (apamarg ki jad)
पञ्चाङ्ग
आमाशय के विकारों पर इसका प्रयोग अत्यधिक मात्रा में नहीं करना चाहिए।
भारत के प्रायः सभी जंगली इलाकों, शहरों तथा गांवों में अपामार्ग (apamarga) पाया जाता है। यह वर्षा-ऋतु में विशेषकर पाया जाता है, लेकिन कहीं-कहीं इसके पौधे (apamarga plant) वर्ष भर भी मिलते हैं।
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